Explainer: इंसानों का आज भी हो रहा है इवोल्यूशन, तिब्बतियों पर हुई रिसर्च ने क

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दुनिया का हर प्राणी विकास क्रम की टाइमलाइन में विकास क्रम में बदलता रहा है. इंसानों में  तब से अब तक विकासक्रम के दौरान बदलाव भी हुए. एक नई स्टडी में पाया गया है कि तिब्बत में रहने वाले इंसानों ने खास तरह की काबिलित का विकास किया है. इसने उन्हें कठिन और कम ऑक्सीजन वातवरण में रहने लायक बनाने में मदद की है, जो कि दुनिया के किसी और जगह पर नहीं देखा जाता है. तिब्बती महिलाओं पर हुए अध्ययन में इसकी बहुत ही अजीब से वजह सामने आई है.

तिब्बती लोगों में खास काबिलियत
इस अध्ययन ने अब इस बात पर प्रकाश डाला है कि इंसानों के रहने के लिए सबसे कठिन क्षेत्रों में से एक माने जाने वाले तिब्बती पठार में विकास कैसे आकार ले रहा है. केस वेस्टर्न रिजर्व यूनिवर्सिटी में प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय की प्रोफेसर एमेरिटा सिंथिया बील की अगुआई में हुए अध्ययन से पता चलता है कि तिब्बती पठार के ऑक्सीजन-दुर्लभ वातावरण में पनपने के लिए मनुष्यों ने कैसे खुद को इसमें ढालने की काबिलित पैदा की है.

पहाड़ों में सांस लेने में कठिनाई
पहाड़ों पर सांस लेना इंसानों के लिए आमतौर पर कठिन हो जाता है. ऊंचाई बढ़ने से यह काम और भी दुष्कर होता जाता है. तिब्बत जैसे ऊंचे इलाकों में तो ऑक्सीजन का स्तर भी कम ही हो जाता है. दस हजार सालों से भी अधिक समय से रह रही यहां की आबादी के लोगों के शरीर में ऐसे बदलाव आ गए हैं कि उन्होंने अपने शरीर को यहां के कठिन हालात में सांस लेने के अनुकूल बना लिया है. जबकि यहां पर निचले इलाकों से आने वाले लोगों को हाइपोक्सिया का सामना करना पड़ता है. हाइपोक्सिया वह स्थिति होती है जब शरीर के ऊतकों पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलती है.  इसमें बहुत ज्यादा तनाव हो जाता है.

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सांस लेने के बाद ऑक्सीजन का उपयोग पहाड़ी माहौल में कम कारगर होता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)

तिब्बतियों के खून में ऑक्सीजन
बील कहती है कि यह एक बहुत ही सुंदर मिसाल है कि कैसे और क्यों हमारी प्रजाति में इतनी ज्यादा विविधता देखने को मिलती है. बील हआपोक्सिक स्थिति पर इंसान की प्रतिक्रिया पर सालों से अध्ययन कर रही हैं. अपनी नई रिसर्च में उन्होंने तिब्बती समुदायों की खास काबिलियत का खुलासा किया है. इससे उन्हें खून में ऑक्सीजन सही तरह से मिल पाती है.

प्राकृतिक चयन करता है काम
इस खोज की गुत्थी को सुलझाने के लिए शोधकर्ताओं ने एक खास गुण की पड़ताल की जिसे प्रजनन सफलता या रीप्रोडक्टिव सक्सेस कहते हैं. ये वो महिलाएं होती हैं, जो गर्भ के दौरान होने वाले तनावों को सफलता से झेल पाती हैं. ऐसी महिलाओं में ज्यादा बच्चे पैदा करने की संभावना होती है. ऐसे बच्चों में भी बचने के वे सारे गुण होते हैं जो उनकी मां में हैं. इनकी वयस्क होने के बाद बचने की संभावना अधिक होती है और वे ये क्षमता अगली पीढ़ी में पहुंचा देते हैं. इस तरह से प्राकृतिक चयन काम करता है.

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अधिक बच्चे पैदा करने वाली तिब्बती महिलाओं में ऑक्सीजन का उपयोग करने की काबिलियत बेहतर पाई गई है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)

कैसे किया अध्ययन
बील और उनकी टीम ने नेपाल की 46 से 86 साल की 417 महिलाओं का अध्ययन किया जो करीब 3500 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर रह रही थीं.  उन्होंने उनके पैदा किए बच्चों की संख्या, और सेहत संबंधी अन्य बातों को रिकॉर्ड किया जिसमें हीमोग्लोबिन के स्तर भी शामिल था. हीमोग्लोबिन खून की लाल रक्त कोशिकाओं से ऊतकों तक ऑक्सीजन पहुंचाने का काम करती हैं.

महिलाओं के खून में बेहतर ऑक्सीजन
शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन महिलाओं के ज्यादा बच्चे थे, उनका हीमोग्लोबिन स्तर ना तो ज्यादा था और ना ही कम था, बल्कि सभी का औसत था. लेकिन हीमोग्लोबिन मे मिलने वाली ऑक्सीजन की मात्रा अधिक ही थी. इसका मतलब यह था कि उनका शरीर कोशिकाओं तक अधिक से अधिक ऑक्सीजन पहुंचाने में सक्षम था और इसके लिए खून गाढ़ा नहीं हुआ था. यह स्थिति सबसे बढ़िया होती है.

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बील का कहना है कि इसकी उम्मीद नहीं थी कि कम बच्चे पैदा करने वाली महिलाओं में ऑक्सजीन संबंधी कुछ स्तर कम ही मिले. वहीं ज्यादा बच्चे पैदा करने वाली महिलाओं का शरीर कम ऑक्सजीन से अधिक से अधिक फायदा लेने वाला बन गया था. बील का कहना है कि यह प्राकृतिक चयन का अनवरत चलने वाला मामला है. ऐसी आबादी कैसे खुद को ढालती हैं हमें मानव विकासक्रम की प्रक्रियाओं को बेहतर समझने में मदद करता है.

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FIRST PUBLISHED :

October 22, 2024, 16:09 IST

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