ईरान-इजरायल युद्ध हो ही गया तो भारत को क्या हो सकता है फायदा?

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ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्ला अली खमैनी ने तेहरान में एक तकरीर दी है. यह तकरीर हिज्बुल्ला प्रमुख हसन नसरल्लाह को समर्पित थी. हसन की इजरायल द्वारा हत्या किए जाने के बाद खमैनी ने लगभग पांच वर्षों में पहली बार शुक्रवार की प्रार्थना का नेतृत्व किया. इससे पहले उन्होंने ईरान की इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर के कमांडर कासिम सुलेमानी की हत्या के बाद इस तरह प्रार्थना सभा में भाषण दिया था. सुलेमानी को अमेरिका ने मार गिराया था.

ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्ला अली खमैनी ने इजरायल को धमकी देते हुए शुक्रवार को जो तेवर दिखाए उससे लड़ाई तेज होने और पश्चिमी एशिया का संकट गहराने का खतरा बढ़ गया है. ऐसा हुआ तो भारत भी इसके असर से बच नहीं पाएगा. युद्ध तेज होने के खतरे मात्र से शेयर बाजार में एक दिन में निवेशकों के दस लाख करोड़ रुपये से ज्यादा डूब गए. अगर युद्ध बढ़ा और लंबा खिंचा तो भारत पर पड़ने वाला असर और गम्भीर हो सकता है.

सरकारी खजाने पर बोझ, जनता की भी कटेगी जेब
ईरान तेल का बड़ा उत्पादक देश है. लड़ाई तेज हुई तो तेल की कीमत बढ़नी तय है और इसकी आपूर्ति भी प्रभावित होनी तय है. यह जहां निवेशकों का भरोसा तोड़ देगा, वहीं देश पर आर्थिक बोझ भी बढ़ाएगा.

भारत दुनिया का एक बड़ा तेल उपभोक्ता है. यहां 80 फीसदी तेल बाहर से ही आता है. यदि इजराइल और ईरान के बीच सैन्य संघर्ष तेज होता है, तो यह क्षेत्र से तेल आपूर्ति को बाधित कर सकता है. दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव के चलते तेल की कीमतें पहले ही बढ़नी शुरू हो गई है. इसके और बढ़ने से भारत में भी महँगाई बढ़ सकती है.

युद्ध के दूसरे आर्थिक प्रभाव भी हो सकते हैं. बढ़ती तेल कीमतों के अलावा, भारत को उन व्यापार मार्गों में बाधा का सामना करना पड़ सकता है जो इसकी अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हैं. कई भारतीय व्यवसाय खाड़ी देशों से जुड़े हुए हैं, और इस क्षेत्र में अस्थिरता व्यापार और निवेश पर बुरा असर डाल सकती है. इसके अलावा, आईटी, दवाएं, और कपड़ा जैसे क्षेत्र, जो मध्य पूर्वी बाजारों पर निर्भर करते हैं, मंदी का सामना कर सकते हैं.

कूटनीतिक चुनौती
भारत ने अपनी विदेश नीति में पारंपरिक रूप से संतुलित दृष्टिकोण बनाए रखा है, जिसमें उसने इजराइल और ईरान दोनों के साथ संवाद किया है. इजराइल-ईरान युद्ध भारत को अपने संबंधों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर सकता है, खास कर अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारियों को ध्यान में रखते हुए. यदि दोनो देशों का संघर्ष बड़ी जंग में बदलता है, तो भारत के सामने कूटनीतिक चुनौती बढ़ जाएगी.

मध्य पूर्व में युद्ध से क्षेत्र में अस्थिरता बढ़ सकती है, जिसका प्रभाव दक्षिण एशिया में भी पड़ सकता है. भारत आतंकवाद और कट्टरता के प्रति लंबे समय से चिंतित रहा है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों से जो ईरान के निकट हैं. यह लड़ाई आतंकी समूहों को सक्रिय कर सकता है, जो हालात का लाभ उठाकर अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने का प्रयास करेंगे, जिससे भारत के लिए सुरक्षा संबंधी नई चुनौती पैदा हो जाएगी.

