हाइलाइट्स
बिहार में शराबबंदी कानून के दुरुपयोग पर पटना हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी. बिहार में गलत दिशा में जा रही शराबबंदी पुलिस-तस्करों की मिलीभगत-HCअधिकारी भी उठा रहे फायदा और गरीब आदमी पर हो रहे केस-पटना HC.
पटना. शराबबंदी का मतलब अधिकारियों की मोटी कमाई… शराबबंदी से गरीबों पर अत्याचार और तस्करी को बढ़ावा… शराबबंदी उद्देश्य से भटका हुआ एक कानून… बिहार में गलत दिशा में जा रही शराबबंदी… शराबबंदी कानून का अधिकारी उठा रहे फायदा और गरीब आदमी पर हो रहे केस… बिहार में पुलिस और तस्करों की मिलीभगत से शराबबंदी फेल… पटना हाई कोर्ट की इन तल्ख टिप्पणियों के मतलब आप समझ सकते हैं. सीधे तौर पर पटना हाई कोर्ट ने बिहार में शराबबंदी कानून और उसके धरातल पर दुरुपयोग की पोल खोल दी है. पटना उच्च न्यायालय की यह तलाक टिप्पणी कि शराबबंदी कानून ने शराब और अन्य प्रतिबंधित वस्तुओं अनधिकृत व्यापार को बढ़ावा दिया है, यह सरकारी अधिकारियों के लिए मोटी कमाई का साधन बन गया है और गरीब इस कानून के फेर में आकर लगातार पिस रहे हैं. कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि बिहार निषेध और उत्पाद शुल्क अधिनियम 2016 अपने उद्देश्य से भटक गया है.
पटना उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति पूर्णेन्दु सिंह ने इंस्पेक्टर मुकेश कुमार पासवान के खिलाफ डीजीपी के जारी किए गए सस्पेंशन और डिमोशन के आदेश को रद्द करने की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह तल्ख टिप्पणी की. न्यायमूर्ति ने कहा कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 47 जीवन स्तर को ऊपर उठाने और बड़े पैमाने पर सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करने के लिए राज्य के कर्तव्य को अनिवार्य बनता है. इसके लिए राज्य सरकार ने बिहार निषेध और उत्पाद शुल्क अधिनियम, 2016 लागू किया है. लेकिन, कई कारणों से यह इतिहास के गलत पक्ष में जा रहा है. कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि इसके बनाए गए सख्त प्रावधान पुलिस के लिए ही उपयोगी रह गए हैं जो तस्करों के साथ काम कर रहे हैं. तस्करी के लिए नये-नये तरीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है. न केवल पुलिस अधिकारी, उत्पाद शुल्क अधिकारी बल्कि राज्य का कर विभाग और परिवहन विभाग के अधिकारी भी शराबबंदी को पसंद करने लगे हैं, क्योंकि इसके उनके लिए इसका मतलब मोटी कमाई है.
पटना हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी क्या कहती है?
पटना उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति पूर्णेन्दु सिंह के आदेश की प्रति बुधवार शाम को हाई कोर्ट के पोर्टल वेबसाइट पर जब अपलोड किया तो हंगामा मच गया. इसमें साफ तौर पर कहा गया है कि शराब पीने वाले और जहरीली शराब की त्रासदी का शिकार होने वाले गरीबों के खिलाफ दर्ज मामलों के मुकाबले सरगना और सिंडिकेट संचालकों के खिलाफ दर्ज मामलों की संख्या कम है. गलत तरीके से की गई जांच के चलते ही माफिया बिना डर के काम कर रहे हैं. जांच अधिकारी यानी इंचार्ज अफसर जान बूझकर किसी भी कानूनी दस्तावेज के साथ अभियोजन पक्ष के मामले में लगाए गए आरोपों की पुष्टि नहीं करता है. खोज जब्ती और जांच नहीं करके सबूत के अभाव में माफिया को छूट देने के लिए ऐसी खामियां छोड़ दी जाती हैं.
पटना हाईकोर्ट ने ‘जमीन’ का सच सामने ला दिया!
उच्च न्यायालय ने कहा कि अभियोजन मामले में लगाये गये आरोप की किसी भी कानूनी दस्तावेज से पुष्टि नहीं करते और ऐसी कमियां छोड़ दी जाती हैं, जिससे माफिया सबूत के अभाव में बरी हो जाते हैं. उच्च न्यायालय ने कहा कि विभागीय कार्रवाई औपचारिकता मात्र रह गई है. बता दें कि बिहार में शराबबंदी कानून 2016 से लागू है. इसी कानून की कमियों को दर्शाते हुए विगत 29 अक्टूबर को न्यायमूर्ति पूर्णेन्दु सिंह ने यह आदेश दिया था जो कि गत 13 नवंबर को हाईकोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किया गया. इसके बाद मीडिया के संज्ञान में यह मामला 15 नवंबर को आया है जिसके बाद प्रदेश में शराबबंदी कानून की सार्थकता पर बहस छिड़ गई है.
