महार और मतंग में क्यों अटकी महायुति-MVA की जान, 88 सीटों पर करते हैं खेल

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मुंबई. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की तारीखें जैसे-जैसे करीब आ रही हैं, सभी राजनीतिक दलों में वोटरों को लुभाने की कोशिशें भी तेज हो रही हैं. लेकिन दलित वोटरों को लेकर महायुति और महा विकास अघाड़ी (एमवीए) में अलग खेल चल रहा है. हाल ही में दलित समुदाय के एक बड़े हिस्से का साथ मिलने के बाद महाराष्ट्र की सत्ताधारी महायुति को अपनी रणनीति में बदलाव करने के लिए मजबूर होना पड़ा है. बीते लोकसभा चुनावों में एमवीए की प्रचार मुहिम “संविधान और आरक्षण के खतरे” के इर्द-गिर्द घूम रही थी, जिसने राज्य के दलित समुदाय का समर्थन जुटाने में मदद की.

इसी वजह से एमवीए, जिसमें कांग्रेस, उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) और शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) शामिल हैं, ने लोकसभा चुनावों में 48 में से 30 सीटें जीतीं. इसके मुकाबले, सत्ताधारी महायुति, जिसमें भाजपा, एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी शामिल हैं, केवल 17 सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी. संविधान में संभावित बदलावों के डर ने दलित समुदाय के बीच वोटरों को एकजुट करने का काम किया और इसका नतीजा यह हुआ कि एमवीए ने उन 88 विधानसभा क्षेत्रों में से 51 में बढ़त बनाई, जहां दलितों की संख्या 15% से अधिक है.

ऐसे समय में जब सामाजिक न्याय और संविधान के अधिकारों की सुरक्षा के मुद्दे दलितों के बीच गूंज रहे हैं, एकनाथ शिंदे-देवेंद्र फडणवीस सरकार सक्रिय रूप से दलित समुदाय तक पहुंचने के लिए काम कर रही है. उनकी नई रणनीति में दलितों की भलाई के लिए विभिन्न योजनाएं पेश करना और अनुसूचित जातियों (SCs) की सब-क्लासिफिकेशन पर चर्चा शुरू करना शामिल है. महायुति की इस नीति को लेकर कई लोगों का मानना है कि यह अंबेडकरवादी आंदोलन से नहीं जुड़ने वाले दलित वोटरों को अपनी ओर खींचने की कोशिश है.

महाराष्ट्र में दलित फैक्टर
महाराष्ट्र की राजनीति में दलित समुदाय बेहद अहम भूमिका अदा करते हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार, अनुसूचित जातियां (SCs) राज्य की जनसंख्या का लगभग 12% हैं, जिसमें 59 से अधिक अलग-अलग जातियां शामिल हैं. दलित समुदाय को एकजुट मानने के विपरीत, यह वास्तव में काफी अलग है. विभिन्न SC समूहों में, अंबेडकरवादी आंदोलन के अनुयायी, विशेष रूप से महार, एक प्रमुख रोल निभाते हैं. महार समुदाय ने बी. आर. अंबेडकर के प्रभाव में आकर बौद्ध धर्म अपनाया, जाति भेदभाव का विरोध किया और सामाजिक समानता के लिए संकल्प दिखाया. नव-बौद्ध (महार) दलित जनसंख्या का लगभग 40% हैं, और उनकी राजनीति का केंद्र सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण होता है, जो उन्हें भाजपा और पूर्व में एकीकृत शिवसेना जैसी पार्टियों के खिलाफ खड़ा करता है.

ऐतिहासिक रूप से, भाजपा ने छोटे दलित समूहों, जैसे मातंगों, से समर्थन पाया है, जो SCs के भीतर अलग-अलग राजनीतिक सोच या विचारधारा को दिखाता है. यह जटिलता विभिन्न चुनावों में भी दिखाई देती है: 2019 विधानसभा चुनावों में, 88 विधानसभा सीटों में जहां दलित वोटरों की संख्या अधिक थी, भाजपा और उसके पूर्व सहयोगी शिवसेना ने 46 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को 33 सीटें मिलीं. हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनावों में दलित वोटों में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला, जब एमवीए गठबंधन ने इन सीटों में से 51 पर बढ़त बनाई, जबकि महायुति को 32 सीटें मिलीं. एमवीए ने यह प्रदर्शन इसलिए भी खास है कि इस बार लोकसभा चुनाव में प्रकाश अंबेडकर की पार्टी वंचित बहुजन आघाड़ी (वीबीए) जैसे अन्य दूसरे दल भी मैदान में थे, लेकिन वे जीत हासिल करने में नाकाम रहे.

भाजपा ने दलित समूहों पर बढ़ाया ध्यान, खासकर मतंग समुदाय की तरफ
हाल के लोकसभा चुनावों में मिली असफलता के बाद, सत्ताधारी महायुति गठबंधन ने अंबेडकरवादी आंदोलन से बाहर के दलित समूहों पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया है. यह रणनीति साफ तौर पर मतंग समुदाय को टारगेट करती है, जिसने अंबेडकरवादियों की तुलना में हिंदू सांस्कृतिक प्रथाओं से नजदीकी बनाए रखा है. मतंग समुदाय को गंभीर हाशिए का सामना करना पड़ रहा है, जिससे उनकी शिक्षा और रोजगार के अवसरों पर विपरीत प्रभाव पड़ा है, जबकि अंबेडकरवादी समुदाय के लोग अधिक शिक्षित और सरकारी नौकरियों में अपेक्षाकृत बड़ा हिस्सा रखते हैं.

महाराष्ट्र सरकार की ‘लाड़की बहन योजना’ जैसी पहलों, जिसमें 2.5 करोड़ आर्थिक रूप से पिछड़ी महिलाओं को 1,500 रुपये मासिक भत्ता दिया जाता है, का उद्देश्य कई कमजोर समुदायों, जिसमें मतंग भी शामिल हैं, को लाभ पहुंचाना है. हालांकि, भाजपा द्वारा अनुसूचित जातियों (SCs) के भीतर सब-क्लासीफिकेशन के लिए खुलापन दिखाना गैर-अंबेडकरवादी दलित समूहों तक पहुंचने की कोशिश है. सब-क्लासीफिकेशन का मतलब SCs के भीतर कोटा के भीतर कोटा है, जिससे विषमताओं को संबोधित करने और लाभों का बेहतर वितरण सुनिश्चित किया जा सके, जैसे कि शिक्षा और रोजगार में आरक्षण, विशेषकर जहां आंबेडकरवादी समुदाय कोटा लाभ में काफी आगे हैं.

Tags: BJP, Congress, Maharashtra predetermination 2024

FIRST PUBLISHED :

October 27, 2024, 18:29 IST

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