जयपुरः राजस्थान हाईकोर्ट ने जातिसूचक टिप्पणी करने के मामले में बड़ा फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट की जोधपुर बेंच ने ‘भंगी’, ‘नीच’, ‘भिखारी’ और ‘मंगनी’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने वाले चार लोगों के खिलाफ एससी/एसटी अधिनियम के तहत लगाए गए आरोपों को हटा दिया है और कहा कि ये जातिसूचक शब्द नहीं हैं और ना ही ऐसा कोई आरोप था कि चारों व्यक्ति उनकी जाति को पहले से जानते हों.
अदालत में आरोप नहीं पाए गए सही
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने यह भी पाया कि पुलिस ने जांच के बाद आरोप को सही नहीं पाया. अदालत ने हालांकि कहा कि लोक सेवकों को उनके कामकाज के दौरान कथित तौर पर बाधा डालने के लिए आपराधिक मुकदमा चलाया जाएगा. न्यायमूर्ति बीरेंद्र कुमार की एकल पीठ चार अपीलकर्ताओं द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें एससी/एसटी अधिनियम के तहत उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों को चुनौती दी गई थी. दरअसल, अतिक्रमण हटाने गई एक टीम पर गलत पैमाइश का आरोप लगाते हुए युवकों ने इस तरह की टिप्पणी की थी.
दो पक्षों के अलावा तीसरा कोई मौजूद नहीं था
अपीलकर्ताओं का मामला यह था कि उन्हें उन लोगों (एक मुखबिर और अन्य) की जाति के बारे में जानकारी नहीं थी और इसका कोई सबूत भी नहीं था. अपीलकर्ताओं ने यह तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष के अलावा कोई और गवाह भी नहीं था. यह घटना सार्वजनिक रूप से घटित भी नहीं हुई थी. इसके अलावा, अपीलकर्ताओं की तरफ से यह तर्क दिया गया कि गालियां अपमानित करने के इरादे से नहीं बल्कि जमीन के अनुचित माप के लिए दी गई थीं, जिनका उपयोग अपीलकर्ताओं द्वारा कथित तौर पर किए गए अतिक्रमण का फैसला करने के लिए किया गया था.
कोर्ट ने कहा- ये जातिसूचक शब्द नहीं हैं
इस बीच, अदालत ने कहा, “जैसा कि ऊपर बताया गया है, मामले में इस्तेमाल किए गए शब्द जातिसूचक नहीं थे और न ही ऐसा आरोप है कि याचिकाकर्ता उन लोक सेवकों की जाति को जानते थे, जो अतिक्रमण हटाने गए थे. इसके अलावा, यह आरोप को ध्यान से देखने पर यह बिल्कुल स्पष्ट है कि याचिकाकर्ताओं का इरादा…व्यक्तियों को इस कारण से अपमानित करने का नहीं था कि वे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्य थे, बल्कि याचिकाकर्ताओं का कृत्य लोकसेवकों द्वारा गलत तरीके से की गई माप की कार्रवाई के विरोध में था.’
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक मामले का दिया हवाला
कोर्ट ने रमेश चंद्र वैश्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया. जिसमें घटना को केवल शिकायतकर्ता और उसके परिवार ने देखा था और घटना स्थल पर जनता का कोई अन्य सदस्य नहीं था. इसके बाद उच्च न्यायालय ने कहा कि वर्तमान मामले में भी, मुखबिर और अधिकारी ही घटना के एकमात्र गवाह थे और आरोपों का समर्थन करने के लिए कोई स्वतंत्र गवाह नहीं आया था. उच्च न्यायालय ने कहा, “जांच के बाद पुलिस ने आरोप को सही नहीं पाया, इसलिए जाहिर है, 1989 के अधिनियम की धारा 3(1)(X) के तहत अपराध नहीं बनता है और याचिकाकर्ता उपरोक्त अपराध के लिए आरोपमुक्त होने के पात्र हैं.”
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FIRST PUBLISHED :
November 15, 2024, 07:43 IST