पूर्वी बर्दवान के कैथोन गांव के निवासी नूराई शेख आज भी घोड़ागाड़ी चलाकर अपनी आजीविका चला रहे हैं. टोटो और ऑटो जैसे आधुनिक वाहनों के युग में, नूराई ने अपने पुराने पेशे को नहीं छोड़ा है. लगभग 40 सालों से यह उनका जीवन का अहम हिस्सा बना हुआ है. कुछ दशक पहले, घोड़ागाड़ी ग्रामीण परिवहन का मुख्य साधन हुआ करती थी. विशेषकर गांव के कुलीन परिवार इन्हीं गाड़ियों में यात्रा करते थे. लेकिन समय बदला, तकनीकी प्रगति हुई और घोड़ागाड़ियां सड़कों से गायब होने लगीं. इसके बावजूद नूराई शेख ने अपनी गाड़ी को छोड़ने से इनकार कर दिया.
आजीविका का एकमात्र सहारा
नूराई शेख बताते हैं कि उन्होंने घोड़ागाड़ी चलाकर ही अपनी दोनों बेटियों की शादी की. आज भी वे इससे रोजाना 300 से 400 टका कमा लेते हैं और परिवार का खर्चा चलाते हैं. हालांकि, उनका कहना है कि आधुनिक वाहनों के सामने उनकी गाड़ी की मांग पहले जैसी नहीं रही, लेकिन यह उनके लिए कमाई का एकमात्र जरिया है.
घोड़ागाड़ी से जीवन की जद्दोजहद
नूराई शेख का घोड़ा आज भी पूर्वी बर्दवान के कटवा-काडू मार्ग पर दौड़ता है. उनकी गाड़ी किराना दुकानों से राशन, घास और अन्य भारी सामान लेकर जाती है. वह गांव से शहर तक घास पहुंचाकर उसे बेचते हैं, जिससे होने वाली कमाई से घोड़े का खाना और परिवार का खर्चा चलता है.
आधुनिकता के बीच पुरानी परंपरा का निर्वाह
नूराई शेख ने बताया, “मैं 40 सालों से इस पेशे से जुड़ा हूं. पहले मैं धुलियान से घोड़े लाता था. अब सभी वाहन कार हो गए हैं, लेकिन मैं वह कार नहीं चला सकता.” समय और उम्र के साथ उनका जीवन बदला है, लेकिन उनका पेशा नहीं. टेक्नोलॉजी और आधुनिकता के दौर में भी नूराई शेख अपने पुराने पेशे से जुड़े हुए हैं. जहां नए परिवहन साधनों ने उनकी जगह ले ली है, वहीं नूराई अपने घोड़े और गाड़ी के साथ नये के बीच पुराने की पहचान बनाए हुए हैं. उनका यह सफर, कठिनाइयों के बावजूद, उनकी जीवटता का परिचय है.
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FIRST PUBLISHED :
November 19, 2024, 21:24 IST