रतन टाटा की आंखें आंसुओं से भरी थीं, चेयर से उठे दो बातें कीं और फिर चलते बने

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हाइलाइट्स

रतन टाटा आजीवन समाज सेवा को ज्‍यादा महत्‍व दियाटाटा ट्रस्‍ट के जरिये जरूरतमंदों की मदद की जाती हैरतन टाटा ने टाटा ग्रुप को नई ऊंचाई दी थी

नई दिल्‍ली. रतन टाटा का नाम देश में इस कदर रचा-बसा है कि उनके नाम से हर कोई वाकिफ है. उनके निधन से देशभर में शोक की लहर फैल गई थी. आम से लेकर खास तक के पास रतन टाटा से जुड़ी कुछ न कुछ यादें हैं. उन्‍होंने टाटा ग्रुप को नई ऊंचाई तक ले जाने के साथ ही आजीवन जमीनी स्‍तर के लोगों की भलाई के लिए काम करते रहे. ट्रस्‍ट के जरिये उन्‍होंने हजारों-लाखों घरों में खुशियां लाईं. रतन टाटा से जुड़ा एक वाकया ऐसा भी है, जब उनकी आंखों में आंसू भरे थे. वह अपनी चेयर से उठे और बेहतरीन काम की अपने ही तरीके से तारीफ की थी. उन्‍होंने वहां मौजूद लोगों से कुछ समय बात की और फिर वहां से चले गए थे. उनके जाने के बाद लोग सन्‍नाटे में आ गए थे.

दरअसल, ‘इकोनोमिक टाइम्‍स’ के प्रकाशित अपने कॉलम में ‘डूइंग थिंक’ के फाउंडर वी शांता कुमार ने इस घटना के बारे में जिक्र किया है. उन्‍होंने बताया कि साल 1991 में रतन टाटा ने अरुण नंदा को बताया कि वह टाटा ग्रुप के लिए ब्रांड कैंपेन बनाना चाहते हैं, ताकि इसकी पहुंच आमलोगों तक हो और टाटा का नाम हर किसी की जुबान पर हो. शांता कुमार ने बताया कि उन्‍हें यह काम असाइन किया गया था. इसके बाद उन्‍होंने कैंपेन तैयार करने की जिम्‍मेदारी राहुल बोस और नितिन बेरी को सौंपी थी. ये दोनों कोर क्रिएटिव टीम का हिस्‍सा थे. टाटा ग्रुप की साख और पहचान के मुताबिक ब्रांड कैंपेन बनाने पर काम शुरू कर दिया गया. कुछ दिनों के बाद इसने मुकम्‍मल आकार ले लिया.

द कंपनी ऑफ मैन
टाटा ग्रुप के लिए जब ब्रांड कैंपेन बनकर तैयार हुआ तो उसकी पंच लाइन थी – द कंपनी ऑफ मैन. इसका मतलब यह था कि टाटा ग्रुप ने कैसे लोगों मदद की. इसका बिजनेस से ज्‍यादा टाटा ग्रुप के वैल्‍यूज से ताल्‍लुक था. जमशेदजी टाटा का कहना था कि एक कंपनी का उद्देश्‍य लोगों की सेवा करना होना चाहिए. शांता कुमार बतात हैं कि बॉम्‍बे हाउस में एंटर करने पर यह बात जमशेदजी टाटा की प्रतिमा के नीचे लगी पट्टी पर भी लिखी मिलती है. बता दें कि टाटा ग्रुप में कई ट्रस्‍ट भी हैं, जिसका काम निस्‍वार्थ भाव से जनसेवा करना है. टाटा ग्रुप की यही खासियत इस ग्रुप ऑफ कंपनी को अन्‍य बिजनेस घरानों से अलग करता है.

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…जब रतन टाटा की आंखों में थे आंसू
शांता कुमार ने आगे बताया कि ब्रांड कैंपेन को बहुत खूबसूरत तरीके से लिखा और आर्ट डायरेक्‍ट किया गया था. वह सालों पुरानी घटना को याद करते हुए बताते हैं कि एक दिन रतन टाटा उनकी एजेंसी के ऑफिस में पहुंच गए. यह घटना काफी रेयर थी, क्‍योंकि रतन टाटा इस तरह से कहीं जाते नहीं हैं. वह ऑफिस रूम के एक कॉर्नर में बैठ गए. इसके बाद उनके सामने ही ब्रांड कैंपेन को पढ़ना शुरू किया गया. वी. शांता कुमार बताते हैं कि जब कैंपेन को पढ़ा जा रहा था, तब उन्‍होंने रतन टाटा की आंखों में आंसू देखे थे. डेमोन्‍स्‍ट्रेशन खत्‍म होने के बाद रतन टाटा अपनी चेयर से उठे और काम की तारीफ करते हुए कहा कि मैं इसे कभी रिलीज नहीं करूंगा. शांता कुमार ने जब इसकी वजह जाननी चाही तो रतन टाटा ने कहा था, ‘…क्‍योंकि यदि आप वास्‍तव में किसी की मदद करने वाले (Healer – हीलर) हैं तो उनके पास जाकर यह बात नहीं कहेंगे कि आप उनकी मदद कर रहे हैं. आप बस हील करेंगे.’ इसके बाद रतन टाटा ने सभी को धन्‍यवाद दिया और तत्‍काल रूम से चले गए.

‘हम निराश हो गए थे’
रतन टाटा ने जब कहा कि इस ब्रांड कैंपेन को वह कभी रिलीज नहीं करेंगे तो वहां बैठे लोग काफी निराश हो गए थे. शांता कुमार बताते हैं कि एक क्रिऐटिव डायरेक्‍टर के तौर पर मैं वहीं बैठ गया था. मैं काफी निराश था, लेकिन एक इंसान के तौर मैंने खुद को काफी छोटा और प्राउड फील किया. मुझे इस बात का गर्व था कि मैं ऐसे इंसान से मिल सका.

Tags: Business news, National News, Ratan tata

FIRST PUBLISHED :

October 18, 2024, 16:34 IST

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