देहरादून : दिल्ली और उत्तराखंड का कोई पॉलिटिकल कनेक्शन तो नहीं है, लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने काजी मोहम्मद निजामुद्दीन को दिल्ली कांग्रेस का प्रभारी बनाया गया है. अगले साल संभवत: फरवरी में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के लिए उत्तरांखड के विधायक काजी को दिल्ली का प्रभारी बनाया जाना बड़े संकेत देता है. हालांकि उत्तराखंड बीजेपी को इसमें हिन्दू-मुस्लिम की सियासत दिखाई दे रही है. बीजेपी के मुताबिक, इस फैसले से देश की राजधानी में भी हिंदू-मुस्लिम अलग-अलग बंटेंगे, तो जवाब कांग्रेस ने भी दिया है.
उपचुनाव में मंगलौर सीट जीतकर एक बार फिर कांग्रेस के काजी निजामुद्दीन विधायक बने, लेकिन इस बार काजी मंगलौर की वजह से नहीं, बल्कि देश की राजधानी दिल्ली को लेकर चर्चाओं में हैं. पहली बार 2002 के उत्तराखंड विधानसभा चुनावों में वह मंगलौर सीट पर जीते. इसके बाद 2007, 2017 और 2024 का चुनाव भी उन्होंने जीता. इस दौरान वे कई समितियों के सदस्य भी रहे. वह कांग्रस के राष्ट्रीय सचिव भी हैं. उनके पिता काजी मोहम्मद मोहियुद्दीन स्टेट के पहले प्रोटेम अध्यक्ष भी रहे. उनका राजनीतिक प्रभाव न केवल उत्तराखंड में है, बल्कि पड़ोसी राज्यों पर भी हैं.
वहीं, दिल्ली में कांग्रेस का प्रभारी बनाए जाने पर वे बीजेपी के निशाने पर आ गए हैं. काजी निजामुद्दीन को प्रभारी बनाए हुए अभी चार दिन भी पूरे नहीं हुए कि बीजेपी ने बिना देरी किए इस फैसले पर कांग्रेस को घेरने में देर नहीं की. बीजेपी के मुताबिक, देवभूमि से मुस्लिम विधायक को कांग्रेस दिल्ली में प्रभारी बना रही है. ये फैसला हिंदू मुस्लिमों को साफ साफ बांटने वाला है. बीजेपी विधायक दिलीप रावत के मुताबिक, इस फैसले से दिल्ली का मुस्लिम वोट भले कांग्रेस के साथ जाए, हिंदू बीजेपी के साथ आएगा.
दरअसल, देश की राजधानी दिल्ली में करीब 35 लाख की आबादी उत्तराखंड के प्रवासियों की है, तो देश के अलग अलग राज्यों के लोग की भी बड़ी संख्या है. ऐसे में कांग्रेस ने बड़ी प्लानिंग के साथ ये फैसला लिया. वहीं शाहीन बाग से लेकर दिल्ली दंगों के बाद बीजेपी इस फैसले को मुस्लिम तुष्टिकरण बता रही है तो कांग्रेस के मुताबिक दिल्ली के लोग और काज़ी निजामुद्दीन पढ़े लिखे हैं.
Tags: Congress, Haridwar news
FIRST PUBLISHED :
November 27, 2024, 16:49 IST