मुंबई: महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के नतीजे आ चुके हैं। राज्य में महायुति को बंपर जीत मिली है, वहीं महाविकास अघाड़ी को हार का सामना करना पड़ा है। महाविकास अघाड़ी का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा है और वह 288 में से 50 सीटें भी हासिल नहीं कर पाई है। इस चुनाव में राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार का मैजिक भी काम नहीं आ सका है और खुद उनकी पार्टी के 86 कैंडिडेट्स में केवल 10 को ही जीत नसीब हुई है। ऐसे में महाराष्ट्र की सियासत में ये चर्चा भी शुरू हो गई है कि क्या राज्य में शरद पवार का मैजिक खत्म हो गया है? एक समय था जब महाराष्ट्र में उनकी तूती बोलती थी लेकिन आज उनकी पार्टी के केवल 10 कैंडिडेट्स ही चुनाव जीतकर आए हैं।
शरद पवार के सियासी ग्राफ में लगातार हो रही गिरावट
शरद पवार एक समय कांग्रेस के बड़े नेता हुआ करते थे। लेकिन सोनिया गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाए जाने के विरोध में एनसीपी का गठन हुआ और इसके संस्थापक शरद पवार बने। शरद ने 10 जून 1999 को कांग्रेस से अलग होकर पीए संगमा और तारिक अनवर सहित कुछ अन्य नेताओं के साथ मिलकर इस पार्टी को बनाया।
साल 2000 में एनसीपी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिला लेकिन 23 साल के बाद साल 2022 में शरद पवार को वो दिन देखना पड़ा, शायद जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी। भतीजे अजित पवार की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की वजह से 2022 में उनकी पार्टी टूट गई।
अजित पवार ने बगावत कर दी और जब ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो कोर्ट के निर्देश पर फैसला अजित पवार के हक में आया। अजित पवार गुट को ही असली एनसीपी करार दिया गया और उन्हें ही पार्टी का चिन्ह भी मिला।
इसके बाद शरद पवार के गुट को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) नाम मिला। अपनी ही बनाई पार्टी में शरद पवार ने अपना नियंत्रण खो दिया और अब महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी उनकी पार्टी ने खराब प्रदर्शन किया है।
महाराष्ट्र चुनावों में भी करारी शिकस्त
महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में शरद पवार की पार्टी ने 86 कैंडिडेट उतारे थे, जिसमें से महज 10 को ही जीत नसीब हुई है। एक समय था जब शरद पवार के पास मजबूत जनाधार हुआ करता था लेकिन इस चुनाव के नतीजों ने पवार के राजनीतिक जीवन के ग्राफ को काफी नीचे की ओर धकेल दिया है।
ऐसे में ये लगने लगा है कि एक तरफ उम्र भी उनका साथ नहीं दे रही और दूसरी ओर सियासी समीकरण भी उनके पाले में नहीं हैं। शरद पवार इतना मजबूर हो जाएंगे, ये महाराष्ट्र कि सियासी पंडितों के लिए वाकई चौंकाने वाली बात है। शरद पवार हमेशा से जमीनी नेता रहे लेकिन वर्तमान राजनीतिक गोटियां उनके हाथ से लगातार फिसल रही हैं।