महाभारत कथा: धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने जीवन में कौन सा इकलौता झूठ बोला?

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द्रोणाचार्य को यकीन था कि कोई झूठ बोले या छल करे, लेकिन धर्मराज युधिष्ठिर झूठ नहीं बोलेंगे. उस दिन युद्ध के मैदान में य ...अधिक पढ़ें

    महाभारत की कहानी पांडवों और कौरवों के इर्द-गिर्द घूमती है. जब पांडवों और कौरवों की सेना कुरुक्षेत्र के मैदान में आमने-सामने आई तो गुरु और शिष्य का भी सामना हुआ. अर्जुन को अस्त्र-शस्त्र और धनुर्विद्या सिखाने वाले द्रोणाचार्य कौरवों की तरफ से लड़ रहे थे. युद्ध के मैदान में द्रोणाचार्य का सामना पांचाल नरेश द्रुपद से हुआ. दोनों कभी ऋषि भारद्वाज के आश्रम में मित्र हुआ करते थे, लेकिन बाद में दोनों के बीच शत्रुता हो गई. द्रोणाचार्य के कहने पर अर्जुन और उनके दूसरे शिष्यों पांचाल नरेश को बंदी बना लाए थे. द्रुपद इस अपमान को कभी भूले नहीं पाए.

    जब द्रुपद और द्रोणाचार्य का हुआ सामना
    महाभारत के युद्ध में जब द्रुपद और द्रोणाचार्य का सामना हुआ तो द्रुपद जैसे किसी विचार में खोए थे. अचानक द्रोणाचार्य का एक नीले पंखों वाला बाण उनके सीने में लगा. वो वहीं गिर पड़े. अपने पिता को धरती पर गिरा पांचाल नरेश के बेटे धृष्टद्युम्न द्रोणाचार्य की तरफ दौड़े. कई साल पहले जब द्रुपद और द्रोणाचार्य की दुश्मनी शुरू हुई तब पांचाल नरेश ने भगवान शिव की पूजा अर्चना कर उनसे दो वरदान लिया था. पहली उनकी बेटी की शादी अर्जुन से होगी और दूसरा उनका पुत्र द्रोणाचार्य से प्रतिशोध लेगा. अब भगवान शिव के उस वरदान के पूरा होने का समय आ गया था.

    भीम ने श्रीकृष्ण के साथ मिलकर बनाई योजना
    धृष्टद्युम्न के रथ पर लगी लाल पताका रक्त जैसी लालिमा से चमक रही. उनकी ढाल जैसे आग उगलने को तैयार थी. हालांकि 85 साल के अनुभवी द्रोणाचार्य से लड़ना धृष्टद्युम्न के लिए कोई आसान नहीं था. जब दोनों के बीच युद्ध शुरू हुआ तो सबको साफ नजर आने लगा कि द्रोणाचार्य भारी पर रहे हैं. भीम ने देखा कि उनके साले यानी धृष्टद्युम्न लड़ाई में पिछड़ रहे हैं तो उन्होंने अपनी पत्नी यानि द्रोपदी के भाई की हर हाल में रक्षा करने का फैसला किया. वह श्रीकृष्ण के पास गए और दोनों ने मिलकर एक योजना बनाई.

    Dhrishtadyumna | Prekshaa

    अश्वत्थामा मारा गया…
    योजना के मुताबिक भीम ने अश्वत्थामा नामक एक हाथी का वध कर दिया. इसके बाद वह युद्ध क्षेत्र में लौटे और अपने रथ पर चढ़ते ही जोर-जोर से गरज कर कहने लगे ‘अश्वत्थामा मारा गया…’ यह सुनते ही कौरवों की सेना में खलबली मच गई. द्रोणाचार्य को भी खबर मिली कि उनका बेटा अश्वत्थामा मारा गया, जबकि वास्तव में मौत उनके बेटे की नहीं बल्कि अश्वत्थामा नामक हाथी की हुई थी.

    द्रोणाचार्य पर जैसे वज्रपात हुआ. वह जमीन पर बैठ गए. उनके हाथों में धृष्टद्युम्न के लिए जो तीखे बाण थे, सब जमीन पर गिर पड़े. उन्होंने अपना तनुत्राण और कवच उतार कर एक और रख दिया. द्रोण को भरोसा ही नहीं हो रहा था कि उनका बेटा मार गया है. कुछ देर विचार करने के बाद वह वापस युद्ध में लौट आए. द्रोणाचार्य अब और घातक शस्त्रों का इस्तेमाल कर रहे थे. इसी बीच भीम ने फिर गरजते हुए कहा- ‘अश्वात्थामा मारा गया…’

    युधिष्ठिर ने कौन सा इकलौता झूठ बोला
    द्रोणाचार्य फिर शोकग्रस्त हो गए. उनकी निगाह युधिष्ठिर पर पड़ी. द्रोणाचार्य को यकीन था कि धर्मराज युधिष्ठिर कभी झूठ नहीं बोलेंगे. वह युधिष्ठिर की तरफ मुड़े और पूछा ‘क्या मेरा बेटा अश्वात्थामा सचमुच मार गया? युधिष्ठिर ने धीरे से जवाब दिया हां, अश्वत्थामा मारा गया है लेकिन हाथी…’ युधिष्ठिर ने हाथी वाली बात इतने धीरे से कही कि द्रोणाचार्य उसे सुन नहीं पाए. उनकी आंखों से आंसुओं की धार बह निकली.

    धृष्टद्युम्न - विकिपीडिया

    नमिता गोखले अपनी किताब ‘महाभारत: नई पीढ़ी के लिए’ में लिखते हैं कि यह पहला और आखरी मौका था जब धर्मराज युधिष्ठिर ने धरती पर अपने जीवन काल में झूठ बोला था. युधिष्ठिर का रथ नैतिक शक्तियों और धर्मपरायणता के कारण हमेशा धरती से कुछ ऊपर तैरता हुआ चलता था. यह झूठ बोलते ही उनका रस धरती पर धम से आ गिरा.

    Tags: Mahabharat, Ramayan, Religion

    FIRST PUBLISHED :

    October 23, 2024, 16:49 IST

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