नई दिल्ली. सत्यजीत रे की ‘पाथेर पांचाली’ की तेजस्वी ‘दुर्गा’ यानी उमा दासगुप्ता अब नहीं रहीं. 18 नवंबर को कोलकाता में उन्होंने आखिरी सांस ली. सालों से कैंसर से वो जंग लड़ी रहीं जो आखिर में वो हार गईं. उमा दासगुप्ता बंगाल सिनेमा का एक बड़ा नाम रहीं. 84 साल की उम्र में उनका जाना हर किसी को मायूस कर गया. 69 साल पहले आई ‘पाथेर पांचाली’ की चर्चा आज भी खूब होती है. फिल्म को आईएमबीडी मे 10 में से 8.2 रेटिंग दी है. क्या आप जानते हैं इस फिल्म के लिए ‘दुर्गा’ यानी उमा दासगुप्ता का सेलेक्शन कैसे हुआ था और क्यों उन्होंने इतिहास रचने के बाद सिनेमा की दुनिया को अलविदा कह दिया था.
सिने प्रेमियों की पीढ़ियों को आश्चर्यचकित करने वाली उमा दासगुप्ता पर सत्यजीत रे की नजर एक स्कूल समारोह में बाल कलाकार के रूप में उनके मंच प्रदर्शन के दौरान पड़ी थी. उनके स्कूल के हेडमास्टर निर्देशक सत्यजीत रे के मित्र थे. इसके बाद निर्देशक ने उसके स्कूल और परिवार से संपर्क किया. लेकिन परिवार नहीं चाहता था कि बेटी अभिनय में अपना करियर बनाए. सीधे-साधे परिवार से रहीं उमा दासगुप्ता के पिता ये चाहते थे कि चकाचौंध से भरी इस दुनिया से दूर रहे, लेकिन बाद में उन्होंने हां कह दिया.
सत्यजीत करते थे उमा की बुद्धिमत्ता की तारीफ
सत्यजीत रे ने उमा दासगुप्ता को साइन किया, लेकिन उन्होंने फिर किसी अन्य फिल्म में अभिनय नहीं करने का फैसला किया. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सत्यजीत रे के बेटे
संदीप रे ने बताया कि उनके पिता ने हमेशा एक अभिनेता के रूप में उमा की स्वाभाविक क्षमता की सराहना की. उन्होंने याद किया कि मैं शूटिंग को याद करने के लिए बहुत छोटा था, लेकिन बाद में मेरे पिता ने उमा दी की बुद्धिमत्ता के बारे में बात की.
दृश्य की जटिलताओं को आसानी से समझ जाती थीं ‘दीदी’
संदीप ने दावा किया कि उनके साथ काम करना बहुत आसान था. वह स्वाभाविक थीं और किसी दृश्य की जटिलताओं को बहुत आसानी से समझ सकती थीं. उन्होंने अपने कारणों से सिनेमा से दूर रहने का फैसला किया, लेकिन फिर भी वह उस एक प्रदर्शन के कारण विश्व सिनेमा के सबसे प्रतिष्ठित अभिनेताओं में से एक बनी रहेंगी.
उमा दासगुप्ता के निधन से इंडस्ट्री शोक में है. फोटो साभार-@IMDb
क्यों नहीं किया किसी दूसरी फिल्म में अभिनय
आखिर उन्होंने दोबारा किसी अन्य फिल्म में अभिनय न करने का फैसला क्यों किया? इस मसले पर सुबीर बनर्जी ने कहा, ‘पाथेर पांचाली’ के बाद किसी अन्य फिल्म में अभिनय नहीं किया, कहते हैं कि इसके कई कारण हैं. उन्होंने कहा- हम जानते थे कि हम दोबारा इस जादुई चीज़ का हिस्सा नहीं बनेंगे. वह जागरूकता थी. हमने बाद में कई बार इस पर चर्चा की है. लेकिन उस समय, अधिकांश मध्यवर्गीय बंगालियों के लिए, फिल्म उद्योग बहुत अच्छी जगह नहीं थी. मेरे माता-पिता भी पथेर पांचाली में मेरे अभिनय से खुश नहीं थे, उमा दी के पिता बहुत सख्त थे. वह बिल्कुल भी उसके लिए फिल्मी करियर नहीं चाहते थे.
बेहद दयालु थीं उमा दासगुप्ता
सुबीर बनर्जी ने उमा दासगुप्ता को याद करते हुए कहा- ‘वो बहुत दयालु थीं. ‘पाथेर पांचाली’ उनकी पहली फिल्म थी. लेकिन मैं मार्गदर्शन के लिए उन पर निर्भर था. मुझे याद है कि एक बारिश के सीक्वेंस में, जहां आखिर में उनकी मौत होनी थी, हमें पूरे दिन एक बेरी के पेड़ के नीचे बैठने के लिए कहा गया था. हम बारिश के आने का इंतजार कर रहे थे. काकाबाबू (सत्यजीत रे) ने हमें वहां घंटों बैठाया था. हमारे पास खुद को एंटरटेन करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था. तो हम वर्ड गेम खेल रहे थे. एक-दूसरे को चिढ़ा रहे थे. फिर जब बारिश आईं तो हम कांप रहे थे. उन्होंने मुझे कसकर पकड़ा ठीक वैसे ही जैसे फिल्म में होना चाहिए था.’
Tags: Entertainment Special
FIRST PUBLISHED :
November 19, 2024, 10:53 IST