मशाल चढ़ाने की अनोखी परंपरा.
बागेश्वर. उत्तराखंड में कई पारंपरिक तरीकों से देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना की जाती है और मान्यताओं के अनुसार रीति-रिवाजों को अपनाकर ईष्ट देवता को खुश किया जाता है. ऐसी ही एक अनोखी पूजा-अर्चना की विधि बागेश्वर के धौलीनाग मंदिर में अपनाई जाती है, जहां अश्विन नवरात्रि के दौरान धौलीनाग देवता को 22 गांव के लोग 22 हाथ की लंबी मशाल चढ़ाते हैं. इससे पहले मशाल के साथ मंदिर परिसर की परिक्रमा की जाती है. लोकल 18 से बातचीत करते हुए स्थानीय सेवानिवृत्त प्रवक्ता मोहन चंदोला बताते हैं कि पौराणिक काल में मशाल की रोशनी से धौलीनाग देवता की जान बचाई गई थी. तब से ही माना जाता है कि मशाल अर्पित करने से धौलीनाग देवता प्रसन्न होते हैं और देवता के रूप में अवतरित होकर क्षेत्रवासियों को सुरक्षित वातावरण, सुख-शांति, समृद्धि और खुशहाली का आशीर्वाद देते हैं.
उन्होंने कहा कि धौलीनाग देवता कुमाऊं के कालिया नाग देवता के पुत्र हैं. धवल नाग का अर्थ है सफेद नाग, जिन्हें स्थानीय भाषा में धौलीनाग कहा जाता है. पौराणिक काल से ही धौलीनाग देवता बागेश्वर के विजयपुर क्षेत्र में 22 गांवों के लोगों के ईष्ट देवता के रूप में पूजे जाते हैं. मान्यताओं के अनुसार, विजयपुर की पहाड़ी पर बांज के कई पेड़ थे, जिनमें से एक में धौलीनाग देवता निवास करते थे. एक दिन रात में अचानक जंगल में आग लग गई. आग से बचाव के लिए धौलीनाग देवता ने बारी-बारी से पहले चंदोला, फिर धपोला और फिर भूल लोगों को आवाज लगाई लेकिन अंत में भूल लोगों ने धौलीनाग देवता की पुकार सुनी और सभी लोग एकजुट होकर धौलीनाग देवता के वास की तरफ निकल गए. वहां पहुंचकर देखा तो धौलीनाग देवता मुसीबत में थे. उन्होंने जैसे-तैसे कर आग से देवता को बचाया. क्षेत्रवासियों के इस कार्य से प्रसन्न होकर धौलीनाग देवता ने क्षेत्र की सुरक्षा का जिम्मा उठाने का वचन दिया. तब से धौलीनाग देवता को 22 गांव के ईष्ट देवता के रूप में पूजा जाता है और जिस मशाल की रोशनी से धौलीनाग देवता की जान बचाई गई थी, उसे धौलीनाग देवता को प्रसन्न करने के लिए 22 हाथ लंबी मशाल बनाकर चढ़ाया जाता है.
कहां से कहां तक निकलती है मशाल यात्रा?
मशाल को धपोलासेरा में भूल लोग बनाते हैं. इस मशाल को भूल और धपोला लोग कई किलोमीटर की पैदल यात्रा कर अपने कंधों पर रखकर देवकियाताल लाते हैं. यहां आकर इसे जलाया जाता है. जली मशाल को धौलीनाग मंदिर के बाहर पर रखा जाता है. वहीं दूसरी ओर चंदोला लोग अपने छुरमल देवता के मंदिर से देव डांगरों के साथ हुंकार भरते हुए साथ-साथ ही धौलीनाग मंदिर में पहुंचते हैं. जब दोनों लोग साथ में मंदिर में पहुंचते हैं, तब दास लोगों की ओर से जागर लगाकर धौलीनाग देवता को पुकारा जाता है. तब धौलीनाग देवता अवतरित होकर क्षेत्र के लोगों को आशीर्वाद देते हैं. तब इस जलती मशाल को मंदिर के बाहर से उठाकर मंदिर के अंदर ले जाया जाता है और पांच बार मंदिर की परिक्रमा की जाती है. छठवीं बार में मशाल धौलीनाग देवता को चढ़ा दी जाती है. ऐसे इस यात्रा का यहीं पर समापन हो जाता है.
पूजा के लिए देश-विदेश से आते हैं लोग
इस पौराणिक पूजा में चंदोला, धपोला, भूल, पंत, कांडपाल, धामी सभी लोगों का शामिल होना जरूरी होता है. इन लोगों के शामिल हुए बिना इस पूजा को अधूरा माना जाता है. इस पूजा में शामिल होने के लिए इन जातियों के लोग देश-विदेश से अपने गांव पहुंचते हैं और ईष्ट देवता की पूजा में शामिल होकर आशीर्वाद लेते हैं.
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FIRST PUBLISHED :
October 12, 2024, 14:45 IST
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