कभी गौर से देखें पहाड़ी मकान,काठकुणी शैली से घर बनाने की खासियत जान होंगे हैरान

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काष्ठकुनी

काष्ठकुनी शैली में बना मकान

हिमाचल प्रदेश न सिर्फ अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए मशहूर है. बल्कि यहां की पारंपरिक निर्माण शैलियां भी अपनी अलग पहचान रखती हैं. इन्हीं में से एक खास शैली है ‘काष्ठकुणी’, जो लकड़ी और पत्थर से बने मजबूत और भूकंपरोधी घरों के निर्माण के लिए जानी जाती है.

काष्ठकुणी हिमाचल प्रदेश की पारंपरिक घर बनाने की एक अनोखी शैली है. जिसमें लकड़ी और पत्थरों का मिश्रण कर घर बनाए जाते हैं. इन घरों में मिट्टी और गोबर के प्लास्टर का इस्तेमाल किया जाता है. जो घरों को पर्यावरण के अनुकूल और गर्मियों में ठंडा रखता है. इस कला शैली के मकान भूकंपरोधी होते हैं. यह खासियत इन्हें और भी महत्वपूर्ण बनाती है.

कुल्लू में अब भी मौजूद है यह पुरानी कला शैली
कुल्लू के नग्गर क्षेत्र में आज भी काष्ठकुणी शैली के कई मकान मौजूद हैं. जो इस प्राचीन कला की धरोहर को संजोए हुए हैं. भले ही आधुनिकता के चलते यह शैली धीरे-धीरे विलुप्त हो रही हो. लेकिन कुछ लोग इसे संरक्षित करने के प्रयास में जुटे हुए हैं. हिमालयन ब्रदर ट्रस्ट के संस्थापक भृगु आचार्य पिछले 10 सालों से इस कला शैली को बचाने के प्रयास कर रहे हैं. उनका ट्रस्ट नग्गर क्षेत्र के पुराने काष्ठकुणी मकानों को होम स्टे में तब्दील कर पर्यटकों को इस कला से परिचित करा रहा है.

क्या हैं काष्ठकुणी मकानों की खासियत
काष्ठकुणी शैली में बने मकान न केवल देखने में सुंदर होते हैं. बल्कि इनकी मजबूती और भूकंपरोधी होने की विशेषता इन्हें और भी खास बनाती है. इन मकानों में लकड़ी और पत्थरों का इस्तेमाल किया जाता है. इनको जोड़ने के लिए किसी कील का उपयोग नहीं किया जाता. यह मकान गर्मियों में ठंडे और सर्दियों में गर्म रहते हैं. जिससे इन्हें पर्यावरण के अनुकूल भी माना जाता है.

क्यों हो रही है यह शैली विलुप्त
आज के समय में लोग सीमेंट और आधुनिक सामग्रियों से बने घरों की तरफ ज्यादा रुख कर रहे हैं. इस वजह से काष्ठकुणी शैली धीरे-धीरे विलुप्त हो रही है. इसके साथ ही लकड़ी की बढ़ती कमी और महंगाई भी इसका एक कारण है. सीमेंट से बने घरों की तुलना में काष्ठकुणी मकान महंगे पड़ते हैं. जिससे लोग इन्हें बनाने से कतराते हैं.

कुल्लू में यहां देख सकते हैं काष्ठकुणी संरचनाएं
कुल्लू के ग्रामीण इलाकों में आज भी इस कला शैली में बने मकान देखे जा सकते हैं. नग्गर का नगर कैसल और बंजार घाटी की चैनी कोठी इसके बेहतरीन उदाहरण हैं. इसके अलावा, कुल्लू घाटी में कई देवी-देवताओं के मंदिर भी इसी शैली में बनाए गए हैं.

बाहरी शहरों के लोग भी ले रहे हैं दिलचस्पी
भृगु आचार्य बताते हैं कि उनके द्वारा लगाई गई वर्कशॉप में बाहरी शहरों से आए लोग और छात्र इस शैली को सीखने में गहरी रुचि दिखा रहे हैं. वर्कशॉप के दौरान छात्रों को इस कला शैली के निर्माण के तरीकों के साथ-साथ इसकी विशेषताएं भी बताई जाती हैं. यह प्राचीन कला शैली भविष्य में भी जीवित रह सके.

Tags: Himachal pradesh news, Hindi news, Kullu News, Latest hindi news, Local18

FIRST PUBLISHED :

September 24, 2024, 17:58 IST

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