‘अब मैला ढोने वाला भी बन सकता है विधायक’, जम्मू-कश्मीर में पहली बार MLA चुन रहा वाल्मीकि समुदाय

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Valmiki, Jammu Kashmir Assembly Elections 2024- India TV Hindi Image Source : PTI जम्मू के गांधीनगर में वोट डालने के बाद वाल्मीकि समुदाय के लोग।

जम्मू: लंबे समय से मतदान करने के अधिकार से वंचित वाल्मीकि समुदाय के लोगों ने मंगलवार को जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में पहली बार वोट डाला। अनुच्छेद 370 की वजह से इस समुदाय के लोग विधानसभा चुनावों में मतदान नहीं कर पाते थे। वोट डालने के बाद बेहद खुश नजर आ रहे समुदाय के लोगों ने इसे ‘ऐतिहासिक क्षण’ बताया। वाल्मीकि समुदाय के लोगों को मूल रूप से 1957 में पंजाब के गुरदासपुर जिले से राज्य सरकार द्वारा सफाई कार्य के लिए जम्मू-कश्मीर लाया गया था। सूबे में लंबा समय बिताने के बावजूद इस समुदाय के लोगों को जम्मू-कश्मीर में वोट डालने का अधिकार नहीं मिला था।

‘ 45 साल की उम्र में पहली बार मतदान कर रहा’

जम्मू के एक पोलिंग बूथ पर मतदान करने वाले घारू भाटी ने कहा, ‘मैं 45 साल की उम्र में पहली बार मतदान कर रहा हूं। हम लोग अपने जीवनकाल में पहली बार जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों में भाग लेने को लेकर रोमांचित और उत्साह से भरे हुए हैं। यह हमारे लिए एक बड़े त्योहार की तरह है।’ अपने समुदाय के लिए नागरिकता का अधिकार सुनिश्चित करने को लेकर 15 वर्षों से अधिक समय तक इन प्रयासों का नेतृत्व करने वाले भाटी ने कहा, ‘यह पूरे वाल्मीकि समुदाय के लिए एक त्योहार है। हमारे पास 18 साले से लेकर 80 साल तक की उम्र के मतदाता हैं।’

‘पूरे वाल्मीकि समुदाय के लिए ऐतिहासिक क्षण’

भाटी ने कहा, ‘हमसे पहले की दो पीढ़ियों को इस अधिकार से वंचित रखा गया था, लेकिन जब अनुच्छेद 370 को निरस्त किया गया तो न्याय की जीत हुई और हमें जम्मू-कश्मीर की नागरिकता प्रदान की गई। ‘दशकों से सफाई कार्य के लिए यहां लाए गए हमारे समुदाय को वोट देने के अधिकार और जम्मू-कश्मीर की नागरिकता सहित बुनियादी अधिकारों से वंचित रखा गया था। यह पूरे वाल्मीकि समुदाय के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है। आज हम मतदान कर रहे हैं। कल हम अपने लोगों का प्रतिनिधित्व करेंगे।’

‘यह हमारे जीवन में एक नए युग की शुरुआत’

भाटी ने कहा, ‘यह हमारे जीवन में एक नए युग की शुरुआत है। हम अपने मुद्दों को विधानसभा में ले जाएंगे। कल्पना कीजिए कि हमारे समुदाय का एक सदस्य जो कभी केवल मैला ढोना ही अपना भाग्य समझता था, अब विधायक या मंत्री बनने की आकांक्षा रख सकता है। हम इतने बड़े बदलाव को होते हुए देख रहे हैं।’ बता दें कि पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थियों और गोरखा समुदायों के साथ वाल्मीकि समुदाय के लोगों की संख्या करीब 1.5 लाख है। वे जम्मू, सांबा और कठुआ जिलों के विभिन्न हिस्सों, खासकर सीमावर्ती इलाकों में रहते हैं। (भाषा)

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