Vish Yog: कुंडली में चंद्रमा और शनि की डिग्रियों में 12 डिग्री या उससे अधिक का अंतर है तो विष योग का पूरा असर नहीं होता है. यह योग जीवन को उदासी और निराशा से भर देता है. कुंडली के अलग अलग भाव में विष योग बनने पर जातक को तरह तरह की समस्या का सामना करना पड़ता है, आइये विस्तार से जानते हैं किस भाव में विष योग क्या परिणाम देता है.
प्रथम भाव – लग्न में यह युति हो तो अक्सर सीजनल बीमारी से घिरा रहता है और थोड़ा संकोची मानसिकता का होता है.
द्वितीय भाव – द्वितीय भाव में इस युति के होने से पैतृक संपत्ति नहीं मिलती या उसकी बजह से परिवार में विवाद हो जाता है.जातक नौकरी करे तो ही अच्छा है.
तृतीय भाव – इस भाव में विष योग हो तो जातक की छोटे भाई बहन से नहीं बनती है,अपने रिश्तो को लेकर बेहद भावुक होता है.
चतुर्थ भाव – इस भाव में विष योग के कारण जातक की माता को कष्ट होता है, पारिवार में कलह बनी रहती है साथ ही ह्रदय रोग होने की पूर्ण सम्भावना रहती है.
पंचम भाव – इस भाव में विष योग हो तो प्रारंभिक शिक्षा में बाधा आती है, पहली संतान की प्राप्ति में कष्ट होता है.शेयर मार्किट में पैसा लगाने से नुकसान होता है.
छठा भाव – इस भाव में विष योग हो जातक को जीवन में नौकर अच्छे नहीं मिलते है. मामा से विवाद होने की संभावना रहती है.
सप्तम भाव – इस भाव में विष योग हो तो जातक का जीवनसाथी बीमार रहता है. ससुराल से सम्बन्ध मधुर नहीं होते और साझेदारी से नुकसान होता है.
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अष्टम भाव – इस भाव में विषयोग का निर्माण होने पर दुर्घटना का भय रहता है, शारीरिक कष्ट रहता है.केतु का प्रभाव होने पर गुप्त विद्या और रिसर्च या धार्मिक ज्ञान में रूचि होती है.
नवम भाव – इस भाव में विष योग से भाग्य में बाधा आती है, पिता का साथ नहीं मिलता और जातक को यात्राओं में कष्ट होता है.
दशम भाव – इस भाव में विष योग का निर्माण होने से कार्य स्थल पर शत्रु बन जाते है. इस युति के कारण जातक की तरक्की देरी से होती है.
एकादश भाव – इस भाव में इस युति के कारण अधिकतर मित्र धोखा देते है और सच्चे प्रेम की तलाश रहती है.जातक के प्रेमी कभी भी कठिन समय में उसका साथ नहीं देते हैं.
द्वादश भाव – इस भाव में यह विष योग जातक को निराशा देता है, एकांत और अकेलपन का शिकार रहता है. राहु का प्रभाव हो तो जातक शराबी और बुरी आदतों वाला होगा।
विष योग से पीड़ित लोगों को ये उपाय करने चाहिए:
1- शिवलिंग का जलाभिषेक करना चाहिए.
2- मंगलवार और शनिवार को हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए.
3- सोमवार और शनिवार को सुबह महादेव और शनि की पूजा करनी चाहिए.
4- पूजा के साथ ही शिव चालीसा का जाप करना चाहिए.
FIRST PUBLISHED :
September 23, 2024, 15:45 IST