परियोजना निदेशक की सफल कहानी
बलिया: ग्रामीण परिवेश में पढ़े-लिखे और समाज की गरीबी को देखने वाले इस अधिकारी की कहानी बड़ी रोचक और इमोशनल है. इनका सपना सिर्फ सरकारी नौकरी पाना नहीं था बल्कि सरकारी नौकरी के जरिए अंतिम व्यक्ति तक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाना भी था. जीवन में कई असफलताओं से हार न मानने वाले इस अधिकारी की कामयाबी आज के युवाओं के लिए एक बड़ा उदाहरण है. जीवन में कई असफलताएं जहां एक तरफ हार मानने को मजबूर कर रही थी तो वहीं, बड़े भाई और पिता ने इतना मोटिवेट कर दिया कि आखिरकार उमेश मणि ने कमाल कर डाला.
गांव में हुई परवरिश
परियोजना निदेशक (PDS) बलिया के पद पर तैना उमेश मणि त्रिपाठी ने बताया कि, उनका जन्म देवरिया जिले के गोर्डी गांव में हुआ था. ग्रामीण परिवेश में ही उनकी इंटर तक की पढ़ाई संपन्न हुई. बड़ा परिवार था और उनके पिता जी इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य थे जिनके ऊपर, पूरे परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी थी. उस समय पढ़ाई के संसाधन बहुत कम हुआ करते थे.
पटरी और बोरी के झोले के साथ शुरू हुई पढ़ाई
आज के समय में एलकेजी, यूकेजी में बच्चों का एडमिशन होता है लेकिन, उस समय बच्चों की पढ़ाई गदहियां गोल से शुरू होती थी, जिसमें पैसे नहीं लगते थे. थोड़ा ज्ञान होने पर कक्षा एक में प्रवेश मिलता था. उन्होंने कहा, वे अपने घर से ही बोरी का झोला, पटरी चाक और बैठने के लिए प्लास्टिक की बोरी लेकर गांव के ही प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने जाते थे. यहीं से उनको क ख ग घ का ज्ञान हुआ.
यहां से हुई संघर्ष की शुरुआत
उमेश मणि त्रिपाठी ने बताया कि, उन्हें कक्षा 6 से ABCD…पढ़ने को मिली थी. गांव से इंटर की पढ़ाई कर गोरखपुर से सन 1986 में ग्रेजुएशन किया. इसके बाद वे अपने बड़े भाई डॉ. रमेश कुमार त्रिपाठी के कहने पर प्रयागराज जाकर तैयारी करने लगे. यहीं से उन्होंने लॉ की पढ़ाई भी पूरी की.
कई असफलताओं के बाद यूं मिली कामयाबी
सन 1990 में उमेश मणि ने पहली बार लोक सेवा आयोग की परीक्षा दी और पास हो गए लेकिन, मुख्य परीक्षा में कुछ अंक से असफल हो गए. इसके बाद भी हार न मानते हुए 3 बार प्रयास किया लेकिन, सफलता नहीं मिली. अब वे एकदम टूट चुके थे लेकिन, बड़े भाई और पिता के खूब समझाने पर फिर एक बार अपने सपनों की उड़ान भरी और बड़ी सफलता हासिल की.
इसके बाद आयोग से खंड विकास अधिकारी के पद चयनित हुए. फिलहाल वे बलिया में परियोजना निदेशक बलिया के पद पर कार्यरत हैं. परियोजना अधिकारी ने युवाओं को केवल यही संदेश दिया कि कोशिश करने वालों की हार नहीं होती. इसलिए समय कितना भी कठिन हो, प्रयास करना न छोड़ें.
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FIRST PUBLISHED :
November 27, 2024, 15:35 IST