हाइलाइट्स
एग्जिट पोल्स के अनुमान हमेशा वोटिंग खत्म होने के बाद ही शुरू होते हैंओपिनियन पोल का सीधा मतलब है जनता की रायएग्जिट पोल्स के पूर्वानुमान वोट देकर निकलने वाले लोगों के रुझान पर
झारखंड में आज दूसरे चरण की वोटिंग के साथ मतदाताओं के वोट ईवीएम में बंद हो जाएंगे. आज ही इकलौते चरण के बाद महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में वोटिंग प्रक्रिया खत्म हो जाएगी. इसके बाद जैसे ही वोटिंग का काम शाम को बंद होगा, तब एग्जिट पोल के अनुमान आने शुरू हो जाएंगे. जो बताएंगे कि इन दोनों राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद वहां किसकी सरकार बनने की उम्मीद है.
क्या आपको मालूम है कि एक्जिट पोल के अनुमानों को टीवी पर दिखाने की अनुमति वोटिंग के बाद ही भारतीय चुनाव आयोग क्यों देता है. क्या इसका कोई नियम है. तो इसका जवाब है कि इसका बकायदे एक नियम है. कोई भी टीवी चैनल उसका उल्लंघन नहीं कर सकता. चुनाव आयोग जब आधिकारिक तौर पर वोटिंग खत्म होने के ऐलान करता है तो इस हरी झंडी के बाद एग्जिट पोल के रिजल्ट्स, जिन्हें अनुमान कहना ज्यादा उचित होगा, वो न्यूज टीवी चैनल्स पर आना शुरू हो जाते हैं. हालांकि पूरी दुनिया में अब एग्जिट पोल्स को लेकर सवाल उठ रहे हैं.
एग्जिट पोल असल में रुझानों के जरिए निष्कर्ष निकालने की कोशिश होती है. लोगों से बातचीत करके अंदाज लगाया जाता है कि नतीजे किधर की ओर जा सकते हैं. इसके जरिए अनुमान लगाया जाता है कि कौन सा सियासी दल कहां जीत रहा है और कौन कहां पीछे होगा. हालांकि इनके खरे उतरने को लेकर हमेशा शक रहा है.
आमतौर पर एग्जिट पोल्स के पूर्वानुमान वोट देकर निकलने वाले लोगों के रुझान पर ही टिके होते हैं.
क्या है एग्जिट पोल को लेकर चुनाव आयोग का नियम
चुनाव आयोग ने नियम बना रखा है कि आखिरी चरण की वोटिंग के पहले एग्जिट पोल के जरिए अनुमानित नतीजों का ट्रेंड नहीं बताया जा सकता. आखिरी चरण की वोटिंग के बाद चुनाव आयोग जब शाम को आधिकारिक तौर पर बतायेगा कि आखिर चरण में कितना मतदान हुआ, उसके बाद टीवी चैनल्स और कुछ समाचार साइट्स एग्जिट पोल के वो नतीजे देने लगेंगे, जो उन्होंने खुद या एजेंसियों के जरिए कराए हैं.
चूंकि एग्जिट पोल की सटीकता पर हमेशा ही सवाल उठते हैं लिहाजा ये सवाल उठना स्वाभाविक है कि ये एग्जिट पोल्स क्या होते हैं और चुनाव परिणामों को लेकर वो जो अनुमान लगाते हैं, वो कितने सटीक होते हैं.
एग्जिट पोल्स क्या होते हैं और वो कैसे किए जाते हैं?
– एग्जिट पोल्स वोट करके पोलिंग बूथ के बाहर आए लोगों से बातचीत या उनके रुझानों पर आधारित हैं. इनके जरिए अनुमान लगाया जाता है कि नतीजों का झुकाव किस ओर है. इसमें बड़े पैमाने पर वोटरों से बात की जाती है. इसे कंडक्ट करने का काम आजकल कई ऑर्गनाइजेशन कर रहे हैं.
एग्जिट पोल्स को टेलिकास्ट करने की अनुमति वोटिंग खत्म होने के बाद ही क्यों
– जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 126 ए के तहत वोटिंग के दौरान ऐसी कोई चीज नहीं होनी चाहिए जो वोटरों के मनोविज्ञान पर असर डाले या उनके वोट देने के फैसले को प्रभावित करे. वोटिंग खत्म होने के डेढ़ घंटे तक एग्जिट पोल्स का प्रसारण नहीं किया जा सकता है. और ये तभी हो सकता है जब सारे चुनावों की अंतिम दौर की वोटिंग भी खत्म हो चुकी हो.
