उत्तराखंड में गरमाया भू-कानून का मुद्दा
देहरादून: उत्तराखंड में एक बार फिर सख्त भू-कानून की मांग ज़ोर पकड़ने लगी हैं. पहाड़ से लेकर मैदान तक लोग सरकार से हिमाचल की तर्ज़ पर सख्त भू-कानून (Strict onshore law) लाने की मांग कर रहे हैं. बीते कुछ दिनों पहले ऋषिकेश समेत राज्य के अन्य इलाकों में इसको लेकर रैली की गई. गढ़वाल और कुमाऊं के सभी जिलों में भी स्थानीय लोग सख्त भू-कानून को लेकर मांग कर रहे हैं. लोकल18 ने देहरादून जिले के कई स्थानीय लोगों से बातचीत की. आइए पहले विस्तार से इस मुद्दे को समझते हैं.
साल 2000 में जब उत्तराखंड उत्तर प्रदेश से अलग होकर एक राज्य बना, तो यह सिर्फ एक भूगोलिक परिवर्तन नहीं था, बल्कि यह प्रदेश की अनूठी संस्कृति, बोली-भाषा और पहचान को मान्यता देने की दिशा में एक बड़ा कदम था. उत्तराखंड एकमात्र हिमालयी राज्य है, जहां अन्य राज्य के लोग पर्वतीय क्षेत्रों की कृषि भूमि, गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए खरीद सकते हैं. राज्य के बनने के बाद से कई बार विकास के नाम पर भू-कानून में कई बदलाव किए गए. लोगों की मानें तो सशक्त भू-कानून न होने की चलते प्रदेश में बाहरी लोगों और कॉरपोरेट घराने ने बड़े पैमाने में जमीन की खरीद-फरोख्त की है. इस वजह से यहां के मूल निवासी और भूमिधर अब भूमिहीन हो रहे हैं.
भू-कानून में कब-कब हुए फेरबदल?
अलग राज्य बनने के बाद भी उत्तराखंड में अविभाजित उत्तर प्रदेश का भू-कानून 1960 लागू था. 2003 में तत्कालीन तिवारी सरकार ने इसमें संशोधन किया और राज्य का भू-कानून अपने अस्तित्व में आया. 2008 में खंडूडी सरकार में संशोधन के बाद भूमि खरीद-फरोख्त को लेकर सख्त बाध्यताएं लागू हुई. लेकिन 2018 में त्रिवेंद्र सरकार ने पहाड़ी क्षेत्रों में उद्योगों के नाम ज़मीन खरीदने की सभी बाध्यताओं को खत्म कर दिया. इसके अलावा, कृषि भूमि का भू उपयोग बदलने की प्रक्रिया भी आसान कर दी. जिसके बाद से यह मुद्दा एक बार फिर गरमा गया है.
2022 में हुआ था समिति का गठन
भू-कानून की मांग तेज़ होते ही वर्ष 2022 में सीएम पुष्कर सिंह धामी ने पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था, जिसने सितंबर 2022 को इस मुद्दे पर अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी. गौरतलब है कि समिति ने सख्त भू-कानून को लेकर 23 संस्तुतियां दी थी. समिति की रिपोर्ट और संस्तुतियों के अध्ययन के लिए प्रारूप समिति का गठन भी किया हुआ है.
क्या है स्थानीय लोगों की मांग?
उत्तराखंड में सख्त भू-कानून और शहरी क्षेत्र में 250 वर्ग मीटर भूमि खरीदने की सीमा लागू हो, ग्रामीण क्षेत्रों में खासकर गैर कृषक की ओर से कृषि भूमि खरीदने पर रोक लगे .इसके अलावा पर्वतीय क्षेत्रों में लगने वाले उद्यमों, परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण में मूल निवासियों का हिस्सा हो और 1950 को मूल निवास का आधार माना जाए. लोकल18 ने स्थानीय लोगों से भू-कानून की मांग को लेकर बातचीत की. इस दौरान कई स्थानीय लोग समर्थन में दिखाई दिए.
बाहरी लोगों को नहीं मिलनी चाहिए 1 इंच जमीन
राज्य आंदोलनकारी मुन्नी बिष्ट ने कहा कि राज्य बनाने में हमने संघर्ष किया. बाहर से आए लोगों को एक इंच भी ज़मीन नहीं दी जानी चाहिए. हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए ज़मीन बची ही नहीं है. इसलिए हर हाल में हिमाचल की तर्ज़ पर इस हिमालयी प्रदेश में सख्त भू-कानून लागू किया जाना चाहिए. जब हमारी ज़मीन बचेगी तो तभी हमारी संस्कृति बचेगी.
लागू होना चाहिए भू-कानून
हरबर्टपुर निवासी पेशे से वकील अनिल कांडपाल ने कहा कि ये अच्छी बात है कि उत्तराखंड के लोग अब जाग रहे हैं, भू-कानून को तो पहले ही लागू किया जाना चाहिए था. अन्य प्रदेशों के लोग यहां बेहताशा ज़मीनें औने-पौने दामों में खरीद रहे हैं और यहां की डेमोग्राफी को ही पूरा बदल रहे हैं. इसलिए प्रदेश में एक सख्त भू-कानून लागू किया जाना चाहिए.
बढ़ रही है देहरादून में भीड़
लोकल18 ने युवाओं से भी इस मुद्दे पर बातचीत की. देहरादून निवासी अभिषेक चौधरी ने कहा कि पिछले कुछ सालों में देहरादून की तस्वीर ही बदल गई. इतनी भीड़ की यहां रहना भी मुश्किल हो गया है. हर कोई अन्य राज्यों से आकर कई एकड़ ज़मीन खरीद रहे हैं. ये सब इसलिए हो रहा है क्यों उत्तराखंड में भूमि से जुड़ा एक सख्त कानून नहीं है. देहरादून की रहने वाली डॉ. मेघा सागर भी ‘सख्त भू-कानून’ की मांग का समर्थन करती दिखाई दीं. उन्होंने कहा कि कई वर्षों से हम यही सुनते आ रहे है कि उत्तराखंड में सख्त भू-कानून लागू होगा, लेकिन आज तक यह नहीं हो सका है.
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FIRST PUBLISHED :
October 1, 2024, 12:48 IST