पटना हाईकोर्ट ने इस मामले पर यह तल्ख टिप्पणी की
दरअसल, याचिका करता मुकेश पासवान पटना बायपास बायपास पुलिस स्टेशन में पदस्थापित थे. उनके कार्यकाल के दौरान ही था उन्हीं के थाना क्षेत्र से कुछ दूरी पर एक्साइज विभाग ने रेड मारी थी जिसमें बड़ी मात्रा में विदेशी शराब पकड़ी गई थी. इसके बाद 24 नवंबर 2020 को जारी एक सरकारी आदेश के तहत मुकेश कुमार पासवान को डिमोट कर दिया गया था. दरअसल, इस आदेश में कहा गया था कि जिस भी पुलिस अधिकारी के इलाके में शराब पकड़ी जाएगी उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. कोर्ट इसी मामले पर सुनवाई कर रहा था. मुकेश कुमार पासवान ने भी जांच में अपना पक्ष रखा और खुद को निर्दोष बताया था. उन्होंने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर न्याय की गुहार लगाई थी. इसी मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने पाया कि विभागीय जांच महज औपचारिकता थी और याचिकाकर्ता की पहले ही सजा तय कर ली गई थी. हाईकोर्ट ने न सिर्फ डिमोशन की सजा रद्द कर दी, बल्कि याचिका करता के खिलाफ शुरू की गई पूरी विभाग एक कार्रवाई के आदेश को रद्द कर दिया गया.
शराबंदी के बीते 8 साल और 8 लाख से अधिक FIR
पटना हाईकोर्ट ने इतनी तल्ख टिप्पणी क्यों की इसको इसका सच जानने के लिए थोड़ा इन आंकड़ों पर भी नजर डालना जरूरी है. बीते 8 सालों में शराबबंदी कानून पर लगातार सवाल उठाते रहे, हालांकि इसके एक्शन भी होते रहे हैं और सरकार अपनी पीठ भी थपथपाती रही है. लेकिन, आंकड़ों पर नजर डालें तो 8 लाख 43 हजार एफआईआर बीते 8 वर्षों में हुए हैं. इसके तहत 12 लाख 79 हजार से अधिक लोगों की गिरफ्तारी की गई है. इनमें 5 लाख से अधिक केस में सजा भी हुई है. इस दौरान 3 करोड़ 46 लाख लीटर शराब की बरामदगी की गई है. इसी दौरान 266 से अधिक लोगों की मौत जहरीली शराब पीने से हो गई. हालांकि, 266 में 156 लोगों की जहरीली शराब से मौत की पुष्टि ही सरकारी स्तर पर की गई. इस दौरान बिहार के बाहर के 234 माफ माफिया गिरफ्तार किए गए हैं.
शराबबंदी कानून समाप्त करने की मांग और नीतीश सरकार की ना!
बता दें कि बिहार में शराबबंदी कानून खत्म करने की मांग लगातार सत्ता पक्ष और विरोधी पक्ष के कई नेता करते रहे हैं. इनमें जीतन राम मांझी का चेहरा प्रमुख रूप से सामने आता है. वहीं, विपक्षी दलों के कई नेता भी इसको लेकर सवाल उठाते रहे हैं. सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के भी कई नेता शराबबंदी समाप्त करने की वकालत कर चुके हैं. हालांकि, जदयू इस पर अड़ा रहा है. यहां यह भी बता दें कि 1991 में मणिपुर में शराबबंदी लागू की गई थी, लेकिन सरकार ने इसमें थोड़ी छूट दे दी है. वर्ष 1995 में आंध्र प्रदेश में भी शराबबंदी लागू की गई थी, लेकिन कुछ ही वर्षों में इसके प्रतिबंध को हटा लिया गया था. वहीं, 1996 में हरियाणा में शराबबंदी लागू की गई, लेकिन 2 साल के बाद ही या प्रतिबंध हटा दिया गया. अब बिहार में भी लगातार शराबबंदी कानून के दुरुपयोग को देखते हुए इसे समाप्त करने की मांग की जा रही है.
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FIRST PUBLISHED :
November 16, 2024, 08:59 IST