धर्मशाला: पर्यावरण संरक्षण और औषधीय पौधों के महत्व को बढ़ावा देने के लिए कांगड़ा जिले के 21 स्कूलों सहित प्रदेश के 75 स्कूलों में हर्बल गार्डन लगाए जाने की योजना को मंजूरी दी गई है. आयुष विभाग ने इस पहल के तहत 18.75 लाख रुपये का बजट स्वीकृत किया है, जिसमें कांगड़ा जिले के स्कूलों को 5.25 लाख रुपये आवंटित किए गए हैं. इस योजना का उद्देश्य छात्रों को पारंपरिक औषधीय पौधों और पर्यावरणीय संरक्षण के महत्व से परिचित कराना है.
प्रत्येक स्कूल को मिलेगा 25,000 रुपये का अनुदान
कांगड़ा जिले के 21 स्कूलों में औषधीय गुणों वाले पौधे लगाए जाएंगे. इसके लिए प्रत्येक स्कूल को 25,000 रुपये का अनुदान दिया गया है. इन पौधों की देखभाल और संरक्षण के लिए चार साल तक प्रत्येक स्कूल को 7,000 रुपये वार्षिक रखरखाव अनुदान भी दिया जाएगा. हर्बल गार्डन के लिए स्कूलों को 500 वर्ग मीटर की भूमि निर्धारित करनी होगी, जिसमें 10 से 15 प्रकार के औषधीय पौधे लगाए जाएंगे.
छात्रों को मिलेगा औषधीय ज्ञान
इस योजना के तहत छात्रों को न सिर्फ पौधारोपण का अवसर मिलेगा, बल्कि वे औषधीय पौधों की प्रजातियों, उनके गुणों और उपयोग के बारे में भी जानकारी प्राप्त करेंगे. पौधों की प्रजातियों की पहचान के लिए पौधों पर लेबल लगाए जाएंगे, जिससे छात्र औषधीय पौधों की पहचान करना सीख सकें. साथ ही, जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए वर्मी-कम्पोस्ट और जैविक उर्वरकों के उपयोग पर जोर दिया जाएगा.
साल भर होगा रखरखाव, पीटीए और एनजीओ करेंगे सहयोग
स्कूलों को अभिभावक-शिक्षक संघ (पीटीए) और स्थानीय गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) के सहयोग से हर्बल गार्डन के रखरखाव की जिम्मेदारी दी जाएगी. छुट्टियों के दौरान भी गार्डन की देखरेख सुनिश्चित की जाएगी ताकि पौधे साल भर बढ़ते और संरक्षित रहते रहें.
चिह्नित किए गए स्कूलों की सूची
कांगड़ा जिले के जिन 21 स्कूलों में हर्बल गार्डन लगाए जाएंगे, उनमें गहीन लगोर, इंदौरा, रैहन, त्रिलोकपुर, देहरा, बनखंडी, गुम्मर, कथोग, लगडू, हारसी, लाहट, थुरल, बड़ोह, धलूं, जोगीपुर, दुरगेला, धर्मशाला, सिद्धबाड़ी, बंदला, खलेट, और पपरोला शामिल हैं. इन स्कूलों में औषधीय पौधों की दुर्लभ और संकटग्रस्त प्रजातियां लगाई जाएंगी.
उच्च शिक्षा निदेशक का बयान
उच्च शिक्षा निदेशक डॉ. अमरजीत कुमार शर्मा ने बताया कि यह कदम पारंपरिक चिकित्सा और पर्यावरण जागरूकता को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है. इसका उद्देश्य छात्रों को पारंपरिक औषधीय ज्ञान से अवगत कराना और उन्हें प्रकृति के उपचार गुणों से जोड़ना है.
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FIRST PUBLISHED :
October 21, 2024, 17:11 IST