नई दिल्ली. हाल के महीनों में स्मॉल कैप फंड्स ने भारतीय शेयर बाजार में सबसे अधिक गिरावट देखी है. इन फंड्स ने न केवल अपने मूल्य में भारी गिरावट झेली है, बल्कि लिक्विडिटी की समस्या के कारण निवेशकों की चिंताएं भी बढ़ी हैं. स्मॉल कैप फंड्स के पोर्टफोलियो में छोटे और मध्यम आकार की कंपनियों का अधिक हिस्सा होने के कारण, वे बाजार के उतार-चढ़ाव के प्रति अधिक संवेदनशील माने जाते हैं.
इन फंड्स में निवेश करना जोखिम और अवसर दोनों के साथ आता है. हाल के आंकड़े बताते हैं कि स्मॉल कैप फंड्स में औसतन 7% की गिरावट दर्ज की गई, जो अन्य फंड्स की तुलना में सबसे अधिक है. हालांकि, इन चुनौतियों के बीच, निवेशकों के लिए सही रणनीतियां अपनाकर इन फंड्स से बेहतर रिटर्न पाने की संभावना बनी रहती है.
1. स्मॉल कैप फंड्स पर गिरावट का असर
अक्टूबर 2024 में भारतीय शेयर बाजार में 6% की गिरावट दर्ज की गई, जिसमें स्मॉल कैप फंड्स ने सबसे अधिक गिरावट झेली. ये फंड्स औसतन 7% तक गिरे, जबकि मिड कैप फंड्स 6.5% और लार्ज कैप फंड्स 6% तक गिरे. विशेषज्ञों के अनुसार, स्मॉल कैप फंड्स अधिक जोखिम भरे होते हैं क्योंकि वे छोटे और मझोले आकार की कंपनियों में निवेश करते हैं, जो बाजार में उतार-चढ़ाव से अधिक प्रभावित होती हैं.
2. लिक्विडिटी की समस्या और स्ट्रेस असेसमेंट
स्मॉल कैप फंड्स में तरलता की समस्या बढ़ती जा रही है. AMFI के हालिया स्ट्रेस असेसमेंट के अनुसार, शीर्ष 15 स्मॉल कैप फंड्स को अपने पोर्टफोलियो का 50% बेचने में औसतन 25 दिन लगते हैं. निप्पॉन इंडिया स्मॉल कैप फंड को यह प्रक्रिया पूरी करने में 31 दिन लगे, जबकि एसबीआई स्मॉल कैप फंड को 56 दिन. लिक्विडिटी की यह कमी निवेशकों में डर पैदा करती है, खासकर जब बाजार में गिरावट आती है और लोग अपना पैसा वापस निकालना शुरू कर देते हैं.
3. जोखिम प्रबंधन और निवेश रणनीतियां
स्मॉल कैप फंड्स के प्रबंधक जोखिम कम करने के लिए विविधीकरण, तरल संपत्तियों में निवेश और हेजिंग रणनीतियों का उपयोग करते हैं. विशेषज्ञ लंबी अवधि के निवेशकों को SIP (सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान) के माध्यम से निवेश करने की सलाह देते हैं, क्योंकि यह बाजार के उतार-चढ़ाव का औसत निकालता है. इसके अलावा, निवेशकों को गुणवत्ता वाले फंड्स और अनुभवी प्रबंधकों का चयन करना चाहिए. बाजार सुधार के समय, ये फंड्स बेहतर रिटर्न दे सकते हैं.
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FIRST PUBLISHED :
November 24, 2024, 21:49 IST