जाट, दलित, एंटी इनकंबेंसी; जानिए मतदान से पहले हरियाणा में किन फैक्टरों का जोर

2 hours ago 1

नई दिल्ली:

हरियाणा विधानसभा चुनाव (Haryana Assembly Elections) के लिए चुनाव प्रचार गुरुवार शाम समाप्त हो गया. सभी 90 सीटों पर शनिवार को वोट डाले जाएंगे. मतों की गणना का कार्य 8 तारीख को होगी. एनडीटीवी की टीम हरियाणा विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने के साथ ही ग्राउंड जीरो पर लगातार सक्रिय रही है. हमारी टीम ने तमाम जगहों पर पहुंचकर मतदाताओं के राय को समझने की कोशिश की. 

हरियाणा में क्या है माहौल? 
हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार एंटी इनकंबेंसी सबसे बड़ा फैक्टर है. कई जगहों पर लहर भी देखने को मिल रही है. कुछ सीटों पर कांग्रेस के पक्ष में लहर देखने को मिल रही है. खासकर रोहतक और झज्जर के इलाके जिसे भूपेंद्र सिंह हुड्डा का गढ़ माना जाता है. लोगों में भारतीय जनता पार्टी और वहां की सरकार में भारी नाराजगी देखने को मिल रही है. इस चुनाव में कांग्रेस के समर्थन से अधिक बीजेपी सरकार के खिलाफ लोगों में आक्रोश है. 

जाट बनाम नॉन जाट की राजनीति
भारतीय जनता पार्टी इस चुनाव में जाट बनाम नॉन जाट का माहौल बनाने की कोशिश में है. कुमारी शैलजा को लेकर भी यह बात फैलाने की कोशिश हुई की दलितों को साइड करने का प्रयास कांग्रेस की तरफ से हुआ है. हालांकि यह बातें किस हद तक लोगों को बीच पहुंच पायी है यह तो 8 तारीख को ही पता चलेगा. 

हरियाणा में क्या हैं सबसे अहम मुद्दे?

  1. इस चुनाव में बेरोजगारी सबसे अहम मुद्दा है. 
  2. विधायकों के प्रति लोगों में बेहद आक्रोश देखने को मिल रहे हैं.
  3. हरियाणा में इस चुनाव में नशा भी एक अहम मुद्दा है.
  4. बीजेपी के खिलाफ इस वक्त भारी एंटी इनकंबेंसी देखने को मिल रही है.
  5. बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व से अधिक लोग स्थानीय नेताओं से नाराज हैं. 
  6. जातिगत समीकरण भी कई जगहों पर बेहद प्रभावी हैं.
  7. अग्निवीर का मुद्दा भी कई सीटों पर लोग मुखरता के साथ उठा रहे हैं. 
  8. कांग्रेस और बीजेपी के बीच अधिकतर सीटों पर सीधा मुकाबला है. किसी भी क्षेत्रीय दलों को बहुत अधिक कुछ मिलता नहीं दिख रहा है.
     

 बीजेपी और कांग्रेस दोनों बागियों से परेशान
सबसे बड़ा झटका भाजपा और कांग्रेस को उनके बागी नेताओं से मिल रहा है. इन दोनों प्रमुख दलों से बगावत कर करीब दर्जनों नेता मैदान में उतर गए हैं, जिससे चुनावी समीकरण गड़बड़ा गए हैं. भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों के शीर्ष नेतृत्व ने बागी नेताओं को मनाने की भरपूर कोशिश की. हाईकमान ने व्यक्तिगत स्तर पर बातचीत से लेकर राजनीतिक दबाव तक सब कुछ आजमाया, लेकिन इन प्रयासों के बावजूद बागी नेताओं ने अपना नाम वापस नहीं लिया. ये नेता अब अपनी ही पार्टी के अधिकृत उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं, जिससे पार्टी के आधिकारिक प्रत्याशियों की जीत की राह मुश्किल हो गई है.

अंबाला कैंट से कांग्रेस का टिकट न मिलने पर चित्रा सरवारा निर्दलीय चुनाव लड़ रही हैं, जिससे कांग्रेस को नुकसान हो रहा है. यहां त्रिकोणीय मुकाबला बन गया है, जिससे भाजपा के अनिल विज को फायदा हो सकता है. पूंडरी से कांग्रेस के सतबीर भाणा भी निर्दलीय लड़ रहे हैं, जिससे मुकाबला दिलचस्प हो गया है.  कैथल के गुहला चीका से नरेश ढांडे निर्दलीय खड़े होकर कांग्रेस के देवेंद्र हंस को टक्कर दे रहे हैं.

पानीपत सिटी और ग्रामीण सीटों पर भी कांग्रेस के बागी प्रत्याशी रोहिता रेवड़ी और विजय जैन मुकाबले को रोमांचक बना रहे हैं. लाडवा में भाजपा के संदीप गर्ग निर्दलीय लड़ रहे हैं, जिससे त्रिकोणीय मुकाबला बन गया है. गन्नौर में देवेंद्र कादियान और असंध में जिले राम शर्मा भी भाजपा से बगावत कर चुनावी मैदान में हैं, जिससे भाजपा और कांग्रेस दोनों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.

हरियाणा के चुनावी मैदान में बागियों की मौजूदगी ने समीकरणों को पूरी तरह बदल दिया है. दोनों ही दलों को अपने ही नेताओं से चुनौती मिल रही है. भाजपा और कांग्रेस के बागी उम्मीदवार अपने-अपने क्षेत्रों में मजबूत जनाधार रखते हैं और इनकी लोकप्रियता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि ये बागी किस तरह से चुनाव परिणामों को प्रभावित करते हैं.

राष्ट्रीय दलों के बागियों से क्षेत्रीय दलों को हो सकता है लाभ
बागियों के चुनावी मैदान में मौजूदगी से वोटों का बंटवारा होने की प्रबल संभावना है. इससे फायदा क्षेत्रीय दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों को हो सकता है, जो इस विभाजन का लाभ उठाकर अपनी स्थिति मजबूत कर सकते हैं. यही वजह है कि इन बागियों की वजह से भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के उम्मीदवारों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है..

कांग्रेस में पहले से चली आ रही गुटबाजी ने इन बगावतों को और बढ़ावा दिया है. कई वरिष्ठ नेताओं को टिकट न मिलना गुटों के बीच आपसी विवाद का परिणाम माना जा रहा है. वहीं, भाजपा में टिकट वितरण को लेकर असंतोष पनपा, जिसने कई नेताओं को बगावत की राह पर धकेल दिया. पार्टी नेतृत्व ने नाराजगी कम करने की कोशिश की, लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ.

हरियाणा में इस बार के चुनाव में बागियों की भूमिका निर्णायक साबित हो सकती है. वोटों के बंटवारे और मतदाताओं की नाराजगी का फायदा उठाकर ये बागी नेता कई सीटों पर परिणाम पलट सकते हैं. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि 5 अक्टूबर को मतदान के बाद 90 सीटों में से कितनी सीटें बागियों के प्रभाव में आती हैं और इससे भाजपा और कांग्रेस को कितना नुकसान होता है.

ये भी पढ़ें-:

हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024: BJP को क्यों याद आया मिर्चपुर और गोहाना, किधर जाएगा दलित वोट

*** Disclaimer: This Article is auto-aggregated by a Rss Api Program and has not been created or edited by Nandigram Times

(Note: This is an unedited and auto-generated story from Syndicated News Rss Api. News.nandigramtimes.com Staff may not have modified or edited the content body.

Please visit the Source Website that deserves the credit and responsibility for creating this content.)

Watch Live | Source Article