हर सास खटूस नहीं होती! बहू अपनाएगी ये टिप्स तो सास भी बन जाएगी मां

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‘अमेरिकन सोसाइटी ऑफ फ्लोरिस्ट’ ने 1970 में अक्टूबर के आखिरी रविवार को मदर-इन लॉ डे मनाना शुरू किया (Image-Canva) ‘अमेरिकन सोसाइटी ऑफ फ्लोरिस्ट’ ने 1970 में अक्टूबर के आखिरी रविवार को मदर-इन लॉ डे मनाना शुरू किया (Image-Canva)

बॉलीवुड की फिल्मों में जब ललिता पवार, शशिकला, मनोरमा, अरुणा ईरानी और बिंदु सास बनती थीं तो दर्शकों को उनसे नफरत हो जाती थी. सास को स्क्रीन पर हमेशा से विलेन दिखाया गया. बहू के खिलाफ साजिश करना, बेटे को उनके खिलाफ भड़काना और बेचारी बहू के आंसू देख डरावनी मुस्कान देना…सास की पहचान बन गई. सास भले ही खड़ूस और नेगेटिव रोल में देखी गई हो लेकिन हर सास ऐसी हो जरूरी नहीं। हर बहू के लिए उनका साथ होना बेहद जरूरी है. 27 अक्टूबर को मदर इन लॉ डे ( Mother-In-Law Day) है.  इस मौके पर जानिए कैसे सास-बहू बन सकती हैं अच्छी दोस्त. 

बहू समझी जाती है पराई
सास के लिए बहू को अपनाना और बहू के लिए सास को अपनी मां मानना एक कठिन टास्क है. अमेरिका की एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी ने सास-बहू के रिश्ते पर स्टडी की. इसमें हजारों सास-बहू शामिल हुईं और सबने इसकी वजह ब्लड रिलेशन का ना होना बताई. सास ने यह भी कहा कि वह दामाद और बहू दोनों को बाहरी व्यक्ति समझती हैं. लेकिन इस सोच के बीच बहू फंस जाती है. सास चूंकि बुजुर्ग होती है इसलिए उनके व्यवहार और सोच को बदलना बहुत मुश्किल होता है. बहू और बेटा सैंडविच जनरेशन में आते हैं क्योंकि उन्हें अपने से बड़ी जनरेशन यानी अपने सास-ससुर और अपने से छोटी जनरेशन यानी अपने बच्चों की परवरिश की दोहरी जिम्मेदारी होती है. बहू से हर कोई उम्मीद करता है कि वह पूरे परिवार की जिम्मेदारी अच्छे से उठा लेगी. लेकिन बहू कभी बेटी नहीं समझी जाती. अगर बहू और बेटी का दुख एक जैसा हो तो बेटी के दुख को देख सास दुखी हो जाती है लेकिन जब बहू की बारी आती है तो उसकी परेशानियों को नजरअंदाज कर दिया जाता है. बहू परिवार की नई सदस्य होती है. उसे सबके व्यवहार और पसंद-नापसंद नहीं पता होती. खास बात यह है कि अधिकतर घरों में उसे यह बताया भी नहीं जाता. हर कोई उसी नई सदस्य से सुबह 5 बजे की चाय की उम्मीद लगाए बैठा होता है जबकि बहू को शादी से पहले ही सास को घर के तौर तरीकों के बारे में बताना चाहिए.

पावर गेम से होता टकराव
सास भी कभी बहू होती है. जब वह बहू होती है तो उस पर सास हुकुम चलाती है. जिस महिला ने उन ऑर्डर्स को माना होता है, वह भी सोचती है कि जब उसकी बहू आएगी तो वह उस पर राज करेगी. सास-बहू का पावर गेम घर का संतुलन बिगाड़ देता है. बहू के आने से पहले तक बेटा अपने फैसलों और रोजमर्रा के कामों में मां को शामिल करता है लेकिन जब बहू आती है तो यह पोजीशन बीवी ले लेती है. कई बार सास को अपना बेटा जोरू का गुलाम लगने लगता है क्योंकि वह अपने बेटे को अपने हिसाब से कंट्रोल करना चाहती है. ऐसा उन महिलाओं के साथ ज्यादा होता है जिनके पति ने कभी उनकी बात ना सुनी हो, हमेशा अपनी मां की बात को ऊपर रखा हो. ऐसी महिला जब सास बनती है तो वह अपनी बहू के लिए खतरनाक बन सकती है. सास-बहू की तनातनी खाने-पीने, पहनावे, धार्मिक आस्था और लाइफस्टाइल से जुड़ी हो सकती है. लेकिन यह खींचतान ज्यादातर किचन पॉलिटिक्स से ही शुरू होती है.    

