जैसलमेर की एक दुकान में हाबूर पत्थर से बने बर्तन
जैसलमेर:- राजस्थान के रेतीले धरती में कई अद्भुत रहस्य छुपे हुए हैं. लेकिन जैसलमेर से करीब 50 किलोमीटर दूर हाबूर गांव में मिलने वाला एक खास पत्थर इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है. इस पत्थर का नाम “हाबूर पत्थर” है और इसकी खासियत यह है कि इसे दूध में डालने पर दही जम जाता है. यह चमत्कारी पत्थर ग्रामीणों के लिए तो लंबे समय से रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा रहा ही है, लेकिन अब यह पत्थर जैसलमेर के बाजारों में भी पहुंच गया है और लोगों के बीच खास आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. जैसलमेर में इस पत्थर और इससे बनने वाले सामानों को बाजारों में बेचा जा रहा है और खासकर पर्यटक इस पत्थर के चमत्कारी गुण की वजह से इसकी तरफ आकर्षित हो रहे हैं.
हाबूर पत्थर का उपयोग गांव में कई पीढ़ियों से किया जा रहा है. गांव के बुजुर्गों के अनुसार, इस पत्थर में एक ऐसा प्राकृतिक गुण है, जो दूध को जल्दी से दही में बदलने की क्षमता रखता है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए, तो इस पत्थर में एमिनो एसिड, फिनायल एलिनिया और रिफ्टाफेन टायरोसिन जैसे तत्व हो सकते हैं, जो दूध में प्राकृतिक किण्वन की प्रक्रिया को तेजी से बढ़ावा देते हैं. ग्रामीण इसे घरेलू उपाय के रूप में दही जमाने के लिए उपयोग करते हैं और इसकी चमत्कारी विशेषताओं की प्रशंसा करते नहीं थकते हैं.
जैसलमेर के बाजारों की बढ़ा रहा रौनक
पहले यह पत्थर केवल जैसलमेर के स्थानीय लोगों तक ही सीमित थी. लेकिन अब इसे जैसलमेर के बाजारों में बेचा जाने लगा है. जैसलमेर में इस पत्थर के कटिंग के प्लांट लग चुके हैं. कलाकार इस पत्थर से बर्तन और घरेलू सजावट का सामान बनाने लगे हैं, जिसे व्यापारी खरीदकर जैसलमेर के बाजारों में महंगे दामों पर बेच रहे हैं. स्थानीय व्यापारी रामचंद्र के अनुसार, इस पत्थर की मांग धीरे-धीरे बढ़ रही है, क्योंकि लोग इसके चमत्कारी गुणों को जानने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं. अब तक इस पत्थर का उपयोग सिर्फ दही जमाने के लिए किया जाता था, लेकिन अब इससे बर्तन बनाने का कार्य भी शुरू हो गया है. इन बर्तनों का उपयोग न केवल घरों में, बल्कि होटलों और रेस्तरांओं में किया जाता है.
स्थानीय लोगों में लोकप्रिय
हाबूर पत्थर से बर्तन बनाने का चलन बढ़ने से जैसलमेर और उसके आसपास के गांवों के कारीगरों को भी रोजगार मिलने लगा है. ये कारीगर हाबूर पत्थर से किफायती और टिकाऊ बर्तन बनाते हैं, जिन्हें जैसलमेर घूमने आने वाले पर्यटक बड़ी संख्या में खरीद रहे हैं. इसके अलावा, स्थानीय लोगों के बीच भी यह पत्थर और इसके बर्तन काफी लोकप्रिय हो रहे हैं, जो इस क्षेत्र की हस्तशिल्प और संस्कृति को बढ़ावा देने का काम करेंगे.
हालांकि हाबूर पत्थर के चमत्कारी गुणों की चर्चा जोरों पर है, लेकिन इसके पीछे छिपे वैज्ञानिक कारणों की अभी तक पूरी तरह से पुष्टि नहीं हुई है. शोधकर्ताओं का मानना है कि इस पत्थर पर गहन अध्ययन की जरूरत है, ताकि इसके गुणों का पता लगाया जा सके और इसके उपयोग को और अधिक सुरक्षित और प्रभावी बनाया जा सके.
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जैसलमेर की हस्तशिल्प को मिला नया आयाम
आपको बता दें कि हाबूर पत्थर न केवल जैसलमेर की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा बन चुका है, बल्कि इसने हाबूर गांव को भी पहचान दिलाई है. इसकी चमत्कारी विशेषताओं ने इसे न केवल स्थानीय बाजारों में, बल्कि पर्यटकों और व्यापारियों के बीच भी खास स्थान दिलाया है. हाबूर पत्थर के बढ़ते प्रचलन से न केवल स्थानीय कारीगरों को रोजगार मिला है, बल्कि जैसलमेर की पारंपरिक संस्कृति और हस्तशिल्प को भी एक नया आयाम मिला है.
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FIRST PUBLISHED :
September 24, 2024, 17:43 IST