Explainer: क्या है पेरेंटल जेंडर स्क्रीनिंग, जिसे वैध करवाना चाहता है IMA?

1 hour ago 1

जन्म से पहले भ्रूण परीक्षण करवाना दंडनीय अपराध है. इस तरह का वाक्य आपने भारत के कई अस्पतालों में लिखा देखा होगा. देश में 30 साल पहले हो रही भ्रूण हत्याओं को रोकने के मकसद से यह कानून बनाया गया था. इसकी दलील दी गई थी कि लोग भ्रूण परीक्षण (Parental sex screening) में यह पता लगने पर कि होने वाला बच्चा लड़की है, लोग भ्रूण हत्या कर देते थे, गर्भ गिरा दिया जाता था. जबकि लड़की पैदा होने पर उसकी हत्या की संभावना कम होगी. हाल ही में इंडियन मेडिलकल एसोसिएशन के प्रमुख आरवी अशोकन ने मांग की है कि भ्रूण का लिंग पता करने वाले परीक्षण को कानूनी मान्यता दे देनी चाहिए. आइए जानते हैं कि आखिर ये पेरेंटल जेंडर स्क्रीनिंग क्या है और इसे कानूनी मान्यता देने की मांग क्यों की जा रही है.

क्या है ये कानून?
भारत में 1994 से प्री-कॉन्सेप्शन और प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्नीक (पीसीपीएनडीटी) अधिनियम के तहत जन्मपूर्व लिंग निर्धारण और लिंग-चयनात्मक गर्भपात अवैध है. यानी भारत में जन्म से पहले भ्रूण का लिंग पता नहीं कर सकते हैं. ऐसा करने पर परीक्षण वाले लोगों और करने वाले अस्पताल का डायग्नोस्टिक सेंटर पर कानूनी कार्रवाई की  जा सकती है. इसका मकसद कन्या भ्रूण हत्या को रोकना और लिंग अनुपात में सुधार करना है. अशोकन ने इसी कानून की कागरता पर सवाल उठाया है.

क्या होती है पेरेंटल जेंडर स्क्रीनिंग
यह गर्भवती महिला के रक्तप्रवाह में बच्चे के डीएनए की जांच करता है. यह स्क्रीनिंग टेस्ट बच्चे के लिंग के बारे में भी जानकारी दे सकता है. और इसी वजह से ये टेस्ट ज्यादातर चर्चा में रहता है. इसे लिंग निर्धारण परीक्षण, सेक्स या जेंडर डिटरमिनेशन टेस्ट, पेरेंटल जेंडर स्क्रीनिंग, नॉन इन्वेसिव पेरेंटल टेस्टिंग (NIPT), बेबी जेंडर डिटर्मिनेशन वगैरह कई नामों से पुकारा जाता है.

Amazing science, science, research, subject   news, prenatal sex  screening, prenatal sex  screening successful  India, sex  screening, enactment    determination, IMA, enactment    ratio, enactment    determination earlier  delivery,

गर्भ के दौरान लिंग का पता लगने के बाद लड़की होने पर उसकी हत्या किए जाने का खतरा रहता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Canva)

टेस्ट पर बैन के कानून पर सवाल क्यों?
अब अशोकन ने इस कानून की कारगरता पर सवाल उठाते हुए ऐसे टेस्ट पर पाबंदी के औचित्य पर सवाल उठाया है. टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक उनकी दलील है कि आखिर इस कानून ने पिछले 30 साल में हमें दिया ही क्या है? क्या इससे लिंगानुपात या सेक्स रेशियो पलट गया है? उनके मुताबिक इसका अच्छा असर नहीं हुआ है. वे मानते हैं कि गोवा जैसे राज्यों में इसका कुछ असर रहा, लेकिन जहां इस कानून की सबसे अधिक जरूरत बताई गई, यह कारगर नहीं रहा.