अमेरिका के अमरिलो नाम के लोकल अखबार के संपादक जेने होवे ने पहली बार अपनी सास को सम्मान देने के लिए 5 मार्च 1934 को ‘मदर-इन-लॉ डे’ सेलिब्रेट किया (Image-Canva)

रिश्तों को वक्त देना जरूरी
रिलेशनशिप एक्सपर्ट कोमल यादव कहती हैं कि कोई भी रिश्ता एक दिन में नहीं बनता. सास-बहू का रिश्ता वैसे ही बहुत नाजुक होता है. शादी के शुरुआती साल एक बहू के लिए बहुत मुश्किल होते हैं क्योंकि उसके लिए ससुराल में हर इंसान नया होता है जिसमें उसका पति भी शामिल होता है. ऐसे में सास के साथ तुरंत मधुर रिश्ता बनाना आसान नहीं है. वक्त गुजरने के साथ लोग समझ आने लगते हैं. हर रिश्ते को वक्त देना बहुत जरूरी है और जब सास-बहू एक-दूसरे को समझने लगती हैं तो चीजें आसान होने लगती है. वैसे भी वक्त और इंसान हमेशा कभी एक-जैसे नहीं रहते. हर रिलेशनशिप सब्र रखने के साथ मजबूत बनता है.

बेटे-बहू की नहीं सास-बहू की कुंडली मिलाएं   
अक्सर लोग शादी से पहले बेटे-बहू की कुंडली मिलवाते हैं या लड़की-लड़के की मीटिंग कर उन्हें एक-दूसरे को समझने का मौका देते हैं. कुछ लोग शादी से पहले कपल थेरेपी भी लेते हैं लेकिन लड़की-लड़के की मीटिंग या कुंडली के अलावा सास की मीटिंग भी जरूरी है. इसके अलावा हर कपल्स को शादी से पहले थेरेपी लेनी चाहिए. इससे बहू बनने वाली लड़की पहले ही अपनी सास की पसंद-ना पसंद जान लेती हैं और इन सब चीजों से बहू-सास की कोल्ड वॉर भी नहीं रहती. 

सास और बहू महिला सशक्तिकरण का अच्छा उदाहरण बन सकती हैं (Image-Canva)

सास के साथ से बहू बनती सशक्त
अगर सास से अच्छा रिश्ता हो तो बहू आगे पढ़ भी सकती हैं और बढ़ भी सकती है. सास-बहू का अच्छा रिश्ता दोनों को सशक्त बनाता है. अगर सास बहू को सहज महसूस कराए और घर में अपनेपन का माहौल दें, तो बहू भी सास का साथ देती है. बहू और सास अच्छी दोस्त भी साबित हो सकती हैं. आज जो महिलाएं वर्किंग हैं और करियर में आगे बढ़ रही हैं, उनकी सफलता के पीछे पति ही नहीं उनकी सास भी शामिल होती हैं. सास ही बहू को घर से बाहर करियर बनाने के लिए प्रेरित करती हैं क्योंकि वह जानती हैं कि आज की महिलाएं करियर के साथ घर भी अच्छे से संभाल सकती हैं. सास बहू की अच्छी अंडरस्टैंडिंग से घर में शांति बनी रहती है.

ऐसे जीते सास का दिल
हर बहू सास की फेवरेट बन सकती है. रिलेशनशिप एक्सपर्ट कोमल यादव के अनुसार सास का दिल जीतने के लिए जरूरी है कि वह उनकी इज्जत करें. जब रिलेशनशिप में रिस्पेक्ट होती है तो हर रिश्ता मधुर बन जाता है. सास से हमेशा प्यार और विनम्रता से बात करें. उनके साथ वक्त बिताएं, उनकी पसंद की चीजें करें, उन्हें घुमाने ले जाएं. सास के पॉजिटिव गुण देखें और उनसे नई चीजें सीखने की कोशिश करें. घर के कामों में उनकी मदद करें. उनसे अपने दिल की बात करें और उनके मन का हाल जानें। सास की तारीफ करें. तारीफ हर किसी का दिल खुश कर देती है और बिना किसी मौके के उन्हें तोहफे भी दें. चाहे सास के साथ बहस भी हो जाए, तब भी उनसे माफी जरूर मांगे. उनसे बातचीत करें क्योंकि इससे हर मनमुटाव दूर होता है.  

Tags: Marriage ceremony, Married woman, Relationship, Rishton Ki Partein

FIRST PUBLISHED :

October 27, 2024, 16:30 IST

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