काशी में राक्षसी त्रिजटा की होती है पूजा
वाराणसी: ‘नाथों के नाथ’ बाबा विश्वनाथ का शहर बनारस गंगा, घाट और मन्दिरों के लिए पूरे दुनिया में फेमस है. इस प्राचीन शहर में सभी देवी-देवताओं के मंदिर हैं. देवी -देवताओं के इन मंदिरों के बीच बाबा विश्वनाथ के दरबार के बेहद करीब एक राक्षसी का मंदिर भी है. जहां साल में सिर्फ एक दिन पूजा होती है. धार्मिक मान्यता के अनुसार इस पूजा के बिना कार्तिक मास के स्नान का पूरा फल नहीं मिलता है. यही वजह है कि कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन पूरे विधि-विधान से इस राक्षसी की पूजा की जाती है.
खास बात यह भी है कि इस राक्षसी के मंदिर में लड्डू-पेड़ा नहीं बल्कि मूली, बैंगन का भोग लगाया जाता है. एक दिन में यहां 5 क्विंटल से ज्यादा मूली और बैंगन का प्रसाद भक्त चढ़ाते हैं. साल में सिर्फ एक दिन यहां पूजा होती है इसलिए सुबह से ही भक्तों की भारी भीड़ यहां देखने को मिलती है.
कौन थी त्रिजटा?
रामायण के अनुसार त्रेतायुग में रावण ने माता सीता का हरण किया था. सीता हरण के बाद रावण ने उन्हें अशोक वाटिका में रखा था. इस दौरान उनके देखरेख की जिम्मेदारी राक्षसी त्रिजटा को दी गई थी. त्रिजटा माता सीता की देखभाल बेटी की तरह करती थी. रावण के वध के बाद जब माता सीता प्रभु श्री राम के साथ अयोध्या जाने लगी, तो त्रिजटा ने उनसे साथ चलने की इच्छा जताई. लेकिन माता सीता ने उन्हें काशी में विराजमान होने की बात कहीं और एक दिन के देवी का वरदान दिया. गौरतलब है कि त्रिजटा विभीषण की पुत्री थी जो मां सीता की पहरेदारी में रावण द्वारा नियुक्त की गई थी
इस मंदिर में है विराजमान
माता सीता के वरदान के बाद राक्षसी त्रिजटा काशी में बाबा विश्वनाथ के मंदिर के करीब साक्षी विनायक मन्दिर में विराजमान हो गई. मंदिर के पुजारी सिद्धार्थ तिवारी ने बताया कि हर साल कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन राक्षसी त्रिजटा देवी बन जाती है और महिलाएं उनकी पूजा करती है.धार्मिक मान्यता है कि जो भी व्यक्ति पूरे कार्तिक महीने में गंगा स्नान करता है और कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन माता त्रिजटा की पूजा करता है मां त्रिजटा भी माता सीता की तरह हमेशा उनकी रक्षा करती है.
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FIRST PUBLISHED :
November 16, 2024, 18:00 IST
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