Last Updated:January 31, 2025, 14:04 IST
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए अबॉर्शन को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है. अब महिलाओं को छह महीने के गर्भ को गिराने के लिए कोर्ट से इजाजत लेने की जरुरत नहीं हैं.
एक महिला के लिए मां बनने का अहसास दुनिया में सबसे खूबसरत होता है. अपने अंदर एक नई जिंदगी को पैदा करने का सौभाग्य भगवान ने सिर्फ महिला को दिया है. लेकिन कई बार ये तोहफा महिला के लिए बुरा सपना बन जाता है. कई बार महिला के गर्भ में उसके साथ हुई दरिंदगी का बीज पनपने लगता है. ऐसी स्थिति में महिला उससे पीछा छुड़ाने की कोशिश करती है लेकिन उसके आगे कानून आड़े आने लगता है.
मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने एक ऐसे ही मामले में सुनवाई करते हुए अहम फैसला सुनाया है. फैसले के मुताबिक़, अब इस तरह की प्रेग्नेंसी को अबोर्ट करने के लिए महिला को छह महीने तक कोर्ट से परमिशन लेने की जरुरत नहीं है. यानी अगर महिला के गर्भ में दुष्कर्म के परिणाम स्वरुप गर्भ ठहरा है तो वो चौबीस हफ्ते के अंदर बिना कोर्ट की अनुमति के अबॉर्शन करवा सकती है.
क्या आया फैसला?
कोर्ट में जिस महिला के केस पर फैसला सुनाया गया वो छह से सात हफ्ते की गर्भवती थी. कोर्ट के फैसले के मुताबिक, बीस हफ्ते तक के गर्भ में रजिस्टर्ड डॉक्टर द्वारा ही अबॉर्शन किया जाता है. इससे ज्यादा यानी कई बीस से चौबीस हफ्ते के मामलों में दो डॉक्टर्स की अनुमति लेना जरुरी है. अगर चौबीस हफ्ते के ऊपर का गर्भ है तब गर्भपात के लिए कोर्ट से अनुमति लेना अनिवार्य है.
पीड़िताओं को मिली राहत
कोर्ट के इस फैसले से उन महिलाओं को राहत मिली है जो कोर्ट के लंबे न्याय प्रक्रिया के कारण अबॉर्शन के समय को पार कर जाती थीं. जिस मामले पर सुनवाई की गई, उसे लेकर कोर्ट ने कहा कि चूंकि पीड़िता का भ्रूण छह से सात हफ्ते का था, इस कारण उसका गर्भपात मेडिकल कॉलेज में ही किया जा सकता है.
First Published :
January 31, 2025, 14:04 IST