गन्ना
शाहजहांपुर: किसी व्यक्ति, वस्तु और स्थान की पहचान नाम से ही की जाती है. नाम एक ऐसा शब्द है, जिससे हम किसी विशिष्ट चीज़ को दूसरों से अलग करते हैं. ठीक ऐसे ही गन्ने की किस्मों के भी अलग- अलग नाम होते हैं. गन्ने की हर किस्म का नाम सिर्फ एक नाम नहीं होता, बल्कि उसमें कई तरह की जानकारी छिपी होती है. ये जानकारी किसानों के लिए बेहद उपयोगी होती है, क्योंकि इससे उन्हें यह जानने में मदद मिलती है कि कौन सी किस्म उनकी जमीन और मौसम के लिए सबसे उपयुक्त होगी.
उत्तर प्रदेश गन्ना शोध संस्थान के प्रसार अधिकारी डॉ. संजीव कुमार पाठक ने लोकल 18 को बताया कि गन्ने की किस्म के नाम में कई अहम जानकारी छिपी होती हैं. गन्ने की किस्म के नाम में ही छुपा होता है कि इस किस्म का संकरण कहां हुआ और बीज को विकसित कहां किया गया. किस्म के नाम से ही किसानों को पता चल जाता है कि यह किस्म कहां और किस शोध संस्थान द्वारा विकसित किया गया है.
क्या है को.शा का अर्थ ?
डॉ. संजीव कुमार पाठक ने बताया कि गन्ने की कई किस्मों के नाम में को.शा. लिखा होता है. को. का मतलब इस किस्म के संकरण का काम कोयंबटूर संस्थान में किया गया जबकि शा. का मतलब बीज को विकसित करने का काम शाहजहांपुर गन्ना शोध संस्थान में किया गया. बीज को विकसित करने की प्रक्रिया 8 से 10 साल लंबी होती है. ठीक ऐसे ही को.लख. जिसके संकरण का काम कोयंबटूर और बीज को विकसित करने की लंबी प्रक्रिया लखनऊ शोध संस्थान में की गई है. इसके अलावा को.से. 11453, गन्ने की इस किस्म का संकरण कोयंबटूर और इसको विकसित सेवरही गन्ना शोध संस्थान में किया गया है.
क्या मिलता है यू.पी.9530 से संकेत?
गन्ने के किस्म यू.पी.9530, जिसके संस्करण का काम उत्तर प्रदेश और बीज को विकसित करने का काम भी उत्तर प्रदेश में ही किया गया है, इसलिए इस किस्म का नाम बिल्कुल अलग होता है. ठीक ऐसे ही अगर कोई किस्म के नाम की शुरुआत को.पीवी. से होती है, इसके संकरण का काम कोयंबटूर और बीज को विकसित करने की प्रक्रिया पंतनगर में की गई है. गन्ने की किस्म को. 05011 जिसको विकसित करने और संकरण की प्रक्रिया दोनों ही कोयंबटूर गन्ना शोध संस्थान में ही की गई है.
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FIRST PUBLISHED :
October 22, 2024, 08:01 IST