चंबा रुमाल
कांगडा: जब भी हिमाचल प्रदेश की संस्कृति की बात आती है, तो चंबा रुमाल की भी याद आती है. चंबा रुमाल का एक बहुत ही प्रसिद्ध इतिहास है जो वर्षों पुराना है. कांगड़ा कार्निवल में लगा चंबा रुमाल का स्टॉल सबको अपनी ओर आकर्षित कर रहा है. अक्सर चंबा रुमाल पर भगवान कृष्ण या शिव का चित्रण किया जाता है. धर्मशाला पुलिस ग्राउंड में कांगड़ा कार्निवल का आयोजन किया गया है, जहां कई स्टॉल लगाए गए हैं. इनमें से एक स्टॉल चंबा की रहने वाली अंजली वकील द्वारा लगाया गया है, जो चंबा से पदम श्री अवार्ड विजेता ललिता वकील की बहू हैं. उन्होंने चंबा रुमाल को प्रदर्शित किया है और हर व्यक्ति जो भी उनकी स्टॉल पर जाता है, उसे इसके इतिहास के बारे में बताती हैं.
चंबा रुमाल की खास बात
चंबा रुमाल की इस स्टॉल में एक लाख रुपए के अलावा 50 हजार, 20 हजार, 10 हजार, पांच हजार और एक हजार के रुमाल भी उपलब्ध हैं. इसके अलावा, यहां 35 हजार का एक खास दुपट्टा भी मिल रहा है. बता दें कि चंबा रुमाल की खासियत यह होती है कि इसकी दोनों तरफ एक ही तरह की कलाकृति बनती है, जबकि अन्य किसी शैली में ऐसी अद्भुत कला देखने को नहीं मिलती. रुमाल में दोनों तरफ एक ही तरह का चित्र नजर आए, इसके लिए कारीगरों को काफी मेहनत करनी पड़ती है.
चंबा रुमाल का इतिहास
माना जाता है कि 16वीं शताब्दी में गुरु नानक देव जी की बहन नानकी ने सबसे पहले चंबा रुमाल बनाने की शुरुआत की थी. इस रुमाल को आज तक होशियारपुर के गुरुद्वारे में सहेज कर रखा गया है. इसके बाद 17वीं सदी में राजा पृथ्वी सिंह ने चंबा रुमाल की कला को संवारा और रुमाल पर ‘दो रुखा टांका’ कला की शुरुआत की. उस समय चंबा रियासत के आम लोगों के साथ शाही परिवार भी चंबा रुमाल की कढ़ाई किया करते थे. शाही परिवार के लोग इस चंबा रुमाल का इस्तेमाल शगुन की थाली ढकने के लिए भी करते थे. 18वीं-19वीं शताब्दी में इस चंबा रुमाल की लोकप्रियता और अधिक बढ़ी. आज के वक्त में भी चंबा रुमाल विश्व भर में प्रख्यात है.
विश्वभर में चंबा रुमाल की पहचान
चंबा रुमाल की लोकप्रियता दिन-प्रतिदिन बढ़ती चली जा रही है. आज चंबा रुमाल किसी पहचान का मोहताज नहीं रह गया है. बड़े-बड़े अवसर और अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों में चंबा रुमाल भेंट दिए जाने से इसकी लोकप्रियता का अंदाजा लगाया जा सकता है. चंबा रुमाल में आम रुमाल की तरह उल्टी और सीधी तरफ नहीं होती. इसमें इस्तेमाल होने वाले धागे को विशेष रूप से अमृतसर से मंगाया जाता है. चंबा रुमाल तैयार करने में दिनों का नहीं, बल्कि महीनों का वक्त लग जाता है. ऐतिहासिक शैली को संजोए हुए कारीगरों को चंबा रुमाल बनाने में काफी मेहनत करनी पड़ती है
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FIRST PUBLISHED :
October 4, 2024, 12:49 IST