भारत में 'देवी' सरनेम क्यों सबसे ज्यादा,ब्रिटिश राज से पहले नहीं लिखते थे जाति

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हाइलाइट्स

भारत में 7 करोड़ से ज्यादा महिलाएं सरनेम की जगह देवी लगाती हैंइसके बाद सिंह और कुमार सरनेम का प्रयोग खूब होता हैब्रिटिश राज से पहले भारतीय लोग अपने नाम के साथ सरनेम नहीं लिखते थे

भारत में सबसे ज्यादा कॉमन सरनेम देवी है, ये सबसे ज्यादा लिखा जाता है. 7 करोड़ से ज्यादा महिलाओं के नाम के साथ ‘देवी’ लिखा जाता है. इसके बाद ‘सिंह’ सरनेम है, जो करीब 3.5 करोड़ लोग लगाते हैं.  नाम के साथ ‘कुमार’ लगाने वाले 3.1 करोड़ हैं. देश में नाम के साथ करीब 1.1 करोड़ लोग ‘दास’ सरनेम का इस्तेमाल करते हैं. वैसे तथ्य ये भी है कि ब्रिटिश राज से पहले भारतीय अपने नामों के साथ सरनेम नहीं लगाते थे. ये परंपरा अंग्रेजों के आने के साथ शुरू हुई.

सरनेम ‘देवी’ की उत्पत्ति संस्कृत शब्द देवीयाह से हुई. भारत में इसका खूब इस्तेमाल होता है. बहुत सी वो महिलाएं भी अपने नाम के साथ ‘देवी’ लगाने लगती हैं, अगर वो पारंपरिक जातिनाम का इस्तेमाल नहीं करतीं. बिहार और उत्तर प्रदेश में इसका खूब प्रयोग होता है. ये भारत में सबसे ज्यादा लगाया जाने वाला सरनेम है.

तो आइए जानते हैं कि भारत की महिलाएं अपने नाम के साथ सबसे ज्यादा ‘देवी’ का इस्तेमाल क्यों करती हैं.

  1. धार्मिक महत्व
    भारतीय संस्कृति में महिलाओं को देवी स्वरूप माना गया है. हिंदू धर्म में देवी लक्ष्मी, दुर्गा, सरस्वती आदि की पूजा की जाती है, जो महिलाओं के सम्मान और उनके देवीत्व का प्रतीक हैं. “देवी” शब्द का इस्तेमाल महिलाओं को सम्मान देने और उनके पूजनीय रूप को दिखाने के लिए किया जाता है.

ग्रामीण और पारंपरिक समाजों में “देवी” शब्द का उपयोग महिलाओं के नाम के साथ आदर सूचक रूप में किया जाता है. (image generated by leonardo ai)

2. सामाजिक परंपरा
ग्रामीण और पारंपरिक समाजों में “देवी” शब्द का उपयोग महिलाओं के नाम के साथ आदर सूचक रूप में किया जाता है. यह उनके सम्मान और प्रतिष्ठा को बढ़ाता है. यह परंपरा जाति और क्षेत्रीय विविधताओं के बावजूद पूरे भारत में पाई जाती है.

3. नाम का पूरक
कई बार महिलाओं के नाम साधारण और छोटे होते हैं, जैसे कि “सीता”, “गंगा” आदि. ऐसे में “देवी” शब्द जोड़कर नाम को अधिक पूर्ण और प्रभावशाली बनाया जाता है. मिसाल के तौर पर “सीता देवी” और “सरस्वती देवी”.

भारत में विशेष रूप से उत्तर और पूर्वी भारत में, आधिकारिक दस्तावेज़ों में महिलाओं के नाम के साथ “देवी” जोड़ा जाना एक आम चलन है. (image generated by leonardo ai)

4. कानूनी और आधिकारिक दस्तावेज़ों में उपयोग
भारत में विशेष रूप से उत्तर और पूर्वी भारत में, आधिकारिक दस्तावेज़ों में महिलाओं के नाम के साथ “देवी” जोड़ा जाना एक आम चलन है. यह एक पहचान को स्थिरता और एकरूपता देने के उद्देश्य से भी होता है.

