मुगल शासक शेरशाह सूरी ने कहा बनवाया था सड़क ए आजम मार्ग.......... जाने इस रिपोर्
रिपोर्ट- रजत कुमार
इटावा: कानपुर और आगरा के मध्य यमुना नदी के किनारे बसे उत्तर प्रदेश के इटावा जिले की ऐतिहासिकता किसी से छुपी हुई नहीं है. इतिहास के पन्नों में अलग-अलग समय इसकी विशेषताओं का वर्णन भी किया गया है. इसके बाद भी शायद ही यह बात लोगों को पता हो कि मुगल शासक शेरशाह सूरी के जमाने में इटावा होकर गुजरे एक मार्ग का नाम “सड़क ए आज़म” रखा गया था. यह मौर्य काल में “उत्तरापथ” ओर अंग्रेजी काल में “ग्रांट ट्रंक रोड” (जीटीरोड़) के नाम से जानी गई है. इसे अब एनएच 91 के नाम से जाने जाना लगा है.
बेशक इटावा जिले में आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे और बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे भी आते हों लेकिन एनएच 91 का अपना अलग ही मिजाज है. इस रूट के लिए यही वह पहला मार्ग है जिसे आवागमन का एक मात्र माध्यम माना जाता रहा है. समय-समय पर इस मार्ग के स्वरूप में बदलाव भी होता रहा है. प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई के कार्यकाल में चतुर्भुज योजना के अंतर्गत इस मार्ग का विस्तारीकरण करके इसको फोरलेन में तब्दील किया गया. अब इसे सिक्स लेन का भी बना दिया गया. सिक्स लेन बनने के बाद यह किसी भी प्रकार की यात्रा के लिए बेहद सुगम हो गया है.
इटावा जिले के सूचना विभाग की ओर से साल 2006 में प्रकाशित की गई सूचना निर्देशनी में इटावा के इतिहास नाम के आलेख में इस बात का जिक्र किया गया है. शेरशाह सूरी के वक्त बनाई गई इमारतों के जर्जर अवशेष अभी भी देखने को मिल रहे हैं. इकदिल में हाईवे के किनारे बनाई गई बावड़ी आज भी जर्जर हालात में दिखाई दे रही है.
इटावा को व्यवस्थित करने के लिए शेरशाह सूरी ने 12,000 सैनिकों की एक फौज भदावर में तैनात की थी. शेरशाह सूरी के समय इटावा की व्यापारिक प्रगति भी आरंभ हो गई थी. शेरशाह सूरी की ओर से बनवाई गई सड़क ए आजम वर्तमान मुगल रोड इटावा से होकर निकली. इस समय इस सड़क के किनारे पर कुछ डाक चौकिया और सराय भी स्थापित की गई. इटावा का पहली बार शेरशाह सूरी के काल में प्रशासनिक विभाजन हुआ. संपूर्ण क्षेत्र को परगनाओं में बांटा गया और शिकदार तथा अमीन नियुक्त किए गए.
इटावा के वरिष्ठ इतिहासकार और चौधरी चरण सिंह कॉलेज के प्राचार्य डॉ. शैलेंद्र शर्मा लोकल 18 संवाददाता रजत कुमार को बताते हैं कि सड़क ए आजम को पुराने समय मे उत्तरापथ के नाम से भी जाना जाता था. ये वर्तमान में बांग्लादेश के चटगांव से प्रारंभ हो कर पाकिस्तान के लाहौर से आगे अफगानिस्तान के काबुल तक बनाया गया था. उस समय अफगानिस्तान के काबुल से लेकर बांग्लादेश के चटगांव तक का क्षेत्र भारत ही माना जाता था. अफगानिस्तान के काबुल से ही समान आगे यूरोप को सप्लाई किया जाता था.
भारत का मलमल जो ढाका से आता था और काबुल तक इसी रास्ते से जाता था. इटावा में जिसे ग्रांट ट्रंक रोड के नाम से जाना जाता है जिसका ब्रिटिश काल में जीर्णोद्धार किया गया और उन्हीं के द्वारा इस मार्ग का नाम ग्रांट ट्रंक रोड रखा गया. पुराने समय में पहले उत्तरापथ फिर सड़क ए आजम बाद में ग्रांट ट्रंक रोड और फिर राष्ट्रीयराज मार्ग या अन्य नामों से जाना जाता है.
सड़क ए आजम या उत्तरापथ विश्व के सबसे लंबे मार्गों में से एक रहा है. इसी के माध्यम से व्यापार बहुत ही अच्छे तरीके से किया जाता था. चाइना का चिनानसुक या भारत का मलमल पूरे विश्व मे कहीं भी पहुंचा तो उसमें सड़क ए आजम या उत्तरापथ का बहुत बड़ा योगदान रहा है. प्राचीन काल में इसका प्रयोग लोगों द्वारा किया जाता था. सबसे पहले इसका जीर्णोद्धार मौर्य काल में किया गया. उसके बाद शेरशाह सूरी के शासन काल में बड़े स्तर पर किया गया जिसमें सड़क का चौड़ीकरण, सराय निर्माण, पानी की व्यवस्था की गई और डाकिया इन सुविधाओं के कारण संदेश लाने और ले जाने के लिए इसी सड़क का प्रयोग करते थे.
अंग्रेजों के समय में लगभग 1860 तक इसका निर्माण कार्य किया गया और जो टूट-फूट हुई उसकी मरम्मत करायी गयी. उत्तर वैदिक काल में और मौर्य काल में उत्तरापथ के नाम से जाना जाता था. उत्तरापथ भारत में व्यापार और वाणिज्य कार्यों के रीढ़ की हड्डी माना जाता था.
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FIRST PUBLISHED :
September 30, 2024, 18:57 IST