चीमा दास, एक स्वाभिमानी महिला, हर दिन बड़े अरमान के साथ अपने ई-रिक्शा को सड़कों पर ले आती हैं. यह ई-रिक्शा न केवल उनकी आजीविका का साधन है, बल्कि उनके परिवार का सहारा भी है. दो बच्चों की मां चीमा ने अपने पति की आय पर निर्भर रहने के बजाय स्वयं आत्मनिर्भर बनने का निर्णय लिया. ई-रिक्शा चलाकर वह अपने बच्चों की पढ़ाई और पूरे परिवार का भरण-पोषण कर रही हैं.
मेरापानी की मेहनती महिला
चीमा दास असम-नागालैंड सीमा पर स्थित मेरापानी इलाके की रहने वाली हैं. मेरापानी शहर में वह हर दिन ई-रिक्शा चलाती हैं. बेहद गरीब परिवार से आने वाली चीमा ने अपनी मेहनत और लगन से ई-रिक्शा खरीदा. यह ई-रिक्शा उनकी मेहनत का परिणाम है, जो उनके आत्मविश्वास और जज़्बे को दर्शाता है.
पति की गैरमौजूदगी में संघर्ष
चीमा का पति काम के सिलसिले में विदेश में रहता है. पति की गैरमौजूदगी में उन्होंने पिछले डेढ़ साल से अपने परिवार की जिम्मेदारी खुद उठाई है. वह सुबह 7 बजे घर से निकलती हैं और रात 8 बजे तक ई-रिक्शा चलाकर किराए की तलाश करती हैं. उनकी मेहनत और साहस ने उन्हें कभी हार मानने नहीं दी.
महिला सशक्तिकरण की मिसाल
बारिश हो या धूप, चीमा ने ई-रिक्शा को अपना साथी बनाकर जिंदगी की जंग लड़ी है. उनके संघर्ष ने उन्हें सिर्फ अपने परिवार का ही नहीं, बल्कि अन्य महिलाओं के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बना दिया है. चीमा आज मेरापानी क्षेत्र की एकमात्र महिला ई-रिक्शा चालक हैं.
हर दिन 400-500 रुपये की कमाई
अपनी कड़ी मेहनत से चीमा रोजाना 400 से 500 रुपये कमाती हैं. उन्होंने यह साबित कर दिया कि महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पुरुषों के साथ बराबरी से खड़ी हो सकती हैं. उनके साहस और स्वाभिमान ने मेरापानी की कई महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने का हौसला दिया है. चीमा दास की कहानी महिला सशक्तिकरण का एक ऐसा उदाहरण है
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FIRST PUBLISHED :
November 26, 2024, 22:50 IST