तारा बाघिन को लेने लंदन पहुंचे थे बिली अर्जन सिंह. फाइल फोटो
पीलीभीत. वैसे तो दुधवा समेत तराई के जंगल सदियों से ही बंगाल टाइगर का वास स्थल हैं. लेकिन एक समय ऐसा भी था जब ऐसा लगता था जैसे तराई से बाघों का लगभग सफाया सा हो गया था. लेकिन एक वन्यजीव प्रेमी की सनक ने तराई के जंगलों को फिर से गुलजार बनाया. तराई में बाघों के पुनर्वास के लिए यह शख्स लंदन स्थित एक चिड़ियाघर से एक बाघिन को लेकर आए, जिसे शिकार से लेकर सर्वाइवल के सभी गुर सिखाने के बाद उसे दुधवा के जंगलों में छोड़ा. ऐसा माना जाता है कि तराई के बाघों की शानदार कद काठी कुनबे लगातार वृद्धि में उस बाघिन का अहम योगदान है.
दरअसल, यह वन्यजीव प्रेमी और कोई नहीं बल्कि दुधवा के जनक बिली अर्जन सिंह हैं. बिली अर्जन सिंह के जीवन और तराई के लिए योगदान पर अधिक जानकारी देते हुए लोकल 18 से बातचीत करते हुए वाइल्ड लाइफ व्लॉगर और वन्यजीव विशेषज्ञ विवेक अवस्थी बताते हैं कि, इंदिरा गांधी को दुधवा नेशनल पार्क की स्थापना के लिए मनाने में बिली अर्जन सिंह का अहम योगदान रहा है. वहीं बिल्ली प्रजाति से विशेष लगाव और प्रेम के चलते ही कुंवर अर्जन सिंह, ‘बिली’ अर्जन सिंह कहलाए.
पलिया कस्बे को बनाया अपना घर
बिली अर्जन सिंह का जन्म 1917 में गोरखपुर में हुआ था. बिली अर्जन सिंह ब्रिटिश भारतीय सेना में बतौर अफसर लंबे अरसे विदेश में रहे. भारत वापसी के बाद वे खीरी जिले के पलिया कस्बे में आ बसे जहां उन्होंने खुद को केवल शिकार और खेती में रमा लिया. लेकिन एक बार एक तेंदुए के शिकार के बाद से उन्होंने अपना मन बदल लिया और वे शिकार की बजाए बाघों, तेंदुओं समेत बड़ी बिल्लियों के संरक्षण में जुट गए.
टाइगर हेवन और ‘तारा’
लंबे अरसे तक शिकार खेलने वाले बिली अर्जन सिंह का हृदय परिवर्तन हुआ और वे शिकारी से संरक्षक बन गए. जिसके बाद उन्होने संरक्षण को कई कार्य किए. उन्होंने दुधवा में विलुप्ति की कगार पर पहुंचे हिरणों के पुनर्वास को लेकर कई कार्य किए. वहीं बिली अर्जन सिंह तराई में लगातार घटती बाघों की संख्या को लेकर भी चिंतित थे. इसी के चलते वर्ष 1976 में वे लंदन स्थित चिड़ियाघर से तारा नामक बाघिन को भारत लेकर आए. बिली अर्जन सिंह ने एक निजी जंगल बनाया था जिसे टाइगर हेवन कहते थे, टाइगर हेवन में ही बिली अर्जन सिंह ने तारा को बड़ा किया था. बिली ने तारा को हंटिंग समेत जंगल में रहने के लिए सभी आवश्यक गुर सिखाए थे. कुछ समय अंतराल के बाद उन्होने तारा को तराई के जंगलों में ही छोड़ दिया था.
इस कारण बढ़ा कद?
तारा बाघिन ने तराई के जंगलों में रहने के दौरान 9 शावकों को जन्म दिया. एक तरफ जहां तराई समेत देश मे बाघ विलुप्ति की कगार पर थे. ऐसे में बाघों का कुनबा 9 के आंकड़े से बढ़ना अपने आप में बड़ी बात थी. ऐसा माना जाता है कि तारा के बाद से तराई में पाए गए कई बाघ औसत आकार से बड़े थे व काफी हद तक साइबेरियन टाइगर्स से मिलते थे. कई यूरोपीय विशेषज्ञों का दावा था कि तारा एक ‘इंडो साइबेरियन बाघ” थी. ऐसे में कुछ लोग तो इसे एक बड़ा योगदान मानते हैं तो वहीं कई लोग इसे आनुवांशिक प्रदूषण मानकर बिली अर्जन सिंह की आलोचना करते हैं.
Tags: Local18, Pilibhit news, Uttar Pradesh News Hindi
FIRST PUBLISHED :
November 25, 2024, 21:25 IST