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पराली से खेत की मिट्टी की उर्वरक शक्ति कम हो जाती है.
मथुरा: सर्दी का मौसम आते ही पराली जलाने की खबरे आने लगती हैं. किसान अक्सर धान की कटाई के बाद पराली को जला देते हैं. इससे प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ जाता है. पराली जलाने से जीव-जंतुओं और पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचता है. पराली का सही तरीके से उपयोग करने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और पर्यावरण को भी बचाया जा सकता है.
पराली जलाने से होने वाले नुकसान
कई किसान पराली को खेतों में जलाते हैं, जो न केवल खेत की उर्वरा शक्ति को नष्ट करता है, बल्कि मिट्टी में मौजूद लाभकारी जीव-जंतु भी खत्म हो जाते हैं. इससे मृदा की उर्वरक क्षमता कम होती है. उप कृषि निदेशक राजीव कुमार ने लोकल 18 से खास बातचीत में बताया कि पराली जलाने से पत्तियों में मौजूद पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं और मृदा के तापमान में वृद्धि होती है. इससे मिट्टी की जैविक संरचना पर भी बुरा असर पड़ता है. साथ ही, वायु प्रदूषण बढ़ता है, जिससे धुंध और अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है.
पराली से होने वाले संभावित खतरे
पराली जलाने से आसपास की फसलों और आबादी में आग लगने का खतरा रहता है. इसके अलावा, वायु प्रदूषण के कारण सड़क हादसों और बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है. किसानों को इस प्रथा को रोकना चाहिए और पराली को जलाने के बजाय उसका सही तरीके से उपयोग करना चाहिए.
पराली का उपयोग कैसे करें
उप कृषि निदेशक राजीव कुमार ने कहा कि फसल कटाई के बाद बचे हुए अवशेषों को जलाने के बजाय, उनसे पोषक तत्वों से भरपूर खाद बनाई जा सकती है. फसल अवशेषों से वर्मी कम्पोस्ट या कम्पोस्ट खाद बनाकर खेतों की उर्वरक शक्ति को बढ़ाया जा सकता है.
फसल अवशेषों के फायदे
फसल अवशेषों से खाद बनाने पर मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है, लाभदायक जीवाणुओं की संख्या बढ़ती है, और मिट्टी की संरचना में सुधार होता है. साथ ही, अवशेषों की मल्चिंग करने से खरपतवार कम होते हैं और जल का वाष्पोत्सर्जन भी घटता है.
Tags: Local18, Mathura news, Special Project, Stubble Burning, Stubble fires
FIRST PUBLISHED :
October 2, 2024, 15:43 IST