करेले की कड़वाहट में छिपा है लखपति बनाने का राज! इस किसान ने कर दिखाया

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करेले की कड़वाहट में छिपा है लखपति बनाने का राज!करेले की कड़वाहट में छिपा है लखपति बनाने का राज!

सत्यम कटियार/फर्रुखाबाद: अगर आप भी इस समय नगदी फसलों की खेती करने का सोच रहे हैं और अधिक आमदनी के विकल्प तलाश रहे हैं, तो करेले की खेती आपके लिए एक शानदार अवसर हो सकती है. करेले की खेती से किसान लाखों की कमाई कर सकते हैं. एक बार इस फसल को लगाने के बाद लगातार तीन महीनों तक इसकी पैदावार होती है, जिससे किसान आर्थिक रूप से सशक्त हो सकते हैं. फर्रुखाबाद की जलवायु में पांच प्रकार के करेले की खेती करना उपयुक्त है, और इसे साल में दो बार, फरवरी-मार्च और जून-जुलाई के बीच लगाया जा सकता है.

करेले की खेती से लाखों की कमाई
फर्रुखाबाद के फतेहगढ़ के किसान अर्जुन पिछले 18 वर्षों से सब्जियों की खेती कर रहे हैं और इस बार उन्होंने अपने खेतों में करेले की फसल लगाई है. उन्होंने मार्च महीने में इसकी बुवाई की थी, और मई आते-आते उनकी फसल बंपर उत्पादन देने लगी. अर्जुन बताते हैं कि करेले की फसल को तैयार करने में करीब ₹30,000 की लागत आती है, लेकिन जब यह फसल बाजार में पहुंचती है, तो हाथों-हाथ बिकती है और किसानों को अच्छे दाम मिलते हैं. यदि बाजार में इसकी मांग और दाम अच्छे बने रहते हैं, तो प्रति बीघा ₹2 से ₹2.5 लाख तक की कमाई हो सकती है.

करेले की खेती का तरीका
करेले की खेती शुरू करने से पहले किसान जमीन की रोटावेटर या कल्टीवेटर से अच्छी तरह जुताई कर खरपतवार हटा देते हैं. इसके बाद जैविक खाद के रूप में गोबर की खाद का उपयोग करना बेहतर होता है. करेले की उन्नत किस्मों के बीज जैसे कल्याणपुर बारहमासी, काशी हरित, सफेद काशी उर्वशी, और सोलन पूसा 2 आदि का उपयोग फसल की गुणवत्ता को बढ़ाता है. इस फसल को मचान विधि (जमीन से ऊपर उठाकर) या खुली जमीन पर फैलाकर भी उगाया जा सकता है, दोनों ही तरीके से अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है.

करेले की खेती में होने वाली बीमारी
करेले की खेती में कुछ बीमारियां भी होती हैं, जैसे कि बैक्टीरिया जनित रोग. इस रोग के कारण पौधे की बेल और पत्तियों पर सफेद गोलाकार जाला बनता है, जो बाद में कत्थई रंग का हो जाता है. इसके बाद पौधों की पत्तियां पीली होकर सूखने लगती हैं. इस रोग से बचाव के लिए देसी तरीके से 5 लीटर खट्टा छाछ, 2 लीटर गोमूत्र और 40 लीटर पानी का घोल बनाकर इसका छिड़काव करना फायदेमंद होता है. इस उपाय से बेल 3 सप्ताह तक सुरक्षित रहती है. इसके अलावा, नमी के अनुसार हर तीसरे दिन सिंचाई करना भी जरूरी है ताकि फसल को सही पोषण और देखभाल मिल सके.

Tags: Agriculture, Local18

FIRST PUBLISHED :

October 21, 2024, 10:00 IST

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