Last Updated:January 31, 2025, 17:05 IST
सरकार ने इकोनॉमिक सर्वे 2025 में कहा कि काम के घंटों पर प्रतिबंध से मैन्युफैक्चरर्स को नुकसान हो रहा है. इन्फोसिस के नारायण मूर्ति और एलएंडटी के एस.एन. सुब्रमण्यम ने काम के घंटों को 75-90 घंटे तक बढ़ाने की सिफा...और पढ़ें
हाइलाइट्स
- सरकार ने काम के घंटों पर प्रतिबंध से मैन्युफैक्चरर्स को नुकसान बताया.
- नारायण मूर्ति और एस.एन. सुब्रमण्यम ने काम के घंटों को बढ़ाने की सिफारिश की.
- काम के घंटों पर प्रतिबंध से कर्मचारियों की कमाई क्षमता सीमित होती है.
नई दिल्ली. बजट 2025 से पहले केंद्र सरकार ने इकोनॉमिक सर्वे जारी किया है. इसमें भारतीय अर्थव्यवस्था का इतिहास और भविष्य की रूपरेखा आमजन के सामने रखी गई है. इकोनॉमिक सर्वे में सरकार की ओर से कहा गया है कि हफ्ते में काम के घंटों पर लगाम लगाना मैन्युफैक्चरर्स को नुकसान पहुंचा रहा है. सरकार ने यह बात ऐसे समय में सामने रखी है जब पूरे देश में काम के घंटों को लेकर भारी बहस छिड़ी हुई है. इन्फोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति से लेकर एलएंडटी के चेयरमैन एस.एन. सुब्रमण्यम इस काम के घंटों को 75-90 घंटे तक किए जाने की सिफारिश दबी जुबान में कर चुके हैं.
इकोनॉमिक सर्वे में कहा गया है काम के घंटों को दिन, हफ्ते, तिमाही और साल के हिसाब से एक तय सीमा में बांध देने से कर्मचारियों की पैसा कमाने की क्षमता भी सीमित हो जाती है. सर्वे के अनुसार, माल को कम समय में मार्केट तक पहुंचाने के लिए जरूरी है कि प्रोडक्शन को बढ़ाया जाए. बकौल सर्वे, इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन उद्योगों को यह आजादी देती है कि वह काम के घंटों का औसत 3 हफ्ते के अंतराल पर पूरा करें.
भारत में क्या है स्थिति
भारत में फैक्ट्रीज एक्ट (1948) के सेक्शन 51 के तहत किसी भी वयस्क कर्मचारी को हफ्ते में 48 घंटे से अधिक काम नहीं करने दिया जाना चाहिए. सर्वे में इसी एक्ट के एक अन्य सेक्शन 65(3)(iv) की भी बात की गई है. इस सेक्शन के अनुसार, कोई भी कर्मचारी लगातार 7 दिन से ज्यादा ओवरटाइम नहीं कर सकता है. इसके अलावा किसी भी तिमाही में ओवरटाइम 75 घंटे से ज्यादा नहीं होना चाहिए. सर्वे में कहा गया है कि काम के घंटों पर यह प्रतिबंध कर्मचारियों को और पैसा कमाने से रोक रहा है.
वृद्धि दर को हो रहा नुकसान
सर्वे के अनुसार, “भारत की अर्थव्यवस्था की क्षमता के मद्देनजर कोई भी कंपनी अगर इन रेग्युलेशंस के तहत काम करती है तो वह वृद्धि दर, निवेश और रोजगार सृजन की संभावनाओं को ठेस पहुंचना तय है. उदाहरण के लिए अगर किसी विशेष सीजन में उत्पादों की मांग बढ़ती है तो कंपनियों के पास यह छूट होनी चाहिए कि वे बिना काम के घंटों को बढ़ा सकें और कम मांग वाले सीजन में घंटों को घटा सकें.” हालांकि, मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन का कहना है कि हर चीज के लिए पॉलिसी में बदलाव करना जरूरी नहीं है कुछ चीजें उद्योगों एक बैलेंस बनाते हुए खुद से करनी होंगी.
Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
January 31, 2025, 17:05 IST