एक साइकोलॉजिस्ट ने बताया है कि आखिर कई लोगों को डरना क्यों अच्छा लगता है. यानी ऐसा क्यों होता है कि लोगों को डराने वाली ...अधिक पढ़ें
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- Last Updated : October 22, 2024, 08:01 IST
दुनिया में डर की कमी नहीं हैं. खौफनाक घरेलू हिंसा, युद्ध, स्थानीय दादागिरी, अपराध का संसार, इनके लिए हमें दूर जाने की जरूरत नहीं है. ये हमारे आसपास हैं. आम आदमी के लिए डर तक पहुंच कतई मुश्किल काम नहीं हैं. लेकिन फिर भी लोग डरना चाहते हैं. वे डरावनी फिल्में, टीशोज देखना चाहते हैं. डरावनी कहानी वाले उपन्यास पढ़ते हैं. वे सोशल मीडिया पर भूतों की कहानियां किस्से सुनते हैं. मॉल में भूतहा डराने वाले शो के लिए फीस देते हैं. यहां तक कि हैलोवीन जैसा उत्सव भी मनाया जाता है. पर ये सब क्यों? एक मनोवैज्ञानिक ने इस सवाल का जवाब देने की कोशिश की है, जो खुद इस तरह की कहानियां लिखता है जिसमें डर का मसाला होता है.
नियंत्रित हालात के डर
पेन स्टेट यूनिवर्सिटी में साइकोलॉजी पढ़ाने वाली प्रोफेसर सारा कोलेट का कहना है कि वैसे तो डर इंसान को तोड़ सकते हैं, पागल तक कर सकते हैं. डर के प्रति इस आकर्षण की वजह बताने के लिए वे एक सिद्धांत का हवाला देती हुए कहती हैं जिसके मुताबिक भावनाएं इंसानों में सार्वभौमिक अनुभव की तरह पनपती हैं क्योंकि उनकी वजह से ही हमें बच सके थे खुद को जिंदा रख सके थे. लेकिन सुरक्षित माहौल का नियंत्रित डर इंसान के लिए मनोरंजक हो सकता है. और यह लोगों के लिए असल जिंदगी के खतरों का सामना करने के लिए खुद को तैयार करने का तरीका है.
खतरा महसूस होने पर शरीर में क्या होता है?
जब आप खुद को किसी खतरे में महसूस करते हैं, तो एड्रेनालाइन हारमोन शरीर में बढ़ जाता है. इससे शरीर में अस्तित्व के लिए लड़ाई या बच कर निकलने वाली प्रतिक्रिया सक्रिय हो जाती है. ऐसे में आपके दिल की धड़कन बढ़ जाएगी, आपकी सांस तेज हो जाएगी और आपका ब्लडप्रेशर बढ़ जाएगा. तब आपका शरीर जितनी जल्दी हो सके, या तो खुद को आत्मरक्षा के लिए या फिर खतरे से बच कर निकलने के लिए तैयार करेगा.
बहुत से लोग डरावनी फिल्म देखने के बाद खुद को राहत से भरा जैसा महसूस करते हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Canva)
नियंत्रित डर का लाभ
यह शारीरिक प्रतिक्रिया नाजुक होती है जब हम असल खतरे का समाना करते है. जब हम नियंत्रित डर का अनुभव करते हैं तो हमें ऊर्जावान अहसास का आनंद लेते हैं. यही वजह है कि कई रात को काम से थक कर घर पहुंचने के बाद डरावने टीवी शो या नॉवेल का आनंद लेना पसंद करते हैं. जब आप खतरे से निपट लेते हैं तो आपका शरीर न्यूरोट्रांसमिटर डोपामान छोड़ता है जो आपको सुकून और खुशी का अहसास करवाता है. एक स्टडी में शोधकर्ताओं ने पाया कि भूतहा घर में जाने वाले लोगों के दिमाग में, हालात का सामना करने के बाद ,कम सक्रियता दिखती है. पड़ताल सुझाती है कि डरावने टीवी शो, नॉवेल, या वीडियो गेम असल में बाद में आपको शांत करते हैं.
जुड़ने का भाव और डर
लोगों का खुद का सामाजिक तौर पर दूसरों से जुड़ने का अहसास दिमागी और शारीरिक सेहत के लिए बहुत जरूरी है. एक साथ डर का अहसास करना लोगों को जुड़ने की भावना पैदा करता है. डर के नियंत्रित अनुभव लोगों में एक तरह से जुड़ने के भाव के मौके पैदा करता है. तनाव का सामना ना केवल “लड़ो या बच निकलो” की प्रतिक्रिया तो शुरू करता है.
असली डर और नियंत्रित डर जमीन आसमान का अंतर पैदा करते हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Canva)
एक असर ये भी
कई हालात में यह “’टेंड एंड बिफ्रेंड सिस्टम” का बर्ताव शुरू कर देता है जिसमें खतरे के समय इंसान में बच्चों और मित्रों के लिए सुरक्षा का भाव पैदा करता है. यह प्रेम के हारमोन ऑक्सीटोसिन से ज्यादा संचालित होता है. यही वजह है जब भी अनजान लोगों का कोई समूह किसी खतरे का मिल कर सामना करता है तो उनमें एक तरह का जुड़ाव हो जाता है.
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डेनमार्क की आरहूस यूनिवर्सिटी के रीक्रिएश्नल फियर लैब में हुई स्टडी ने दिखाया कि जो लोग कोविड महमारी के दौरान नियमित तौर पर डरावना फिल्में आदि देखते थे. वे दूसरों की तुलना में मनोवैज्ञानिक तौर पर ज्यादा मजबूत होकर निकले. मनोवैज्ञानिक कहता है कि मजबूत इस तरह की ट्रेनिंग का भी नतीजा हो सकती है. इस तरह से निंयत्रित डर आपको दुनिया में बचने और खुद को ढालने में मददगार हो सकता है. सारा कहती हैं कि कॉमेडी और खौफनाक थ्रिलर में से दूसरे को चुनना आपकी सेहत के लिए अच्छा हो सकता है.
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FIRST PUBLISHED :
October 22, 2024, 08:01 IST