Last Updated:February 09, 2025, 09:42 IST
Madras High Court News: मद्रास हाई कोर्ट ने यह साफ किया है कि यौन शोषण के मामलों में आरोपी पुरुष को मर्दानगी का टेस्ट कराने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता.
![आरोपी 'मर्द' है या नहीं, जबरिया टेस्ट नहीं करा सकते, मद्रास HC ने पेश की नजीर आरोपी 'मर्द' है या नहीं, जबरिया टेस्ट नहीं करा सकते, मद्रास HC ने पेश की नजीर](https://images.news18.com/ibnkhabar/uploads/2025/02/Potency-Test-Madras-HC-2025-02-a1892f5ac236a899829ff0a441eff453.jpg?impolicy=website&width=640&height=480)
मद्रास हाई कोर्ट के अनुसार, यौन अपराध के मामलों में पुरुषों को पोटेंसी टेस्ट के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता.
हाइलाइट्स
- मद्रास हाई कोर्ट ने यौन शोषण के मामलों में व्यवस्था दी है.
- पुरुष आरोपी को पोटेंसी टेस्ट के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता.
- आरोपी खुद चाहे तो अदालत से इजाजत लेकर टेस्ट करा सकता है.
मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. अदालत ने साफ किया है कि यौन उत्पीड़न के आरोपी पुरुषों को अनिवार्य रूप से ‘मर्दानगी परीक्षण’ या ‘पोटेंसी टेस्ट’ से नहीं गुजरना होगा. जस्टिस एन आनंद वेंकटेश और जस्टिस सुंदर मोहन की बेंच ने चिदंबरम में एक पुरुष छात्र और नाबालिग लड़की से जुड़े मामले सहित कई मामलों की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की. अदालत ने कहा कि जिला स्तर के सत्र न्यायालयों को यौन उत्पीड़न के मामलों में गिरफ्तार पुरुषों के लिए पोटेंसी टेस्ट का आदेश नहीं देना चाहिए.
HC ने कहा कि अगर कोई आरोपी खुद को निर्दोष साबित करने के लिए पोटेंसी टेस्ट कराना चाहता है तो वह अदालत का रुख कर सकता है, लेकिन किसी को भी इस परीक्षण के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए. अदालत ने पुलिस महानिदेशक (DGP) को निर्देश दिया कि इस आदेश को सभी पुलिस स्टेशन निरीक्षकों तक पहुंचाया जाए. HC ने कहा कि डॉक्टरों को भी सुनिश्चित करना चाहिए कि पुरुषों को पोटेंसी टेस्ट के लिए मजबूर न किया जाए.
‘आदेश का पालन सुनिश्चित हो’
राज्य की ओर से पेश हुए अभियोजक ने अदालत को बताया किया कि अधिकारी टू-फिंगर टेस्ट पर प्रतिबंध लगाने के अदालत के आदेशों का ईमानदारी से पालन कर रहे हैं. हालांकि, एक अन्य आदेश, जिसमें आपराधिक मामले के निपटारे तक भ्रूण को संरक्षित रखने की बात कही गई थी, सभी सरकारी अस्पतालों में ऐसी सुविधाओं की कमी के कारण ठीक से पालन नहीं किया जा सका. इस पर, हाईकोर्ट ने सरकार को सरकारी अस्पतालों में ऐसी सुविधाओं की उपलब्धता पर विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया.
अगर किसी अस्पताल में ऐसी सुविधा नहीं है, तो यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि भ्रूण को उस अस्पताल में संरक्षित किया जाए जहां यह सुविधा उपलब्ध है. हाल ही में, कुछ घटनाओं में यौन उत्पीड़न के पीड़ितों की पहचान लीक होने के मामलों पर भी अदालत ने चिंता जाहिर की. अदालत ने कहा कि वह इस मुद्दे पर 14 मार्च को एक विस्तृत आदेश पारित करेगी.
Location :
Chennai,Tamil Nadu
First Published :
February 09, 2025, 09:42 IST