नई दिल्ली: इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी हुआ है. आईसीसी यानी इंटरनेशल क्रिमिनल कोर्ट (अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय) ने बेंजामिन नेतन्याहू के साथ-साथ पूर्व रक्षा मंत्री योआव गैलेंट और हमास के सैन्य कमांडर मोहम्मद देफ के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है. इंटरनेशल क्रिमिनल कोर्ट के इस फैसले का फ्रांस-नार्वे समेत कई देशों ने समर्थन किया है. आईसीसी ने नेतन्याहू पर गाजा में युद्ध और अक्टूबर 2023 के हमलों को लेकर युद्ध अपराध और मानवता के खिलाफ अपराध का आरोप लगाया गया है. इससे पहले आईसीसी ने पुतिन के खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी किया था. अब सवाल है कि आखिर यह आईसीसी क्या है, यह आईसीजे यानी इंटरनेशल कोर्ट ऑफ जस्टिस से कितना अलग है. इसका भारत से कोई कनेक्शन है या नहीं?
सबसे पहले आईसीसी क्या है?
आईसीसी का पूरा नाम है इंटरनेशल क्रिमिनल कोर्ट. यह एक ग्लोबल कोर्ट है. इंटरनेशल क्रिमिनल कोर्ट दुनिया की सबसे बड़ी अदालत है. आईसीसी का मुख्यालय नीदरलैंड के द हेग में है. इसका गठन 2002 में हुआ था. इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट में जंग छेड़ने वालों और राष्ट्राध्यक्षों पर मुकदमा चलाया जाता है. यह इंटरनेशनल कम्युनिटी के लिए सबसे गंभीर अपराधों, नरसंहार, युद्ध अपराध, मानवता के खिलाफ अपराध और आक्रामकता के अपराध के आरोपी व्यक्तियों की जांच करता है और जहां जरूरत होती है उन पर मुकदमा चलाता है. हालांकि, अमेरिका समेत कई ताकतवर देश इसकी अथॉरिटी नहीं मानते हैं. वो इसके मेंबर भी नहीं हैं.
कौन-कौन हैं सदस्य?
मौजूदा वक्त में ब्रिटेन, जापान, अफगानिस्तान और जर्मनी सहित 124 देश इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के सदस्य हैं. अमेरिकी की तरह भारत, इजरायल और चीन भी इसके सदस्य देश नहीं हैं. अमेरिका इस कोर्ट के गठन के बाद से ही कई बड़े संघर्षों में शामिल रहा है. इसीलिए उसने सदस्यता लेने से परहेज किया है. अमेरिका नहीं चाहता कि इस ट्रिब्यूनल का इस्तेमाल उसके नागरिकों पर मुकदमा चलाने के लिए हो. ज्यादातर यूरोपीय देश ही इसके सदस्य हैं. ये सदस्य देश औपचारिक रूप से गिरफ्तारी वारंट पर अमल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.
अब सवाल है कि आईसीसी, आईसीजे से कैसे अलग है?
आईसीसी की स्थापना खास तरह के जघन्य अपराधों के लिए मुकदमा चलाने के लिए की गई थी. वो भी तब, जब कोई देश अपनी कानूनी मशीनरी के जरिए ऐसा करने में सक्षम न हो या ऐसा करना ही न चाहे. आईसीसी यानी इंटरनेशल क्रिमिनल कोर्ट, आईसीजे यानी इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस से अलग है. आईसीजे देशों और इंटर-स्टेट विवादों से संबंधित है, जबकि आईसीसी व्यक्तियों पर मुकदमा चलाता है. यानी जब देश का मसला होता है तो उसके लिए आईसीजे है और किसी व्यक्ति का मसला होता है तो उसके लिए आईसीसी है.
आईसीजे और आईसीसी में बेसिक अंतर समझिए
- आईसीजे: देशों के बीच विवाद और राज्यों की जिम्मेदारी से निपटता है
- आईसीसी: गंभीर अंतरराष्ट्रीय अपराधों के लिए व्यक्तियों पर मुकदमा चलाता है.
- आईसीजे का क्षेत्राधिकार व्यापक है.
- आईसीसी का क्षेत्राधिकार विशिष्ट अपराधों तक सीमित है.
- आईसीजे के फैसले बाध्यकारी हैं.
- आईसीसी राज्य के सहयोग पर निर्भर है.
- आईसीजे संयुक्त राष्ट्र का अहम हिस्सा है
- आईसीसी संयुक्त राष्ट्र का हिस्सा नहीं है.
अब चलिए जानते हैं इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस क्या है
आईसीजे यानी इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस यूएन यानी संयुक्त राष्ट्र का हिस्सा है. इसकी स्थापना 1945 में संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा की गई थी. इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस ने अप्रैल 1946 में काम करना शुरू किया था. आईसीसी की तरह आईसीजे का मुख्यालय भी नीदरलैंड के हेग में है. इसका मुख्य काम देशों के बीच कानूनी विवादों को निपटाना है. इसके अलावा आईसीजे का काम संयुक्त राष्ट्र और इसकी विशेष एजेंसियों को कानूनी सवालों पर सलाह देना भी है. इसे इंटरनेशल कोर्ट के तौर पर जाना जाता है. इसके फैसले बाध्यकारी और अंतिम हैं.
कौन-कौन भारत की ओर से इंटरनेशनल कोर्ट में जज रह चुके हैं.
1. दलवीर भण्डारी (2012 से अभी तक)
2. रघुनंदन स्वरूप पाठक (1989-1991)
3. नागेंद्र सिंह (1973- 1988)
4. सर बेनेगल राव (1952-1953)
भारत है आईसीजे का सदस्य
भले ही भारत आईसीसी का सदस्य नहीं है, मगर इंटरनेशल कोर्ट ऑफ जस्टिस का भारत सदस्य है. इंटरनेशल कोर्ट ऑफ जस्टिस में भारत कुलभूषण जाधव का केस लड़ चुका है. दलवीर भण्डारी मौजूदा वक्त में इंटरनेशल कोर्ट ऑफ जस्टिस के जज हैं. भारत की ओर से वह इंटरनेशल कोर्ट में जज के तौर पर 27 अप्रैल 2012 को निर्वाचित हुए थे. नवम्बर 2017 में वे इस पद पर दूसरे कार्यकाल के लिए भी चुन लिए गये हैं. न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी वर्ष 2005 में सुप्रीम कोर्ट के जज बने थे.
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FIRST PUBLISHED :
November 22, 2024, 13:57 IST