भारत में सेक्स रेशियो
पिछले कुछ सालों में भारत में सेक्स रेशियो में सुधार देखने को मिला है. 1991 में भारत में एक हजार पुरुषों में 927 महिलाएं थीं. 2011 में की जनसंख्या गणना के अनुसार यह संख्या बढ़ कर 943 हो गई थी. अशोकन कहते हैं कि मुद्दा अब भी कायम है और उनका सुझाव है कि लिंग निर्धारण को वैध करने से पैदा नहीं हुई बच्चियों की रक्षा की जा सकेगी. क्योंकि यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि उनका जन्म हर हाल में हो. गड़बड़ होने पर जिम्मेदार लोगों की पहचान की जा सकेगी. यह संभव है क्योंकि अब तकनीक उपलब्ध है. अशोकन ने यह दलील दी की वर्तमान में जो पाबंदी है, उसकी वजह से अल्ट्रासाउंड मशीनों और मेडिकल प्रोफेशनल्स को बेकार में परेशान किया जाता है.

Amazing science, science, research, subject   news, prenatal sex  screening, prenatal sex  screening successful  India, sex  screening, enactment    determination, IMA, enactment    ratio, enactment    determination earlier  delivery,

केवल गर्भवती महिला के ब्लड टेस्ट के जरिए ही गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग का पता चल सकता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Canva)

लिंग निर्धारण के टेस्ट के कुछ सच
मजेदार बात ये है कि यह मूल रूप से लिंग निर्धारण का टेस्ट नहीं है. असल में लिंग निर्धारण से अधिक यह डाउन सिंड्रोम और ट्राइसोमी 18 जैसी विशिष्ट जेनेटिक स्थितियों के उच्च जोखिम की जांच करता है. यह गर्भवती महिला के खून में दौड़ रहे शिशु के डीएनए का पता लगाता है और इसलिए यह ब्लड टेस्ट शिशु के लिए किसी तरह से भी नुकसानदेह नहीं होता है. इसी डीएनए में एक्स या वाय क्रोमोजोम की मौजूदगी से बच्चे के लिंग का पता चल जाता है.

कब कब पता चल सकता है लिंग?
एनआईपीटी जैसे ब्लड टेस्ट से लिंग निर्धारण गर्भ धारण के सात हफ्ते के बाद सटीकता से किया जाता है. यह इसलिए अधिक लोकप्रिय हुआ क्योंकि जल्दी लिंग जानने के बाद भ्रूण का गर्भपात कराया जा सकता है. जबकि जबकि देरी से जोखिम बढ़ता जाता है. अल्ट्रासाउंड के जरिए गर्भ धारण के 11 हफ्ते बाद 70 फीसदी, 12 हफ्ते बाद 98 फीसदी और 13 हफ्ते बाद 100 फीसदी सटीकता से लिंग का पता लगाया जा सकता है.

यह भी पढ़ें: Explainer: किसी भारतीय साइंटिस्ट को क्यों नहीं मिला नोबेल पुरस्कार, कोई साजिश है या कुछ और ही है सच?

बहराल यह बहस का विषय है कि क्या लिंग निर्धारण नवजात शिशुओं की हत्या और भ्रूण हत्याओं को रोकने में  कारगर हो सकता है या नहीं. एक निजी संगंठन के मुखिया होने के बावजूद, अशोकन ने इसी बहस को गंभीरता देने की कोशिश की है. देखना है यह सरकार का इस पर क्या रुख होता है.

Tags: Gender descrimination, Health, Science, Science facts, Science news

FIRST PUBLISHED :

October 21, 2024, 13:09 IST

*** Disclaimer: This Article is auto-aggregated by a Rss Api Program and has not been created or edited by Nandigram Times

(Note: This is an unedited and auto-generated story from Syndicated News Rss Api. News.nandigramtimes.com Staff may not have modified or edited the content body.

Please visit the Source Website that deserves the credit and responsibility for creating this content.)

Watch Live | Source Article