किसान अपने पशुओं को क्यों पहनाते हैं घंटियां, बड़े काम का है ये जुगाड़
पशुओं की घंटियां
रिपोर्ट- मनीष पुरी
भरतपुर: राजस्थान के भरतपुर के पहाड़ी इलाकों में रहने वाले किसान अपनी कृषि गतिविधियों के साथ-साथ अपने पशुओं की देखभाल के लिए अनूठी परंपराओं का पालन करते हैं. यहां के किसान अपने पशुओं की नार यानी गले में बड़ी-बड़ी घंटियां पहनाते हैं. यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है और आज भी यह प्रचलित है. आपने भी कभी न कभी जानवरों को घंटी पहने हुए देखा जरूर होगा. तो आज यह भी जान लेते हैं कि इसको बांधने के पीछे क्या कारण है.
इन घंटियों का मुख्य उद्देश्य पहाड़ी इलाकों में पशुओं की पहचान और उनकी खोज को आसान बनाना है. जब पशु जंगल या घास के मैदानों में चरने जाते हैं तो इन घंटियों की आवाज़ उन्हें खोजने में बहुत मददगार साबित होती है. घंटियों की खनक से किसान आसानी से जान जाते हैं कि उनके पशु कहां हैं. इससे उन्हें अपने जानवरों को नियंत्रित करना आसान हो जाता है. इससे वह सुरक्षित भी रहते हैं. खासकर बारिश के मौसम में जब मौसम की वजह से दृश्यता कम हो जाती है तो ये घंटियां एक जानवरों को खोजने का एक बेहतरीन उपाय साबित होती हैं.
पशुओं की खोज में मदद करने के साथ ही ये घंटियां क्षेत्रीय परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर को भी जीवित रखती हैं. किसान अपनी दिनचर्या में इन घंटियों को एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं और यह परंपरा आज भी उनके जीवन का अभिन्न अंग है.
घास-फूस में छिपे जानवरों से बचते हैं पशु
पशुओं की घंटियां बेचने वाले व्यापारी ने लोकल 18 को बताया की बाजार में विभिन्न प्रकार की बड़ी-बड़ी पशुओं की घंटियां आती हैं. कई दुकानों पर ये घंटियां मिल जाती हैं. पशुओं की ये घंटियां लोहा, तवा और पीतल से बनी हुई होती हैं. इसकी आवाज से किसान अपने पशुओं की पहचान कर लेते हैं. इनका एक बड़ा फायदा यह भी है कि घंटी की आवाज से घास-फूस और झांडियों में छिपे ऐसे जानवर और कीड़े-मकोड़े दूर भाग जाते है जो पशुओं को परेशान कर सकते हैं. इसलिए किसान अपने पशुओं की नार में इनको पहनाते हैं. भरतपुर के पहाड़ी इलाके में घंटियों का यह उपयोग न केवल एक व्यावहारिक उपाय है.बल्कि एक सांस्कृतिक पहचान भी है जो स्थानीय कृषि और पशुपालन की विशेषताओं को दिखाता है.
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FIRST PUBLISHED :
September 24, 2024, 19:55 IST