Gujarat-Born US Judge Amit Mehta: गूगल की पैरेंट कंपनी अल्फाबेट का एक मामला अमेरिका के एक जिला न्यायालय में भारतीय मूल के जज अमित पी. मेहता की कोर्ट में चल रहा है. इस मामले में गूगल को बड़ा झटका लग सकता है. हो सकता है कि गूगल को दुनिया में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला अपना क्रोम बाउजर बेचना पड़े. अमेरिका के जस्टिस डिपार्टमेंट (DoJ) ने गूगल पर इंटरनेट सर्च इंजन को लेकर मोनोपोली (एकाधिकार) का आरोप लगाया है. हालांकि गूगल का कहना है कि अगर उसे क्रोम बाउजर बेचने के लिए मजबूर किया जाता है, तो इससे उसके ग्राहकों और बिजनेस को बहुत नुकसान होगा. एक आंकड़े के अनुसार, अक्टूबर तक क्रोम की ग्लोबल सर्च इंजन मार्केट में लगभग 90 प्रतिशत हिस्सेदारी थी. इसके अलावा, अमेरिकी बाजार में इसकी हिस्सेदारी लगभग 61 प्रतिशत है.
गुजरात में हुआ था जन्म
गूगल के इस मामले को लेकर सबकी नजरें भारतीय मूल के जज अमित पी. मेहता की ओर लगी हुई हैं. अमित मेहता को तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने जज नियुक्त किया था. उनका जन्म 1971 में गुजरात में के पाटन में हुआ था और वह एक साल की उम्र में अपने माता-पिता के साथ अमेरिका चले गए थे. अमित मेहता ने जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस और इकोनॉमिक्स में बैचलर ऑफ आर्ट्स की डिग्री हासिल की और फिर कानून की पढ़ाई की. अमित मेहता ने 1997 में यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया स्कूल ऑफ लॉ से ग्रेजुएशन करने के बाद अपने कानूनी करियर की शुरुआत की. कानून की डिग्री हासिल करने के बाद, उन्होंने लैथम एंड वॉटकिंस और जकरमैन स्पीडर एलएलपी जैसी लॉ फर्मों में काम किया, जहां उन्होंने कई उच्च-प्रोफाइल क्लाइंट्स का प्रतिनिधित्व किया.
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2014 में बने डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में जज
उन्होंने पूर्व प्रतिनिधि टॉम फेनी के वकील के रूप में सेवा की और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के पूर्व अध्यक्ष डोमिनिक स्ट्रॉस-कान को न्यूयॉर्क की अदालत में आपराधिक हमले के आरोपों से मुक्त करने में मदद की. अमित मेहता को दिसंबर 2014 में वाशिंगटन डीसी के यूएस डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में नियुक्त किया गया. वह वाशिंगटन डीसी के यूएस डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में शपथ लेने वाले पहले एशियाई-प्रशांत अमेरिकी हैं. अमित मेहता संगीत के प्रति भी खासा रुझान रखते हैं. उन्होंने कई फैसलों के दौरान अपना संगीत प्रेम दिखाया है. 2015 के एक फैसले में, उन्होंने अपने पसंदीदा संगीत कलाकारों का उल्लेख किया, जिनमें जे-जेड, कान्ये वेस्ट, ड्रेक और एमिनेम शामिल हैं. इसके अलावा 2018 के एक फैसले में उन्होंने बेयोंसे के गाने ‘सॉरी’ के बोलों का हवाला दिया था.
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ट्रंप के मामले की सुनवाई की
गूगल के मामले के अलावा अमित मेहता पहले भी कई महत्वपूर्ण मामलों पर फैसले सुना चुके हैं, इन फैसलों में साल 2020 का छह जनवरी का कैपिटल हिल दंगों से संबंधित केस भी शामिल हैं. इसमें उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उन सिविल मुकदमों को खारिज करने के प्रयास को अस्वीकार कर दिया था, जो उन्हें दंगे भड़काने के लिए जिम्मेदार ठहराते थे. अमित मेहता ने अपने फैसले में लिखा, “राष्ट्रपति को नागरिक क्षति से छूट से वंचित करना कोई छोटा कदम नहीं है. कोर्ट अपने फैसले की गंभीरता को अच्छी तरह समझता है. लेकिन इस मामले के कथित तथ्य अभूतपूर्व हैं, और अदालत का मानना है कि उसका निर्णय ऐसी छूट के पीछे के उद्देश्यों के अनुरूप है.”
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यह है ताजा मामला
गूगल के खिलाफ यह फैसला एक बड़े और बहुप्रतीक्षित मुकदमे के बाद आया है. अमेरिकी न्याय विभाग (DOJ) और कई अमेरिकी राज्यों ने आरोप लगाया था कि गूगल ने अपने सर्च इंजन की प्रमुखता बनाए रखने के लिए अवैध व्यापारिक प्रथाओं का इस्तेमाल किया. यह मुकदमा पिछले साल सितंबर में शुरू हुआ था और 10 हफ्तों तक चला. यह फैसला, इंटरनेट परिदृश्य को बदल सकता है, हाल के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण एंटीट्रस्ट फैसले में से एक है. जज अमित मेहता का फैसला स्पष्ट था, “गूगल एक एकाधिकारवादी है, और इसने अपने एकाधिकार को बनाए रखने के लिए ऐसा किया है.”
क्या कहना है गूगल का
हालांकि टेक दिग्गज ने लगातार तर्क दिया है कि उसका बाजार प्रभुत्व उपयोगकर्ताओं की पसंद से पैदा होता है, न कि प्रतिस्पर्धा विरोधी प्रथाओं से. गूगल का सर्च इंजन प्रतिदिन लगभग 8.5 बिलियन प्रश्नों को संभालता है, जो पिछले दस वर्षों में लगभग दोगुना हो गया है. इस प्रतिकूल फैसले के जवाब में, गूगल अपील दायर करने का इरादा रखता है. गूगल के वैश्विक मामलों के अध्यक्ष केंट वॉकर ने कंपनी का समर्थन करते हुए कहा, “यह फैसला मानता है कि गूगल सबसे अच्छा सर्च इंजन प्रदान करता है, लेकिन निष्कर्ष निकालता है कि हमें इसे आसानी से उपलब्ध कराने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.” कंपनी का मानना है कि उसकी सफलता उपयोगकर्ताओं को बेहतर सेवाएं प्रदान करने का परिणाम है.
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पहले भी आया एंटीट्रस्ट का मामला
अमित मेहता की करियर की शुरुआत में ही एंटीट्रस्ट कानून के उल्लंघन का एक मामला आया था. देश की सबसे बड़ी खाद्य वितरण कंपनी सिस्को अपनी प्रतिद्वंद्वी यूएस फूड्स को खरीदने की कोशिश कर रही थी. संघीय व्यापार आयोग ने 3.5 बिलियन डॉलर के इस सौदे को रोकने के लिए मुकदमा दायर किया था. उसका तर्क यह था कि इससे प्रतिस्पर्धा कम हो जाएगी. जज मेहता ने इस केस के लिए पहले खुद पढ़ाई की. अगले कुछ महीनों में उन्होंने एंटीट्रस्ट कानून को लेकर खाद्य वितरण व्यवसाय के बारे में तीखे सवाल पूछे. 2015 में जज मेहता ने 128 पृष्ठों का फैसला लिखा और सौदे को अस्थायी रूप से रोकने का आदेश दिया. कुछ ही दिनों में सिस्को ने अपनी अधिग्रहण योजना छोड़ दी.
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FIRST PUBLISHED :
November 22, 2024, 21:41 IST