आज के समय में लोग अपनी प्रॉपर्टी रेंट पर देने से पहले काफी चीजों का ध्यान रखते हैं. बाकायदा रेंट अग्रीमेंट बनाया जाता है. ताकि किराएदार आने वाले समय में कोई परेशानी पैदा ना कर सके. लेकिन पहले के समय में ऐसा नहीं होता था. लोग अपने जानने वालों को रेंट पर मकान दे देते थे. इसके बाद कई बार किराएदार मकान को हड़प लेते थे. ऐसा ही कुछ हुआ था अजमेर के लाखन कोटड़ी चांदी का कुआं के पास बनी पुरानी हवेली के मालिक के साथ.
इस हवेली को लेकर पिछले पचास साल से मुकदमा चल रहा था. हवेली को पचास साल पहले किराए पर दिया गया था लेकिन किराएदार ने उसपर कब्ज़ा जमा लिया था. कोर्ट में भी किराएदार ने हवेली को अपना बताते हुए हक़ जताया था. लेकिन पचास साल के बाद आखिरकार हवेली पर उसके असली मालिक का हक मुकम्मल कर दिया गया.
1974 से चल रहा था मामला
इस हवेली को उसके मालिक ने एक परिवार को रेंट पर दिया था. लेकिन रेंट पर रहते हुए किराएदार ने हवेली पर अपना हक़ जमा लिया. बार-बार खाली करने को कहने के बाद भी परिवार ने ऐसा नहीं किया. थक-हारकर मकान मालिक ने 1974 में कोर्ट में मुकदमा दर्ज करवा दिया था. इसके बाद से ही मामले की सुनवाई चल रही थी लेकिन फैसला नहीं आ रहा था.
ऐसे मिला न्याय
मामले को लेकर हवेली के मालिक के वकील आयुष गोपालकृष्ण अग्रवाल ने बताया कि उनकी क्लाइंट भंवरी देवी ने किराएदार पोलू पर 1974 में ही केस दर्ज करवाया था. सिविल कोर्ट ने भंवरी देवी को मकान पर कब्ज़ा दे दिया था लेकिन किराएदार ने 2002 में फिर से हवेली पर दावा ठोंका था. इसे ख़ारिज कर दिया गया था. हाईकोर्ट में जब ये मामला गया तब भी असली मालिक को उसपर हक दिया गया. आखिरकार पचास साल के संघर्ष के बाद किराएदार को हवेली से निकाल दिया गया है.
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FIRST PUBLISHED :
November 20, 2024, 11:38 IST