चुनौतियाँ ज्यादा, पर अवसर भी
हालांकि जोखिम काफी हैं, लेकिन इजराइल-ईरान संघर्ष भारत के लिए कूटनीतिक अवसर भी प्रदान कर सकता है. एक ऐसे देश के रूप में जो दोनों पक्षों के साथ अच्छा संबंध रखता है, भारत शांति वार्ताओं में मध्यस्थता या मानवीय सहायता प्रदान करने की महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. इससे भारत की वैश्विक मंच पर स्थिति मजबूत हो सकती है, और एक जिम्मेदार उभरती शक्ति के रूप में इसकी छवि को बढ़ा सकता है. रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत ने अपनी ऐसी छवि बनाने की दिशा में पहल भी की है.

भारत रक्षा क्षेत्र में निर्यात के अवसर भी तलाश सकता है. हालाँकि, इस फैसले को कूटनीतिक तराजू पर तौलने की भी जरूरत पड़ेगी.

युद्ध भारत के उन देशों के साथ जुड़ाव को तेज कर सकता है जो मध्य पूर्व में स्थिरता को प्राथमिकता देते हैं. खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) और अन्य क्षेत्रीय ताकतों के साथ संबंधों को मजबूत करने का एक अवसर भी भारत के सामने आ सकता है.

ईरान-इजराइल युद्ध हुआ तो कौन पड़ सकता है भारी
ईरान और इजराइल की अपनी-अपनी ताकतें और कमजोरियां हैं. अगर युद्ध हुआ तो कितना लंबा खिंचेगा और अंजाम क्या होगा, यह इन्हीं पर निर्भर करेगा.

सैनिक ताकत
इजराइल दुनिया की तकनीकी रूप से सबसे उन्नत सेनाओं में से एक है. इजरायली रक्षा बल (IDF) अत्याधुनिक हथियारों से लैस हैं, जिसमें एफ-35 जैसे लड़ाकू विमान, आयरन डोम जैसे मिसाइल रक्षा प्रणाली, और आधुनिक ड्रोन शामिल हैं. IDF के बारे में माना जात है कि यह कहीं भी काफी कम समय में अपने साजो-सामान तैनात करने और जवाबी हमला करने में सक्षम है.

इजराइल का एक मजबूत खुफिया नेटवर्क भी है, जिसमें मोसाद और सैन्य खुफिया इकाइयाँ शामिल हैं, जो खतरों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती हैं.

ईरान में इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) के पास लगभग 500,000 सैन्यकर्मी हैं और लाखों कभी भी जंग में उतारने के लिए तैयार रखे गए हैं. रिजर्व हैं, जिसे द्वारा समर्थन प्राप्त है. ईरान प्रॉक्सी संगठनों के लड़ाकों के जरिये जंग लड़ने के लिए भी जाना जाता है. जैसे हिज़्बुल्ला लेबनान में लड़ रह है.

-ईरान ने मिसाइल तकनीक में भारी निवेश किया है. इनमें एक महत्वपूर्ण बैलिस्टिक मिसाइल भंडार भी शामिल है, जो इजराइल और उसके बाहर के लक्ष्यों को हिट करने में सक्षम है.

विश्व पटल पर
अमेरिका ऐतिहासिक रूप से इजराइल का एक मजबूत सहयोगी रहा है, जो उसे सैन्य सहायता और राजनीतिक समर्थन प्रदान करता है. जंग के हालात में भी अमेरिका का उसके प्रति झुकाव उसे मजबूती दे सकता है. सऊदी अरब और यूएई जैसे देश, जो ईरान को एक क्षेत्रीय खतरे के रूप में देखते हैं, भी इजराइल के पक्ष में दिख सकते हैं.

Tags: Israel aerial strikes, Israel Iran War

FIRST PUBLISHED :

October 4, 2024, 22:11 IST

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