गुजरात: मेहसाणा जिले के कड़ी तालुका में स्थित माथासुर गांव शकरकंद की खेती के लिए जाना जाता है. यहां कपडवंज किस्म की शकरकंद की खेती वर्षों से की जा रही है. गांव के किसान परंपरागत खेती से आगे बढ़ते हुए जैविक खेती की ओर रुख कर रहे हैं, जिससे न केवल उनकी आय में वृद्धि हो रही है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान मिल रहा है.
भरतभाई पटेल: एक प्रेरणादायक किसान
माथासुर गांव के 64 वर्षीय किसान भरतभाई पुरूषोत्तमभाई पटेल ने कृषि के क्षेत्र में एक मिसाल कायम की है. 10वीं तक पढ़ाई करने वाले भरतभाई पिछले सात-आठ वर्षों से शकरकंद की खेती कर रहे हैं. तीन साल पहले उन्होंने जैविक खेती अपनाई और गौ आधारित कृषि प्रणाली को अपनाते हुए जीवामृत और ठोस जीवामृत का उपयोग शुरू किया. इस प्रणाली के कारण उनकी लागत बहुत कम हो गई है और उत्पादन में भी लगातार बढ़ोतरी हो रही है.
फसल की तैयारी और बुआई प्रक्रिया
शकरकंद की खेती श्रावण मास में शुरू होती है. इसके लिए पहले खेतों को अच्छी तरह तैयार किया जाता है. धान की फसल तैयार होने के बाद शकरकंद की बुआई की जाती है. इस प्रक्रिया में करीब चार महीने लगते हैं और फसल दिसंबर से जनवरी तक पूरी तरह तैयार हो जाती है. जैविक खेती में रसायनिक उर्वरकों की जगह प्राकृतिक तरीकों का उपयोग किया जाता है, जिससे फसल स्वास्थ्यवर्धक और टिकाऊ होती है.
कम पानी में अधिक उत्पादन
जैविक खेती के कारण शकरकंद की फसल को सिंचाई की कम जरूरत होती है. पूरे सीजन में सिर्फ चार से पांच बार सिंचाई की जाती है. भरतभाई एक बीघे जमीन से 200 से 225 मन शकरकंद का उत्पादन करते हैं. इस तरीके से वे न केवल जल की बचत करते हैं बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान देते हैं.
बाजार मूल्य और मुनाफा
भरतभाई की जैविक शकरकंद बाजार में 20 किलो के लिए 300 से 320 रुपये में बिकती है. कई बार अच्छी गुणवत्ता के कारण उन्हें और भी अधिक कीमत मिल जाती है. एक बीघे पर खेती का कुल खर्च 18,000 रुपये तक होता है, जबकि सीजन के अंत में मुनाफा 90,000 रुपये से लेकर 1 लाख रुपये तक होता है. चार बीघे की खेती करने पर भरतभाई हर साल 4 लाख रुपये तक का लाभ कमा रहे हैं.
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FIRST PUBLISHED :
November 16, 2024, 13:08 IST