5. क्षेत्रीय प्रभाव
बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और बंगाल जैसे राज्यों में “देवी” का अधिक उपयोग होता है, क्योंकि यहां की परंपराएं महिलाओं के नाम के साथ इसे जोड़ती हैं.

6. पुराने समय की परंपराएं
प्राचीन भारत में, महिलाओं को समाज में विशेष दर्जा प्राप्त था. उन्हें “गृहलक्ष्मी” कहा जाता था. उनके नाम के साथ “देवी” जोड़ना इस मान्यता का प्रतीक है.

नाम के साथ देवी का इस्तेमाल करने वाली प्रमुख महिलाएं

देवी अहिल्याबाई होल्कर (1725-1795): मालवा साम्राज्य की एक सम्मानित रानी, ​​उन्हें उनके असाधारण प्रशासनिक कौशल, कला के संरक्षण और धर्मार्थ कार्यों के लिए जाना जाता है. होल्कर को बुनियादी ढांचे के विकास में उनके योगदान और अपने राज्य में शिक्षा और संस्कृति को बढ़ावा देने के उनके प्रयासों के लिए याद किया जाता है.

महाश्वेता देवी (1926-2016): एक प्रभावशाली बंगाली लेखिका और कार्यकर्ता, महाश्वेता देवी ने आदिवासी अधिकारों के लिए खूब लिखा. वह सामाजिक मुद्दों को अपनी साहित्यिक रचनाओं में सामने लाती थीं. उनकी खास पुस्तकों में हज़ार चौरासी की मां और रुदाली शामिल हैं

रुद्रमा देवी (13वीं शताब्दी): काकतीय राजवंश की एक प्रमुख शासक, वह भारत में राजा के रूप में शासन करने वाली कुछ महिलाओं में एक हैं.

दुर्गावती देवी (1900-1999): एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वह क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़ी थीं. भगत सिंह की करीबी सहयोगी थीं.

शकुंतला देवी – उन्हें मैथ की जादूगर कहा जाता था उनकी मेमोरी बहुत जबरदस्त थी. बाद में उन पर फिल्म भी बनी.

ब्रिटिश राज से पहले क्या होता था
ब्रिटिश राज से पहले भारत में सरनेम (उपनाम) लिखने का चलन आज जैसा नहीं था, जैसा अब देखने को मिलता है. प्राचीन भारत में लोगों का केवल एक ही नाम होता था, पीछे जाति का नहीं लगाते थे. किसी व्यक्ति की पहचान के लिए उनका गोत्र, वंश, जाति, या गांव का नाम जोड़ा जा सकता था. हालांकि, यह उपनाम के रूप में लिखा नहीं जाता था, बल्कि बातचीत में संदर्भ के तौर पर इसका इस्तेमाल करते हैं.

कुछ उच्च वर्गीय समाजों (ब्राह्मण, क्षत्रिय) में वंश और गोत्र के आधार पर पहचान दी जाती थी, लेकिन इसे लिखने की बजाय मौखिक रूप से उपयोग किया जाता था.

सरनेम लिखना कब शुरू हुआ
ब्रिटिश काल से पहले लोगों को औपचारिक रिकॉर्ड की आवश्यकता नहीं होती थी. समाज में लोग एक-दूसरे को उनके नाम, पेशे, गांव, या परिवार के संदर्भ से पहचानते थे. लिखित रूप में सरनेम का महत्व ब्रिटिश शासन के दस्तावेजीकरण की प्रणाली से आया.

ब्रिटिश प्रणाली में उपनाम का उपयोग करना जरूरी था. इसका उपयोग औपचारिक दस्तावेज़ों, सरकारी रिकॉर्ड और स्कूलों में होता था. सेना में भी लोगों की नियुक्ति जब होती थी तो उन्हें अपने नाम के साथ जातिनाम लिखना पड़ता था.

कहा जा सकता है कि ब्रिटिशों के प्रभाव से अंग्रेजी नामकरण पद्धति (पहला नाम + अंतिम नाम) का चलन बढ़ा. इसके चलते देश में सरनेम लिखने की प्रथा शुरू हुई और अब तो ये गहरी जड़ें पकड़ चुकी है.

Tags: Caste Census, Caste identity, Caste System, India Women

FIRST PUBLISHED :

November 20, 2024, 16:27 IST

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