सिंगी बजाते संतोष नाथ.
खरगोन. हिंदू संस्कृति में कई पौराणिक मान्यताएं और किवदंतियां प्रचलित हैं, जिनमें से कई देवी-देवताओं और उनसे जुड़ी वस्तुओं से संबंधित होती हैं. मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में नाथ समुदाय के लोग हिरण के सिंग से बने एक विशेष वाद्य यंत्र ‘सिंगी’ बजाने की परंपरा निभाते हैं. इस वाद्य यंत्र के बारे में मान्यता है कि जहां इसे बजाया जाता है, वहां से नकारात्मक शक्तियां और कीड़े-मकोड़े भाग जाते हैं.
खरगोन के दामखेड़ा गांव के निवासी संतोष नाथ बताते हैं कि यह वाद्य यंत्र हिरण के सिंग और घोड़े के बालों से बनाया जाता है. सिंग का ऊपरी हिस्सा इसका मुख्य भाग होता है और बांधने के लिए रस्सी की जगह घोड़े की पूछ के बालों का उपयोग किया जाता है. यह खास सिंगी सिर्फ नाथ समुदाय के लोगों के पास ही होती है, और इसे बजाने की परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है.
नाथ समुदाय को गुरु गोरखनाथ की देन
संतोष नाथ के अनुसार, यह सिंगी गुरु गोरखनाथ की देन मानी जाती है. किवदंती के अनुसार, सबसे पहले राजा भरभरी के राज्य में इसे बजाया गया था. इसकी उत्पत्ति के पीछे एक कथा भी जुड़ी हुई है. राजा भरभरी को शिकार का बहुत शौक था, और एक दिन गुरु गोरखनाथ ने उन्हें सबक सिखाने के लिए तोरणमाल के जंगलों में एक मायावी हिरण बनाया. राजा ने उसे मार गिराया और उसे लेने पहुंचे, तभी गुरु गोरखनाथ ने आकर कहा कि यह हिरण उनका है.
मायावी हिरण कहानी
राजा भरभरी ने दावा किया कि उन्होंने उस हिरण को मारा है, इसलिए उस पर उनका अधिकार है. इस पर गुरु गोरखनाथ ने कहा कि उन्होंने उसे जीवन दिया है, इसलिए हिरण उनका है. राजा ने चुनौती दी कि अगर ऐसा है तो गोरखनाथ उसे फिर से जीवित कर दें. गुरु गोरखनाथ ने हिरण को पुनः जीवित कर दिया, लेकिन हिरण ने गुरु गोरखनाथ से कहा, प्रभु, आपने मुझे जीवित क्यों किया? जो आपके हाथों मरता है, वह स्वर्ग जाता है. अब मेरी यह काया किसी काम की नहीं है. कृपया मुझे फिर से मृत्यु दें और मेरे शरीर के अंगों को उचित स्थानों पर बांट दें.
हिरण ने आगे कहा, मेरी खाल उस संत को दीजिए जो उस पर बैठकर तपस्या करेगा और संसार की भलाई का सोचेगा. मेरी आंखें उस व्यक्ति को दें जिसकी नीयत साफ हो, और मेरा सिंग वहां उपयोग हो जहां कोई संकट हो, किसी के घर में दुख हो, या नकारात्मक शक्तियां वास करती हों. जब इस सिंग को मंत्रोच्चार के साथ वहां बजाया जाएगा, तो सभी संकट दूर हो जाएंगे.
सिंगी का महत्व आज भी बरकरार
आज भी नाथ समुदाय में इस सिंगी का विशेष महत्व है. समुदाय के लोग खास स्थानों पर ही इसे बजाते हैं. यह केवल नाथ समुदाय के पास मिलती है और इसे संकट या नकारात्मक परिस्थितियों में बजाने की परंपरा है, जिससे सभी बुरी शक्तियां दूर हो जाती हैं.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
सिंगी की ध्वनि तेज और गूंजने वाली होती है, जो वातावरण में कंपन उत्पन्न करती है. वैज्ञानिक रूप से, जब कोई तेज ध्वनि या कंपन उत्पन्न होता है, तो वह आसपास के कीड़े-मकोड़े और सूक्ष्मजीवों के लिए असहनीय हो जाता है. इससे न केवल ये जीव दूर भागते हैं, बल्कि घर या क्षेत्र में मौजूद बुरे कीटों और जीवाणुओं की संख्या भी कम हो जाती है.
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FIRST PUBLISHED :
October 23, 2024, 11:41 IST