मुंबई:
महाराष्ट्र चुनावों में बीजेपी के साथ मधुर रिश्ते दिखा रहे राज ठाकरे उनके सहयोगी दल एकनाथ शिंदे की शिवसेना को करीब आठ सीटों पर नुकसान पहुंचा गए. इनमें से कुछ प्रतिष्ठित सीटें रहीं, जहां राज ठाकरे के चचेरे भाई उद्धव ठाकरे को फायदा पहुंच गया. वैसे राज ठाकरे खुद इतनी बुरी तरह हारे हैं कि अब पार्टी और चुनाव चिन्ह दोनों गंवाने का खतरा उनपर मंडरा रहा है.
एकनाथ शिंदे की शिवसेना को बड़ा नुकसान
राज ठाकरे की एमएनएस इस चुनाव में अपना खाता भी नहीं खोल पाई. लेकिन मुंबई की 8 सीटों सहित कुल 10 सीटों पर वो अपने चचेरे भाई उद्धव ठाकरे को जरूर फायदा पहुंचाते दिखे. एकनाथ शिंदे की शिवसेना को बड़ा नुक़सान हुआ है. ऐसी करीब आठ सीटें रहीं, जहां एमएनएस ने शिंदे सेना को नुकसान पहुंचाया और उद्धव ठाकरे की पार्टी को कांटे की टक्कर में जीत मिली.
प्रतिष्ठित सीटों पर पहला नाम तो आदित्य ठाकरे का ही आता है. वर्ली सीट से शिंदे के उम्मीदवार मिलिंद देवड़ा 8,801 वोटों से आदित्य से हारे. एमएनएस उम्मीदवार संदीप देशपांडे को मिले19,367 वोट ने बड़ा खेल कर दिया. वहीं, माहिम सीट पर राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे हार तो गये लेकिन उद्धव के उम्मीदवार महेश सावंत, शिवसेना के सदा सर्वंकर से 1,316 वोटों के अंतर से जीत गए. एमएनएस के अमित ठाकरे को मिले महज़ 33,062 वोट ने यहां भी तस्वीर झटके से बदल दी.
इसी तरह डिंडोशी में शिंदे सेना के संजय निरुपम उद्धव के उम्मीदवार सुनील प्रभु से 6,182 वोटों से हार गए, यहां मनसे उम्मीदवार को 20,309 वोट मिले थे. कुछ ऐसा ही हाल विक्रोली सीट का रहा, जहां उद्धव के उम्मीदवार ने शिंदे कैंडिडेट को 15,526 वोटों से हराया. इस सीट पर मनसे उम्मीदवार को 16,813 वोट मिले थे.
जोगेश्वरी ईस्ट में उद्धव गुट के उम्मीदवार ने 1,541 वोटों के अंतर से शिंदे की उम्मीदवार को हराकर जीत हासिल की, जबकि मनसे उम्मीदवार को 12,805 वोट मिले. चुनावों में बीजेपी से मधुर रिश्ते दिखाती रही एमएनएस द्वारा शिंदे को नुकसान पर बीजेपी कहती है एमएनएस से कोई तालमेल नहीं था, शुभचिंतक तो उनके हर दल में हैं. बीजेपी नेता विनय सहस्रबुद्धे ने कहा कि विश्लेषण की बात है. ऐसा कुछ नहीं है. तालमेल सिर्फ़ महायुति के साथ था हमारा, बाक़ी शुभचिंतक तो हमारे कई दलों में हैं.
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में एमएनएस ने 125 उम्मीदवार उतारे थे और इनमें से एक-दो को छोड़कर सभी की जमानत राशि जब्त हो गई. राज ठाकरे की मनसे की स्थापना के बाद ये पहली बार है कि मनसे विधानसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत पाई है. अब तो हालात कुछ ऐसे बने हैं कि मनसे से राजनीतिक दल का दर्जा भी छिन सकता है. इसके साथ ही पार्टी पर उनका चुनाव चिन्ह ‘रेल इंजन' भी गंवा देने का खतरा मंडरा रहा है.
किसी भी पार्टी को अपनी मान्यता बनाए रखने के लिए कम से कम एक सीट जीतनी होगी और कुल मत प्रतिशत का आठ प्रतिशत प्राप्त करना होगा या छह प्रतिशत वोट के साथ दो सीटें जीतनी होंगी या तीन प्रतिशत वोट के साथ तीन सीटें जीतनी होंगी. यदि दल इन तीनों ही मानदंडों में से एक भी पूरा नहीं कर पाता है तो निर्वाचन आयोग पार्टी की मान्यता रद्द कर सकता है. मनसे को केवल 1.8% वोट ही प्राप्त हुए और वह एक भी सीट नहीं जीत पाई. ये आवश्यक मानदंडों से काफी कम है. मनसे की मान्यता रद्द होती है तो उसे अगले चुनाव में उसके रिजर्व चुनाव चिन्ह ‘रेलवे इंजन' की जगह कोई और अनारक्षित चुनाव चिन्ह मिल सकता है. हालांकि, पार्टी का नाम नहीं बदलेगा.
इस बार लड़ाई अस्तित्व बचाने की भी रही. राजनीतिक गलियारे में चर्चा ये भी शुरू की क्या दोनों चचेरे भाई अपना सियासी भविष्य बचाने के लिए क्या एक बार फिर साथ आएंगे?