दिव्यांग असलम की डिलीवरी पहुंचाते तस्वीर
जहानाबाद: लाचार होने के बावजूद दिल में कुछ कर गुजरने की चाहत लिए असलम की कहानी सभी के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है. दिव्यांग होने के बावजूद किसी पर आश्रित होने की बजाय सरकार से मिली ट्राई साइकिल की मदद से डिलीवरी बॉय का काम कर रहे हैं. सिर से माता-पिता का साया उठने के बावजूद असलम ने अपने हौसलों को कभी गिरने नहीं दिया. आइए जानते हैं हौसलों से भरे नौजवान असलम की कहानी, जो दूसरों के लिए प्रेरणादाई हो सकती है.
ट्राई साइकिल है आजीविका का माध्यम
सरकारी योजना से मिली ट्राई साइकिल के पीछे असलम ने अंग्रेजी के कुछ वाक्य लिख रखे हैं, हिन्दी में इसका मतलब है ‘सफलता प्राप्त करने के लिए हमेशा अपने लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ते रहें’. जहानाबाद के शेखालमचक मोहल्ले का रहने वाला असलम इसी ट्राई साइकिल से लोगों के घर जाकर निजी कंपनी का सामान पहुंचाता है. इससे वह न सिर्फ अपनी आजीविका चलाता है बल्कि बीपीएससी की तैयारी के लिए जिस सामान की जरूरत पड़ती है, उसे पूरा करता है.
किस्मत इम्तिहान पर इम्तिहान लेती है
असलम ने लोकल 18 से बात करते हुए कहा कि जब हम बीएड की तैयारी कर रहे थे तभी हमारी माताजी गुजर गईं. वहीं, पिताजी बचपन में ही गुजर गए थे. वे बताते हैं कि किस्मत भी इम्तिहान लेती रहती है. बचपन से ही दोनों पैर से अपाहिज थे. हालांकि, कोराना के समय परीक्षा देने बाहर गए हुए थे इसी दौरान एक्सीडेंट हो गया. सही इलाज नहीं होने के चलते एक और पैर की हालात खराब हो गई और चलने फिरने में असमर्थ हो गए.
अगरबत्ती बना कर बचपन से की पढ़ाई
उन्होंने बताया कि पढ़ने का जुनून शुरुआत से ही था. हमारा परिवरिश गरीबी हालत में हुआ. हालांकि, इसके बाद भी अगरबत्ती बनाकर पढ़ाई जारी रखा. अभी भी बीपीएससी की तैयारी कर रहा हूं. पिछले बार चूक गया था. 27 साल के असलम ने चित्रकूट से बीएड किया है और अभी जहानाबाद के एसएस कॉलेज से पीजी की पढ़ाई जारी है. BPSC TRE 3 का पेपर 1 मार्क से चूक गया. अब BPSC TRE 4 की तैयारी में जुट गया हूं. दिन में पार्सल पहुंचाने का काम करने के साथ समय निकालकर पढ़ाई भी जारी है और बीपीएससी की तैयारी में लगा हूं.
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FIRST PUBLISHED :
November 24, 2024, 13:11 IST