यहां भगवान नहीं...पूजे जाते हैं दैत्य, बच्चे खेलते हैं अनोखा खेल, अनसुनी है...

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ग्वालियर

ग्वालियर में पूजे जाते हैं टेसू दैत्य

ग्वालियर: चंबल संभाग में नवरात्रि के बाद और पूर्णिमा के पहले एक अनोखी परंपरा का आयोजन होता है, जिसे टेसू का खेल कहा जाता है. यह खेल खास तौर पर छोटे बच्चे और बच्चियां खेलते हैं, जो मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करते हैं. टेसू, जिसे स्थानीय भाषा में सुअटा भी कहा जाता है, वास्तव में एक दैत्य है, जिसकी मूर्ति को पूजा के लिए बनाया जाता है और पूर्णिमा के दिन उसका विसर्जन किया जाता है. इस अनोखे खेल और पूजा का ग्वालियर में विशेष महत्व है, जो सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है.

टेसू का खेल: बच्चों का उत्सव
टेसू का खेल मुख्य रूप से बच्चों का होता है, जिसमें बच्चे मिट्टी से टेसू दैत्य की मूर्ति बनाते हैं और उसे नौ दिनों तक अपने घर में रखते हैं. इस दौरान, बच्चे और बच्चियां घर-घर जाकर टेसू के गीत गाते हैं. इन गीतों में वे टेसू की प्रशंसा करते हैं और परिवारों के लिए शुभकामनाएं देते हैं. इस परंपरा का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है—शादी और सुख-समृद्धि की कामना. बच्चों द्वारा गाए गए गीतों के बदले में लोग उन्हें कुछ पैसे देते हैं, जिसे शुभ माना जाता है. यह एक मनोरंजक खेल होते हुए भी धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है.

टेसू दैत्य की मूर्ति: एक सांस्कृतिक प्रतीक
ग्वालियर में टेसू की मूर्ति को समाजिक और सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में देखा जाता है. ग्वालियर नगर निगम ने इस परंपरा की महत्ता को समझते हुए छप्पर वाले पुल के पास लोहे से बनी टेसू दैत्य की एक विशाल मूर्ति स्थापित की है. यह चौराहा न केवल इस प्रथा की याद दिलाता है बल्कि समाज में इसकी स्थायी छाप भी दर्शाता है.

शादी के बाद टेसू की पूजा: एक मान्यता
जो महिलाएं बचपन में टेसू का खेल खेल चुकी होती हैं, वे अपनी शादी के बाद इस मूर्ति की पूजा करती हैं. ऐसा माना जाता है कि टेसू की पूजा और विसर्जन करने से उनके वैवाहिक जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है. इस प्रथा के माध्यम से यह विश्वास प्रकट होता है कि टेसू दैत्य की पूजा जीवन की बाधाओं को कम करने में सहायक होती है.

सदियों पुरानी परंपरा
टेसू का खेल और इसकी पूजा सदियों पुरानी परंपरा है, जो आज भी ग्वालियर और चंबल के ग्रामीण और शहरी इलाकों में जीवंत है. यह प्रथा सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं का प्रतिबिंब भी है. बच्चों के माध्यम से इस परंपरा का स्थायी स्थान बना हुआ है और हर साल यह खेल धूमधाम से खेला जाता है.

Tags: Gwalior news, Local18, Religion, Save tradition

FIRST PUBLISHED :

October 21, 2024, 17:51 IST

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