कुंवर विश्वराज सिंह
निशा राठौड़/ उदयपुर: भारत के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित राजवंशों में से एक, मेवाड़ राजघराने की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परंपराएं आज भी जीवंत हैं. भले ही देश में राजनैतिक सत्ता का हस्तांतरण हुए दशकों बीत चुके हों, लेकिन मेवाड़ की विरासत अपनी चमक बनाए हुए है.
अब मेवाड़ के स्वर्गीय महाराणा महेंद्र सिंह मेवाड़ के पुत्र, कुंवर विश्वराज सिंह मेवाड़ को 77वें महाराणा के रूप में राजगद्दी सौंपी जाएगी. यह ऐतिहासिक राजतिलक समारोह 25 नवंबर को चित्तौड़ में भव्य तरीके से आयोजित किया जाएगा.
राजतिलक की अनूठी परंपरा
मेवाड़ राजघराने में महाराणा का राजतिलक करने की प्रक्रिया बेहद विशिष्ट है. इसमें मेवाड़ के 16 प्रमुख उमराव, राव और जागीरदार अहम भूमिका निभाते हैं.
सलूंबर जिले के ठिकाने के जागीरदार इस बार अपने अंगूठे से लहू निकालकर राजतिलक की रस्म पूरी करेंगे. इसके साथ ही तलवार बंधाई और पगड़ी दस्तूर जैसे अनुष्ठान भी संपन्न होंगे. यह परंपरा सदियों से मेवाड़ में चली आ रही है और इसे पूरे सम्मान और भक्ति के साथ निभाया जाता है.
डॉ. आजादशत्रु शिवरती, जो मेवाड़ राजघराने के सदस्य हैं, ने बताया, मेवाड़ में असली राजा भगवान एकलिंगनाथ को माना जाता है. महाराणा खुद को केवल दीवान मानते हैं और जनता के सेवक व धार्मिक संरक्षक के रूप में कार्य करते हैं.
कुंवर विश्वराज सिंह: नया अध्याय
कुंवर विश्वराज सिंह मेवाड़, जो मेवाड़ राजगद्दी के उत्तराधिकारी हैं, उनको 25 नवंबर को 77वें महाराणा की उपाधि से विभूषित किया जाएगा. उनके राजतिलक से मेवाड़ की गौरवशाली परंपरा का एक और अध्याय शुरू होगा. यह समारोह न केवल राजघराने के लिए, बल्कि पूरे मेवाड़ क्षेत्र के लिए गर्व और उल्लास का क्षण होगा.
विरासत का प्रतीक मेवाड़
मेवाड़ राजघराना अपनी समृद्ध परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहरों के लिए जाना जाता है. यह राजतिलक न केवल इतिहास को सम्मानित करने का एक अवसर है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा और गौरव की निशानी भी है. मेवाड़ की यह परंपरा आने वाले समय में भी अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को जीवंत रखेगी.
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FIRST PUBLISHED :
November 22, 2024, 19:13 IST