उत्तराखंड के इस मंंदिर में पोलेंड और जर्मनी के दंपत्ति ने किया अनुष्ठान

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खड़े दीये का अनुष्ठान करते दंपति 

श्रीनगर गढ़वाल: उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से जाना जाता है और यहां कण-कण में भगवान वास करते हैं. उत्तराखंड में दैवीय स्थलों और मंदिरों से जुड़ी कई कथाएं और मान्यताएं प्रचलित हैं. इन मान्यताओं पर लोग 21वीं सदी में भी विश्वास करते हैं और ये मान्यताएं सच भी साबित होती हैं. ऐसी ही मान्यता पौड़ी जनपद के श्रीनगर स्थित कमलेश्वर महादेव मंदिर से भी जुड़ी है. मान्यता है कि यहां कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के दिन खड़े दीये का अनुष्ठान करने से निःसंतान दंपति को संतान प्राप्ति होती है. इसलिये हर वर्ष यहां सैकड़ो की संख्या में निःसंतान दंपति देश-विदेश से खड़े दीये का अनुष्ठान करने के लिये आते हैं.

विदेश से आए दंपत्ति
कमलेश्वर मंदिर से जुड़ी मान्यता इतनी प्रचलित है कि इस बार पोलैंड और जर्मनी से क्लाऊडिया और स्टेफन ने भी यहां खड़े दीये का अनुष्ठान किया. क्लाऊडिया और स्टेफन ने पूरी रात खड़े होकर घी से भरे दीपक को हाथों में रखकर खड़े दीये का अनुष्ठान किया, साथ ही पूरी रात्रि कमलेश्वर महादेव के नाम का जाप करते रहे. वहीं इनके अलावा 176 देश के विभिन्न राज्यों से आये निःसंतान दंपतियों ने भी खड़े दिए का अनुष्ठान किया.

गोधूलि बेला में शुरू होता है खड़ा दीया अनुष्ठान
कमलेश्वर मंदिर में शाम 6 बजे गोधूलि बेला पर खड़े दीये का अनुष्ठान शुरू होता है और रात भर दंपति खड़े दिये का अनुष्ठान करते हैं. सुबह 5 बजे गंगा स्नान के साथ खड़े दिये का अनुष्ठान मंदिर के महंत द्वारा श्रीफल देकर सम्पन्न किया जाता है.

क्लाऊडिया और स्टेफन ने किया खड़ा दीया अनुष्ठान
कमलेश्वर मंदिर के महंत आशुतोष पुरी ने लोकल 18 को बताया कि कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के अवसर पर इस बार 177 दंपतियों ने खड़े दीये का अनुष्ठान किया जिसमें विदेशी दंपति क्लाऊडिया और स्टेफन भी शामिल थे. उन्होंने बताया कि कमलेश्वर महादेव मंदिर की इतनी महत्ता है कि यहां हर वर्ष विदेशों से भी संतान प्राप्ति के लिये दंपति आते रहते हैं.

ये है कमलेश्वर मंदिर से जुड़ी मान्यता
मान्यता है कि देवता, दानवों से पराजित हो गए थे, जिसके बाद वे भगवान विष्णु की शरण में गए. दानवों पर विजय प्राप्त करने के लिए भगवान विष्णु यहां भगवान शिव की तपस्या करने आए. पूजा के दौरान उन्होंने शिव सहस्रनाम के अनुसार शिवजी के नाम का उच्चारण करते हुए एक-एक कर सहस्र (एक हजार) कमलों को शिवलिंग पर चढ़ाना शुरू किया. विष्णु की परीक्षा लेने के लिए शिव ने एक कमल पुष्प छिपा लिया. एक कमल पुष्प की कमी से यज्ञ में कोई बाधा न पड़े, इसके लिए भगवान विष्णु ने अपना एक नेत्र निकालकर अर्पित करने का संकल्प लिया.

पूरी होती है मनोकामना
इस पर प्रसन्न होकर भगवान शिव ने भगवान विष्णु को अमोघ सुदर्शन चक्र दिया, जिससे उन्होंने राक्षसों का विनाश किया. सहस्र कमल चढ़ाने की वजह से इस मंदिर को “कमलेश्वर महादेव मंदिर” कहा जाने लगा. इस पूजा को एक निःसंतान ऋषि दंपति देख रहे थे. मां पार्वती के अनुरोध पर शिव ने उन्हें संतान प्राप्ति का वरदान दिया. तब से यहां कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी (बैकुंठ चतुर्दशी) की रात संतान की मनोकामना लेकर लोग पहुंचते हैं और खड़े दीप का अनुष्ठान करते हैं.

Tags: Dharma Aastha, Local18, News18 UP Uttarakhand, Pauri Garhwal

FIRST PUBLISHED :

November 16, 2024, 10:21 IST

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