गोंड जनजातीय का प्रमुख नृत्य है 'गेंडी'. (अनुराग पाण्डेय)
भोपाल: मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक विविधता ने हमेशा लोगों का ध्यान आकर्षित किया है. यहां की अलग-अलग जनजातीय समुदायों के लोक नृत्य और पारंपरिक रीति-रिवाज दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं. इसी श्रृंखला में गोंड जनजाति के “गेंडी नृत्य” ने हाल ही में भोपाल में अपनी खास छाप छोड़ी.
गोंड जनजातीय समुदाय
गोंड जनजातीय समुदाय का यह नृत्य विशेष रूप से छिंदवाड़ा के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किया गया, जिसमें विजय बंदेवार और उनके समूह ने अपनी कला से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. गोंड जनजाति में गेंडी नृत्य का ऐतिहासिक महत्व है, जिसे मुरिया लोग “डिटोंग पाटा्य” भी कहते हैं. गेंडी नृत्य की खास बात यह है कि इसमें कलाकार लकड़ी की गेंडी पर खड़े होकर नृत्य करते हैं, बिना किसी गीत के.
गेंडी नृत्य का इतिहास
गेंडी का उपयोग पारंपरिक रूप से पुराने समय में बारिश के मौसम में कीचड़ से बचने और धान की फसल लगाते समय किया जाता था. धीरे-धीरे यह जनजातीय जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन गया और गेंडी नृत्य के रूप में उभर कर सामने आया. Local 18 से बात करते हुए छिंदवाड़ा से आए कलाकारों ने बताया कि कैसे यह नृत्य कला समय के साथ उनके जीवन का एक प्रमुख हिस्सा बन गई है.
कलाकारों का संघर्ष और समर्पण
गेंडी नृत्य में महारत हासिल करना आसान नहीं है. इसके लिए कलाकारों को काफी अभ्यास और धैर्य की आवश्यकता होती है. विजय बंदेवार ने बताया, “हम सुबह उठते ही प्रैक्टिस शुरू कर देते हैं. कई बार गिरते हैं, लेकिन फिर उठकर फिर से कोशिश करते हैं. यही समर्पण हमें इस नृत्य में बेहतर बनाता है.”
गेंडी नृत्य का देशभर में प्रदर्शन
यह नृत्य समूह देश के कई बड़े शहरों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुका है. छिंदवाड़ा के इन कलाकारों ने पिछले 10-15 वर्षों से गोंड जनजातीय संस्कृति और गेंडी नृत्य को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उनकी यह नृत्य कला जहां भी प्रदर्शित होती है, वहां दर्शक दंग रह जाते हैं.
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FIRST PUBLISHED :
September 30, 2024, 19:00 IST