अनुज गौतम: सागर के चकरा घाट पर दशहरा से एक दिन पहले नवमी के दिन रावण दहन की अनूठी परंपरा निभाई जाती है. जैसे ही भगवान राम ने तीर छोड़ा, वह रावण के पेट में जाकर लगा और जोरदार आतिशबाजी के साथ रावण का दहन हुआ. इस दौरान लोगों ने तालियों की गड़गड़ाहट और “जय श्री राम” के नारों के साथ इस क्षण का स्वागत किया है.
चकरा घाट पर रावण दहन की शुरुआत 19 साल पहले कुछ छोटे बच्चों द्वारा खेल-खेल में हुई थी. समिति के ज्योतिष सोनी ने बताया कि जब वे 10-12 साल के थे, तब उन्होंने अपने दोस्तों के साथ छोटा सा रावण बनाकर उसका दहन किया था. इसे धीरे-धीरे परंपरा से वार्ड के लोग जुड़ते गए. रावण की ऊंचाई के साथ-साथ लोगों की संख्या भी बढ़ती गई. इस साल 40 फीट ऊंचा रावण दहन किया गया.
युवा सांस्कृतिक समिति की भूमिका
समिति का नाम “युवा सांस्कृतिक समिति” रखा गया. जो अब हर साल रावण दहन का कार्यक्रम आयोजित करती है. इस आयोजन में स्थानीय अधिकारी, विधायक और मंत्री भी शामिल होते हैं. रावण दहन के अलावा, भगवान राम की झांकी सजाई जाती है. माता रानी के भजन और राधे-राधे संकीर्तन भी होते हैं. इसके अलावा, साल भर में अच्छा काम करने वाले लोगों का मंच से सम्मान भी किया जाता है. अब समिति 100 से अधिक सदस्यों की टीम बन गई है.जो इस आयोजन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती है
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FIRST PUBLISHED :
October 12, 2024, 17:41 IST