क्या एग्जिट पोल्स हमेशा सही होते हैं?
– नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है. अतीत में ये साबित हुआ है कि एग्जिट पोल्स ने जो अनुमान लगाए, वो गलत साबित हुए. भारत में एग्जिट पोल का इतिहास बहुत सटीक नहीं रहा है. कई बार एग्जिट पोल नतीजों के बिल्कुल विपरीत रहे हैं.
– आमतौर पर एग्जिट पोल्स के पूर्वानुमान वोट देकर निकलने वाले लोगों के रुझान पर ही टिके होते हैं.
ओपिनियन पोल्स और एग्जिट पोल्स के बीच अंतर क्या है?
– ओपनियन पोल्स वोटिंग से बहुत पहले वोटरों के व्यवहार और वो क्या कर सकते हैं, ये जानने के लिए होता है. इससे ये बताया जाता है कि इस बार वोटर किस ओर जाने का मन बना रहा है. वहीं एग्जिट पोल्स हमेशा वोटिंग के बाद होता है.
ओपिनियन पोल क्या है?
ओपिनियन पोल का सीधा मतलब है जनता की राय. जनता की राय को समझने या मापने के लिए अलग – अलग तरह के वैज्ञानिक तरीकों का प्रयोग किया जाता है.
चुनावी सर्वे में हमेशा रैंडम सैंपलिंग का ही प्रयोग होता है. देश की बड़ी सर्वे एजेंसी लोकनीति – CSDS भी रैंडम सैंपलिंग ही करती है. इसमें सीट के स्तर पर, बूथ स्तर पर और मतदाता स्तर पर रैंडम सैंपलिंग होती है. मान लीजिए किसी बूथ पर 1000 मतदाता है. उसमें से 50 लोगों का इंटरव्यू करना है. तो ये 50 लोग रैंडम तरीके से शामिल किए जाएंगे.
तो इसके लिए एक हज़ार का 50 से भाग दिया तो उत्तर आ गया 20. इसके बाद वोटर लिस्ट में से कोई एक ऐसा नंबर रैंडम आधार पर लेंगे जो 20 से कम हो. जैसे मान लीजिए आपने 12 लिया. तो वोटर लिस्ट में 12वें नंबर पर जो मतदाता होगा वो आपका पहला उत्तरदाता है
जिसका आप इंटरव्यू करेंगे, फिर उस संख्या 12 में आप 20, 20 ,20 जोड़ते जाइये और जो संख्या आए उस नंबर के मतदाता का इंटरव्यू करते जाइए.
ओपिनियन पोल की तीन शाखाएं हैं. प्री पोल, एग्जिट पोल और पोस्ट पोल. आम तौर पर लोग एग्जिट पोल और पोस्ट पोल को एक ही समझ लेते हैं लेकिन ये दोनों एक दूसरे से काफी अलग हैं.
प्री पोल क्या होता है?
चुनाव की घोषणा के बाद और मतदान तिथि से पहले जो सर्वे होते हैं उन्हें प्री पोल कहा जाता है.
ये कब शुरू हुए?
माना जाता है कि ये 1967 में सामने आए. एक डच समाजशास्त्री और पूर्व राजनीतिज्ञ मार्सेल वान डेन ने देश में चुनाव के दौरान एग्जिट पोल्स किया. हालांकि ये भी कहा जाता है कि इसी साल अमेरिका में ऐसा पहली बार एक राज्य के चुनावों के दौरान किया गया था. वैसे एग्जिट पोल्स जैसे अनुमान की बातों का 1940 में होना कहा जाता है.
इनका विरोध क्यों होता रहा है?
– क्योंकि आमतौर पर ये न तो बहुत वैज्ञानिक होते हैं और न ही बहुत ज्यादा लोगों से बातकर उसके आधार पर तैयार किए जाते हैं. इसीलिए अमूमन ये हकीकत से अक्सर दूर होते हैं. कई देशों में इन पर रोक लगाने की मांग होती रही है. भारत में वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में चुनाव आयोग ने इस पर रोक लगा दी थी. दुनियाभर में अब ज्यादातर लोग इन्हें विश्वसनीय नहीं मानते.
Tags: Exit poll, Jharkhand predetermination 2024, Maharashtra Elections
FIRST PUBLISHED :
November 20, 2024, 13:30 IST